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This Article is From Sep 09, 2019

दिल्ली-एनसीआर में अब आपके घर आकर खाली प्लास्टिक बोतलों खरीदेगी यह कंपनी

सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर बिसलेरी ने दिल्ली एनसीआर में 'बोतल फ़ॉर चेंज स्कीम' शुरू की, फोन करने पर घर पहुंचेगा प्रतिनिधि

बिसलेरी दिल्ली-एनसीआर में खाली प्लास्टिक बोतलों को खरीदेगी.

नई दिल्ली:

सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी के मद्देनजर बिसलेरी इसी महीने से दिल्ली और नोएडा में 'बोतल फ़ॉर चेंज स्कीम' शुरू कर रही है. इसका मकसद है कि पानी की बोतल कूड़े में नहीं, बल्कि वापस फिर बिसलेरी के पास पहुंचे. बाकायदा इसके के लिए कीमत भी तय है. लोग कॉल करेंगे और बिसलेरी का रिप्रेजेन्टेटिव उनके पास जाएगा, वज़न करेगा, उसकी कीमत देगा और फिर बोतल रीसाइकिल प्लांट में पहुंचाएगा.

बिसलेरी के सीईओ एंजेलो जॉर्ज ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि अगर बोतल साफ सुथरी है तो 15 रुपये प्रति किलो और अगर गंदी है तो 10-12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जाएगा. जॉर्ज ने बताया कि मुंबई में यह स्कीम दो साल पहले शुरू हुई और इस दौरान करीब 5000 टन प्लास्टिक बिसलेरी ने एकत्रित किया.

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क्या प्लास्टिक में बंद पानी की बोतल का वाकई कोई विकल्प है? सिंगल यूज़ प्लास्टिक को लेकर दो अक्टूबर से शुरू होने वाली मुहिम के मद्देनजर उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने बोतल बंद पानी मैन्युफैक्चरर से संभावना तलाशने की कोशिश की पर तुरंत विकल्प नहीं दिखा.  पासवान के हाथों में प्लास्टिक की पानी की बोतल के विकल्प के तौर पर तरह-तरह की बोतलें आई, पर किसी की कीमत ज़्यादा है तो किसी में थोड़े से प्लास्टिक की मिलावट. इंडस्ट्री के लोगों से मंथन चलता रहा पर नतीजा नहीं निकला. लिहाज़ा इस इंडस्ट्री को बुधवार तक का वक्त दिया गया ताकि किसी नतीजे पर पहुंचें और सुझाव दें.

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बोतल बंद पानी बनाने वाले मैन्युफैक्चरर ने बताया कि इसका फिलहाल कोई विकल्प नहीं. वहीं नेचुरल मिनरल वाटर एसोसिएशन ने भी जोर दिया कि पानी की बोतल सौ फीसदी रीसाइकिलेबल हैं. नेचुरल मिनरल वाटर एसोसिएशन के सदस्य बेहराम मेहता ने बताया कि पानी की इंडस्ट्री 30 हजार करोड़ रुपये की है. बेवरीज इंडस्ट्री को इसमें जोड़ दें तो पूरी इंडस्ट्री 7.5 लाख करोड़ रुपये की है. डिस्ट्रीब्यूशन चैन को मिला दें तो सात करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा.

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कारोबार बड़ा है और रोजगार भी, ऐसे में इंडस्ट्री की अपनी चिंता है और सरकार की अपनी चुनौती. तो देखना होगा आखिर विकल्प क्या निकलता है.

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