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This Article is From Jul 30, 2022

CWG 2022: इस वजह से स्वर्ण पदक संकेत सरगर के हाथ से फिसल गया, रजत विजेता ने राज्य सरकार से लगायी नौकरी की गुहार

पदक विजेता ने कहा कि मैं अपने पदक लिए मम्मी-पापा शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. उन्होंने कहा कि घर पर मेरे पिता पान की दुकान चलाते हैं. मेरी जीत पर उन्हें खासा अच्छा लग रहा होगा.

CWG 2022: इस वजह से स्वर्ण पदक संकेत सरगर के हाथ से फिसल गया, रजत विजेता ने राज्य सरकार से लगायी नौकरी की गुहार
CWG 2022: संकेत सरगर ने जीत के बाद बताया कि क्यों वह स्वर्ण नहीं जीत सके
  • जारी कॉमनवेल्थ खेलों में वेटलिफ्टर ने जीता रजत
  • महाराष्ट्र में पिता चलाते हैं पान की दुकान
  • बहुत गरीबी से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचे
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बर्मिंघम:

महाराष्ट्र के सांगली शहर में एक छोटी सी पान की टपरी (दुकान) से लेकर बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने तक भारोत्तोलक संकेत महादेव सरगर जुझारूपन की ऐसी मिसाल हैं, जिन्होंने साबित कर दिया कि जहां चाह होती है, वहां राह बन ही जाती है. जीत के बाद इस वेटलिप्टर ने एनडीटीवी से खास बातचीत में कहा कि वह इस बात से दुखी हैं कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दोहरा सके, लेकिन खुशी इस बात की है कि वह भारत के लिए रजत पदक जीतने में सफल रहे. संकेत सरगर ने 55 किलोग्राम भारोत्तोलन स्पर्धा में 248 किलोग्राम वजन उठाकर रजत पदक जीता. वह स्वर्ण पदक से महज एक किलोग्राम से चूक गए, क्योंकि क्लीन एंड जर्क वर्ग में दूसरे प्रयास के दौरान चोटिल हो गए थे.

खास बातचीत में संकेत ने कहा कि उनके एलबो में क्रैक आ गया था. जर्क के दौरान लोड आने के कारण मैं इसे नियंत्रित नहीं कर सका. उन्होंने कहा कि मैं बहुत दुखी हूं कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं दोहरा सका. पता दें कि संकेत बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं और उनके पिता पान की दुकान चलाते हैं. संकेत ने कहा कि मैं महाराष्ट्र सरकार से यही कहना चाहूंगा कि मेरे पास नौकरी नहीं है और मुझे नौकरी मिलनी चाहिए. 

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पदक विजेता ने कहा कि मैं अपने पदक लिए मम्मी-पापा शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. उन्होंने कहा कि घर पर मेरे पिता पान की दुकान चलाते हैं. मेरी जीत पर उन्हें खासा अच्छा लग रहा होगा. अगले लक्ष्य पर उन्होंने कहा कि फिलहाल मैं कुछ नहीं बोल सकता. मेरे हाथ में बहुत ही ज्यादा दर्द है और अभी मेरा पूरा ध्यान इस चोट से  रिकवरी पर है. 

वही, उनके बचपन के कोच मयूर सिंहास ने कहा कि संकेत ने इस पदक हासिल करने के लिए अपना पूरा बचपन कुर्बान कर दिया. सुबह साढ़े पांच बजे उठकर चाय बनाने से रात को व्यायामशाला में अभ्यास तक उसने एक ही सपना देखा था कि भारोत्तोलन में देश का नाम रोशन करे और अपने परिवार को अच्छा जीवन दे. अब उसका सपना सच हो रहा है.' सांगली की जिस ‘दिग्विजय व्यायामशाला' में संकेत ने भारोत्तोलन का ककहरा सीखा था, उसके छात्रों और उनके माता-पिता ने बड़ी स्क्रीन पर संकेत की प्रतिस्पर्धा देखी. यह पदक जीतकर संकेत निर्धन परिवारों से आने वाले कई बच्चों के लिये प्रेरणास्रोत बन गए.

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