कपिलदेव की कप्तानी में टीम इंडिया ने 1983 में वर्ल्डकप जीता था (फाइल फोटो)
25 जून....भारतीय क्रिकेट के लिहाज से ऐसा दिन जिसने भारतीय खेलों की दिशा ही बदल दी. 25 जून 1983 को आज के ही दिन कपिलदेव के रणवांकुरों ने बेहद शक्तिशाली वेस्टइंडीज टीम को 43 रन से हराकर वर्ल्डकप चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया था. बाद में वर्ष 2011 में महेंद्र सिंह धोनी ने श्रीलंका को फाइनल में हराकर इस उपलब्धि को दोहराया था. 25 जून 1983 की बात करें तो यह जीत भारतीय खेलों विशेषकर क्रिकेट के दशा और दिशा बदलने वाली साबित हुई थी. इस करिश्माई जीत के साथ ही भारतीय क्रिकेट ने दुनिया को पहली बार अपनी ताकत का अहसास कराया था. इस जीत के बाद ही भारतीय क्रिकेटरों पर खूब धन की बारिश हुई और देश में क्रिकेट को पेशेवर गेम का दर्जा मिला. आज के समय शार्टर फॉर्मेट में टी20 मैच में भी 200 यहां तक कि 250 रन के आसपास का स्कोर बनना आमबात है लेकिन 80 के दशक में वनडे क्रिकेट में 200 से अधिक का स्कोर बनना ही बड़ी बात होती थी. आज के दौर के क्रिकेट प्रशंसकों को यह जानकार हैरत हो सकती है कि तब के 60-60 ओवर के वनडे मैच में भारतीय टीम ने महज 183 रन का स्कोर बनाया था और 43 रन के अच्छे खास अंतर से जीत लिया था. यह फाइनल मैच महान हरफनमौला कपिलदेव द्वारा वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज विव रिचर्ड्स के यादगार कैच के लिए भी लंबे अरसे तक याद रहेगा.
इंग्लैंड में आयोजित पहले तीन वर्ल्डकप 60-60 ओवर के हुए. पहले दो वर्ल्डकप में चैंपियन बनी वेस्टइंडीज टीम 1983 में एक बार फिर फाइनल में थी और उनका मुकाबला बेहद कमजोर मानी जा रही भारतीय टीम से था. उस दौर की इंडीज टीम के खेल कौशल का लोहा पूरी दुनिया मानती थी. हर किसी को यही उम्मीद थी कि क्लाइव लॉयड, विव रिचर्ड्स, गॉर्डन ग्रीनिज, जोएल गार्नर, एंडी राबर्ट्स और माइकल होल्डिंग जैसे नामी सितारों के आगे भारतीय टीम जरा भी नहीं टिक पाएंगी. माना जा रहा था कि वेस्टइंडीज की वर्ल्डकप जीत की हैट्रिक पूरी होने में महज औपचारिकता ही बाकी है. लेकिन कपिल देव की टीम ने कमाल करते हुए फाइनल में जीत हासिल कर इस बात को साबित कर दिया था कि किसी भी मैच के पूरा होने के पहले इसके परिणाम का अनुमान लगाना कितना खतरनाक है.
मैच में पहले बैटिंग करते हुए भारतीय टीम 54.4 ओवर में 183 रन बनाकर आउट हो गई थी. के.श्रीकांत ने सर्वाधिक 36 रन बनाए थे. मोहिंदर अमरनाथ ने 26 और संदीप पाटिल ने 27 रनों का योगदान दिया था. वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की चौकड़ी के आगे पूरे समय भारतीय बल्लेबाज संघर्ष करते रहे थे. एंडी रॉबर्ट्स ने तीन ओर मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग और लैरी गोम्स ने दो-दो विकेट लिए थे. ऐसा लग रहा था कि इंडीज टीम 184 रन के लक्ष्य को हासिल कर लेगी. ग्रीनिज के रूप में इंडीज का पहला विकेट तो जल्दी गिर गया लेकिन दूसरे विकेट के लिए डेसमंड हैंस ने विव रिचर्ड्स के साथ आननफानन में 49 रन की साझेदारी कर डाली.
