टीम इंडिया को खत्म हुई टेस्ट सीरीज में 2-0 के सफाए के बाद दक्षिण अफ्रीकी कोच शुकरी कॉनरैड अपने विवाद बयान के लिए भी चर्चा में हैं. मैच के चौथे दिन शुकरी ने टीम इंडिया को 'घुटनों पर लाने' की बात कही, तो भारतीय ही नहीं, बल्कि तमाम क्रिकेट वैश्विक मीडिया ने इस नस्लीय टिप्पणी को हाथों-हाथ लिया. बहरहाल, गुवाहाटी टेस्ट में ऐतिहासिक जीत के बाद कप्तान टेंबा बवुमा ने कोच का बचाव किया है. बवुमा ने कहा कि उन्हें बुधवार सुबह ही इस बारे में बता चला और तब से उन्हें कोच से बात करने का मौका नहीं मिला है.
बवुमा ने कहा, 'कोच द्वारा किए गए कमेंट के बारे में मुझे बुधवार सुबह पता चला. मेरा पूरा ध्यान मैच पर लगा था और मुझे उनसे बात करने का मौका नहीं मिला. शुकरी 60 साल के होने के करीब हैं. और वह निश्चित ही अपने कहे शब्दों पर ध्यान देंगे. लेकिन इस सीरीज में कुछ खिलाड़ियों ने सीमा लांघी है. मैं यह नहीं कह रहा कि कोच ने सीमा लांघी है, लेकिन वह निश्चित रूप से इस बारे में सोचेंगे'
दरअसल मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब कोच से मजबूत बढ़त लेने के बावजूद लगातार बल्लेबाजी करने को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था, 'हम भारतीय कों ज्यादा से ज्यादा समय मैदान पर रखना चाहते थे. वास्तव में हम उन्हें घुटने पर लाना, डराना और बैटिंग के समीकरण से पूरी तरह बाहर रखना चाहते थे. इसके बाद हम उनसे कहना चाहते थे: 'इस शाम और आखिरी दिन खुद को बचाओ.'
इसके बाद भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों देशों के पूर्व दिग्गजों ने दक्षिण अफ्रीकी प्रभुत्व को बयां करने के लिए 'ग्रोवेल (घुटनों पर लाने)' की आलोचना की थी. अनिल कुंबले डेल स्टेन सहित ज्यादातर दिग्गजों ने एक सुर में दक्षिण अफ्रीकी कोच को आड़े हाथ लिया था. पहली बार क्रिकेट में ग्रोवल शब्द 1976 में चर्चा का विषय तब बना, जब विंडीज टीम इंग्लैंड खेलने पहुंची थी. तब, इंग्लिश कप्तान टोनी ग्रेग ने सीरीज से पहले एक इंटरव्यू में जब इस शब्दावली का इस्तेमाल किया था, तो यह खासा चर्चा का विषय बना था. लेकिन तब हुआ एकदम उलट और विंडीज ने इंग्लैंड का उसी की धरती पर 3-0 से सफाया कर दिया था.
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