यह ख़बर 31 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

महावीर रावत की कलम से : हारकर जीतने वाले को धोनी कहते हैं!

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

'मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का, उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पर दम निकले।'

धोनी के बारे में सोचते-सोचते मिर्ज़ा ग़ालिब साहब का यह शेर अचानक जेहन में आया। धोनी से लोग कितनी भी नफरत कर लें, उन्हें खेलता देखने के मुरीद उनके बड़े से बड़े आलोचक भी होंगे।

मैं हमेशा उस विचारधारा का रहा हूं कि टेस्ट क्रिकेट में, फिर से कह दूं कि सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में धोनी कभी कप्तानी के मायनों में खरे नहीं उतरे और ये बात खुद धोनी भी शायद मानते होंगे। उनकी तकनीक किसी भी क्लब क्रिकेटर से बेहतर नहीं है। स्विंग और उछाल लेती गेंदों को वह जिस तरह खेलते हैं, उससे कोच युवा खिलाड़ियों को जरूर बताते होंगे कि इन गेंदों को कैसे न खेला जाए! लेकिन, टीम में बतौर विकेट कीपर और बल्लेबाज उनकी भूमिका कभी सवालों में नहीं रही।

खैर, हम इंसानों की ये फितरत है कि किसी के जीते जी हम भले ही उसकी जमकर आलोचना कर लें, लेकिन किसी के जाने के बाद हम हमेशा उसे एक अच्छा इंसान कहकर याद करते हैं। धोनी ने 90 टेस्ट मैच खेले। विदेशों में लगभग हर मैच हारे... पर सवाल यह है कि कौन-सा कप्तान विदेश में जीता है? कोई नहीं।

भारत के पास कभी कोई ऐसे गेंदबाज ही नहीं रहे जो उसे टेस्ट मैच जिता दे और, कभी कोई गेंदबाज कमाल कर भी देता तो बल्लेबाज उसके किए-कराए पर पानी फेर देते।

पर, सवाल ये है कि धोनी आखिर इतनी देर तक कप्तान कैसे बने रहे? तो यहां बता दें कि इसमें धोनी की किस्मत और वीरेन्द्र सहवाग का बड़ा योगदान है...।

दोनों धोनी के नतृत्व में खूब चले और धोनी ने इसका फल भी खूब खाया। इतना ही नहीं हरभजन सिंह, गौतम गंभीर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने अपने करियर का बेहतरीन क्रिकेट तब खेला जब महेन्द्र सिंह धोनी कप्तान थे। नतीजा यह रहा कि ये खिलाड़ी खेलते गए, धोनी जीतते गए और वाह-वाही लूटते गए।

दो टेस्ट मैचों की सीरीज की बीच वनडे क्रिकेट और टी-20 होता, जिसमें माही सबको हक्का-भक्का कर देते और छोटे फॉर्मेट में उनकी कामयाबी को टेस्ट क्रिकेट में भी भुना लिया जाता, लेकिन, आज जब धोनी टेस्ट क्रिकेट से रिटायर हुए हैं तो इन सीनियर खिलाड़ियों की चुप्पी कई सवालों के जवाब दे देती है। न सहवाग, न गंभीर, न युवराज और न हरभजन सिंह ने कहा कि धोनी ने भारतीय टेस्ट क्रिकेट के लिए क्या किया! मेरा खुद का आकलन है कि माही ने देश और चयनकर्ताओं को कम से कम इस बात के लिए तैयार कर लिया है कि अगर हम 2015 वर्ल्ड कप नहीं जीते तो उन पर इसकी ज्यादा गाज न गिरे।

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ऑस्ट्रेलिया के हालात में इस टीम का वर्ल्ड कप का ताज बचा पाना बहुत मुश्किल लग रहा है और धोनी से बेहतर भला ये कौन समझ सकते हैं। खैर, अब कोहली युग के लिए तैयार हो जाए और शुरुआती दौर से तो यही लगता है कि जितना कोहली मैदान पर उलझेंगे और लड़ेंगे उतनी ही धोनी की शख्सियत ज्यादा बढ़ी नजर आएगी...।