रिचर्ड्स उस समय धमाकेदार शॉट लगा रहे थे और लग रहा था कि वे शायद मैच को 30- ओवर में ही खत्म कर देंगे. इसी दौरान रिचर्ड्स (33रन, 28 गेंद, सात चौके) ने मदनलाल की गेंद पर आसमानी शॉट लगाया और कपिल ने पीछे की ओर दौड़ लगाकर उन्हें कैच कर दिया. इस यादगार कैच से विव की पारी खत्म हुई. टीम इंडिया को शायद इसी विकेट की तलाश थी. 50 के स्कोर पर दूसरा विकेट गिरते ही टीम इंडिया का मनोबल सातवें आसमान पर था. लैरी गोम्स, क्लाइव लॉयड, फाउद बखस और जैफ डुजोन जैसे बल्लेबाज नहीं चले. देखते ही देखते पूरी टीम 52 ओवर में 140 रन बनाकर पैवेलियन लौट गई. भारतीय टीम ने 43 रन से मैच जीतकर इतिहास रच दिया. कपिल देव की कप्तानी की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही थी और वेस्टइंडीज का वर्ल्डकप खिताब की हैट्रिक का सपना टूट चुका था. भारतीय टीम के लिए मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ ने तीन-तीन विकेट लिए. बलविंदर संधु के खाते में दो विकेट आए. गेंद और बल्ले से अच्छा प्रदर्शन करने वाले मोहिंदर मैन ऑफ द मैच रहे थे.
इंग्लैंड में आयोजित पहले तीन वर्ल्डकप 60-60 ओवर के हुए. पहले दो वर्ल्डकप में चैंपियन बनी वेस्टइंडीज टीम 1983 में एक बार फिर फाइनल में थी और उनका मुकाबला बेहद कमजोर मानी जा रही भारतीय टीम से था. उस दौर की इंडीज टीम के खेल कौशल का लोहा पूरी दुनिया मानती थी. हर किसी को यही उम्मीद थी कि क्लाइव लॉयड, विव रिचर्ड्स, गॉर्डन ग्रीनिज, जोएल गार्नर, एंडी राबर्ट्स और माइकल होल्डिंग जैसे नामी सितारों के आगे भारतीय टीम जरा भी नहीं टिक पाएंगी. माना जा रहा था कि वेस्टइंडीज की वर्ल्डकप जीत की हैट्रिक पूरी होने में महज औपचारिकता ही बाकी है. लेकिन कपिल देव की टीम ने कमाल करते हुए फाइनल में जीत हासिल कर इस बात को साबित कर दिया था कि किसी भी मैच के पूरा होने के पहले इसके परिणाम का अनुमान लगाना कितना खतरनाक है.
मैच में पहले बैटिंग करते हुए भारतीय टीम 54.4 ओवर में 183 रन बनाकर आउट हो गई थी. के.श्रीकांत ने सर्वाधिक 36 रन बनाए थे. मोहिंदर अमरनाथ ने 26 और संदीप पाटिल ने 27 रनों का योगदान दिया था. वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों की चौकड़ी के आगे पूरे समय भारतीय बल्लेबाज संघर्ष करते रहे थे. एंडी रॉबर्ट्स ने तीन ओर मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग और लैरी गोम्स ने दो-दो विकेट लिए थे. ऐसा लग रहा था कि इंडीज टीम 184 रन के लक्ष्य को हासिल कर लेगी. ग्रीनिज के रूप में इंडीज का पहला विकेट तो जल्दी गिर गया लेकिन दूसरे विकेट के लिए डेसमंड हैंस ने विव रिचर्ड्स के साथ आननफानन में 49 रन की साझेदारी कर डाली.
रिचर्ड्स उस समय धमाकेदार शॉट लगा रहे थे और लग रहा था कि वे शायद मैच को 30- ओवर में ही खत्म कर देंगे. इसी दौरान रिचर्ड्स (33रन, 28 गेंद, सात चौके) ने मदनलाल की गेंद पर आसमानी शॉट लगाया और कपिल ने पीछे की ओर दौड़ लगाकर उन्हें कैच कर दिया. इस यादगार कैच से विव की पारी खत्म हुई. टीम इंडिया को शायद इसी विकेट की तलाश थी. 50 के स्कोर पर दूसरा विकेट गिरते ही टीम इंडिया का मनोबल सातवें आसमान पर था. लैरी गोम्स, क्लाइव लॉयड, फाउद बखस और जैफ डुजोन जैसे बल्लेबाज नहीं चले. देखते ही देखते पूरी टीम 52 ओवर में 140 रन बनाकर पैवेलियन लौट गई. भारतीय टीम ने 43 रन से मैच जीतकर इतिहास रच दिया. कपिल देव की कप्तानी की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही थी और वेस्टइंडीज का वर्ल्डकप खिताब की हैट्रिक का सपना टूट चुका था. भारतीय टीम के लिए मदनलाल और मोहिंदर अमरनाथ ने तीन-तीन विकेट लिए. बलविंदर संधु के खाते में दो विकेट आए. गेंद और बल्ले से अच्छा प्रदर्शन करने वाले मोहिंदर मैन ऑफ द मैच रहे थे.
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