यह ख़बर 01 मार्च, 2013 को प्रकाशित हुई थी

सचिन तेंदुलकर ने ही डाली थी चेन्नई टेस्ट में जीत की नींव...

खास बातें

  • धोनी के अलंकारिक दोहरे शतक के पीछे सचिन की पारी उसी तरह छिप गई, जैसे वीवीएस लक्ष्मण की 281 रनों की पारी के पीछे राहुल द्रविड़ के 180 रनों का ज़िक्र मुश्किल से ही होता है।
नई दिल्ली:

मेहमान ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के तहत चेन्नई में खेले गए शृंखला के पहले टेस्ट को आज से 10 साल बाद भी शायद टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के दोहरे शतक की वजह से ही याद किया जाएगा। दरअसल 265 गेंदों का सामना कर 24 चौकों और छह छक्कों से सजी 224 रनों की माही की यह पारी इस मैच के लिए रेफरेंस प्वाइंट या संदर्भ बिन्दु बन गई है, क्योंकि किसी टेस्ट मैच में बतौर कप्तान किसी भी भारतीय खिलाड़ी की यह सबसे बड़ी पारी थी, और सबसे खास बात यह है कि यह एक ऐसी पारी थी, जिसके बगैर टीम की जीत किसी भी तरह मुमकिन नहीं थी।

लेकिन धोनी की इस अलंकारिक पारी के साये में इसी मैच में सचिन तेंदुलकर द्वारा खेली गई 81 रनों की पारी की न कोई खास चर्चा क्रिकेटप्रेमियों में हो रही है, न टेलीविज़न चैनलों या अखबारों ने हमेशा की तरह सचिन के गीत गाए हैं। यह पारी कुछ उसी तरह छिप गई है, जिस तरह वर्ष 2001 में ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ कोलकाता में खेली गई वीवीएस लक्ष्मण की मशहूर 281 रनों की पारी के पीछे राहुल द्रविड़ की 180 रनों की पारी का ज़िक्र मुश्किल से ही होता है।

लेकिन गौर फरमाएं, चेन्नई टेस्ट का पहला दिन पूरी तरह ऑस्ट्रेलियाई टीम के नाम रहा था, और दूसरे दिन भी उनका दबदबा कायम था। टेस्ट मैच के दूसरे दिन पहली पारी में सिर्फ 12 के स्कोर पर भारत ने सलामी बल्लेबाजों मुरली विजय और वीरेंद्र सहवाग के विकेट गंवा दिए था, और 105 के कुल स्कोर पर टीम इंडिया की 'नई वॉल' कहे जाने वाले चेतेश्वर पुजारा भी 44 के निजी स्कोर पर निपटा दिए गए थे। रेडियो पर कमेन्टेटर यहां तक कहने लगे थे कि टीम इंडिया को अब फॉलोऑन से बचने की जुगत करनी चाहिए। ज़ाहिर है, ऐसे में मेहमान ऑस्ट्रेलियाइयों के हौसले बुलंद थे और टीम इंडिया दबाव में दिख रही थी।

उस समय पिच पर पहुंचे सचिन हालांकि घरेलू क्रिकेट में दो शतक भी ठोक चुके थे, और घंटों नेट्स पर पसीना बहाकर अच्छी तैयारी के साथ आए थे, लेकिन 39-वर्षीय लिटिल मास्टर सवालों के घेरे में थे। एक और खराब पारी और उनके रिटारयरमेंट की बहस को और तेज़ कर सकती थी। इस पारी में जेम्स पैटिन्सन ने वीरेंद्र सहवाग को 147 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकी गेंद पर आउट किया था, और मुरली विजय को 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से फेंकी गेंद पर, लेकिन सचिन तेंदुलकर ने आते ही पैटिन्सन की पहली दो गेंदों को बाउंड्री का रास्ता दिखाया, और फिर उसी ओवर की आखिरी गेंद पर एक और चौका लगाकर बता दिया कि जीनियस का खेल खत्म नहीं हुआ है।

सचिन तेंदुलकर के प्रशंसक और आलोचक उनकी इस बेहद उपयोगी पारी की तारीफ करते रहे और उम्मीद की जा रही थी कि वह टेस्ट मैचों में अपने सैकड़ों का आंकड़ा 51 से 52 कर देंगे, लेकिन वह 81 के निजी योग पर ऑस्ट्रेलियाई ऑफ-स्पिनर नाथन लियोन के शिकार हो गए।

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इसके बाद चेन्नई टेस्ट पर आखिरकार माही के नाम की जायज़ मुहर लगी, क्योंकि 'मैन ऑफ द मैच' के खिताब के लिए उनसे बेहतर दावेदार और कोई नहीं हो सकता था, लेकिन सचिन तेंदुलकर की इस पारी ने पिच पर उनकी उम्र तो बढ़ा ही दी। दरअसल, गौर से देखा जाए तो सचिन की मजबूत पारी से तैयार हुई नींव पर ही माही ने टीम इंडिया की जीत की इमारत खड़ी की।