नई दिल्ली:
कैंसर को मात देकर फिर से क्रिकेट मैदान पर लौटकर लोगों के प्रेरणा बनने वाले युवराज सिंह ने खुलासा किया कि विश्वकप 2011 के दौरान वह इस जानलेवा बीमारी के कारण नहीं, बल्कि इस क्रिकेट महाकुंभ में हार को लेकर अधिक डरे हुए थे।
युवराज ने कहा, विश्व कप के दौरान मेरी खांसी में खून आया था, लेकिन मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया। विश्वकप में काफी दबाव था और मैं अपने स्वास्थ्य की जांच नहीं कराना चाहता था। मैं अपनी बीमारी से नहीं, बल्कि विश्व कप से डरा हुआ था कि अगर हार गए तो क्या होगा।
उन्होंने कहा, मैं विश्व कप में मैन ऑफ द टूर्नामेंट बना। वह मेरे करियर का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन उसके बाद मैंने अपनी जिंदगी का सबसे बुरा दौर भी देखा। वह सबसे बड़ा रोना था।
युवराज ने कहा कि उन्हें अपनी क्षमता पर भरोसा है और भारतीय टीम में एक स्थान के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद वह अपने लिए जगह बनाने में सफल रहेंगे। उन्होंने कहा, यह अच्छा है कि युवा खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रतिस्पर्धा कड़ी है, लेकिन मुझे अपनी क्षमता पर भरोसा है। मैंने पहले भी खुद को साबित किया है और मुझे विश्वास है कि आने वाले महीनों में भी मैं अच्छा प्रदर्शन करूंगा।
युवराज का मानना है कि कैंसर को लेकर लोगों में जागरूकता लाना जरूरी है। इसके लिए उनकी संस्था कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। अक्तूबर से उनकी योजना गूगल हैंगआउट के जरिये दुनियाभर के कैंसर पीड़ितों से रू-ब-रू होने की है।
उन्होंने कहा, हम गूगल हैंगआउट शुरू कर रहे हैं, जिसमें कोई भी कैंसर रोगी हर महीने में एक घंटे मुझसे सीधे बात कर सकता है। हम इसे अक्तूबर से शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं। युवराज ने देश में कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए कॉरपोरेट जगत से भी सहयोग की अपील की।
उन्होंने कहा, मेरी कॉरपारेट जगत से दरख्वास्त है कि वह युवीकैन से जुड़े। आज बहुत से लोगों को यूवीकैन की जरूरत है। लोग स्वस्थ रहेंगे तो देश स्वस्थ रहेगा। हमारा प्रयास यही है कि हम अधिक से अधिक लोगों की जिंदगी बचाएं। उन्होंने कहा, कैंसर का इलाज महंगा है, लेकिन टेस्ट कराना जरूरी है। देश के कोने-कोने तक जाना महत्वपूर्ण है। हमें कॉरपोरेट की मदद भी चाहिए। हम कैंसर के प्रति भारत में अधिक से अधिक जागरूकता लाना चाहते हैं, क्योंकि भारत में लोग कैंसर के बारे में बताने से घबराते हैं।
युवराज ने कहा, विश्व कप के दौरान मेरी खांसी में खून आया था, लेकिन मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया। विश्वकप में काफी दबाव था और मैं अपने स्वास्थ्य की जांच नहीं कराना चाहता था। मैं अपनी बीमारी से नहीं, बल्कि विश्व कप से डरा हुआ था कि अगर हार गए तो क्या होगा।
उन्होंने कहा, मैं विश्व कप में मैन ऑफ द टूर्नामेंट बना। वह मेरे करियर का सबसे महत्वपूर्ण क्षण था, लेकिन उसके बाद मैंने अपनी जिंदगी का सबसे बुरा दौर भी देखा। वह सबसे बड़ा रोना था।
युवराज ने कहा कि उन्हें अपनी क्षमता पर भरोसा है और भारतीय टीम में एक स्थान के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद वह अपने लिए जगह बनाने में सफल रहेंगे। उन्होंने कहा, यह अच्छा है कि युवा खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रतिस्पर्धा कड़ी है, लेकिन मुझे अपनी क्षमता पर भरोसा है। मैंने पहले भी खुद को साबित किया है और मुझे विश्वास है कि आने वाले महीनों में भी मैं अच्छा प्रदर्शन करूंगा।
युवराज का मानना है कि कैंसर को लेकर लोगों में जागरूकता लाना जरूरी है। इसके लिए उनकी संस्था कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। अक्तूबर से उनकी योजना गूगल हैंगआउट के जरिये दुनियाभर के कैंसर पीड़ितों से रू-ब-रू होने की है।
उन्होंने कहा, हम गूगल हैंगआउट शुरू कर रहे हैं, जिसमें कोई भी कैंसर रोगी हर महीने में एक घंटे मुझसे सीधे बात कर सकता है। हम इसे अक्तूबर से शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं। युवराज ने देश में कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए कॉरपोरेट जगत से भी सहयोग की अपील की।
उन्होंने कहा, मेरी कॉरपारेट जगत से दरख्वास्त है कि वह युवीकैन से जुड़े। आज बहुत से लोगों को यूवीकैन की जरूरत है। लोग स्वस्थ रहेंगे तो देश स्वस्थ रहेगा। हमारा प्रयास यही है कि हम अधिक से अधिक लोगों की जिंदगी बचाएं। उन्होंने कहा, कैंसर का इलाज महंगा है, लेकिन टेस्ट कराना जरूरी है। देश के कोने-कोने तक जाना महत्वपूर्ण है। हमें कॉरपोरेट की मदद भी चाहिए। हम कैंसर के प्रति भारत में अधिक से अधिक जागरूकता लाना चाहते हैं, क्योंकि भारत में लोग कैंसर के बारे में बताने से घबराते हैं।
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