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This Article is From Sep 08, 2018

गले में मैडल लटकाए भोपाल की सड़कों पर भीख मांग रहा यह दिव्यांग खिलाड़ी

राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित दिव्यांग धावक मनमोहन ने मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवरज सिंह चौहान को पदक लौटने की पेशकश की

गले में मैडल लटकाए भोपाल की सड़कों पर भीख मांग रहा यह दिव्यांग खिलाड़ी
दिव्यांग खिलाड़ी मनमोहन सिंह.
नई दिल्ली: इन दिनों भोपाल की सड़कों पर गोल्ड मैडल, कांस्य पदक सहित अन्य पदकों को गले में लटकाए राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित दिव्यांग धावक को देखा जा सकता है. ये वही धावक है जिसने राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में 100 मीटर दौड़ 13 सेकंड में पूरी कर मध्यप्रदेश का नाम रौशन किया था. यही वजह थी कि सामाजिक न्याय एवं निशक्त कल्याण संचालनालय, मध्य प्रदेश द्वारा सितम्बर 2017 को मनमोहन लोधी को प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग खिलाड़ी घोषित भी किया गया था, साथ-साथ उसे प्रशंसा और प्रमाण पत्र भी जारी किया गया था. साथ ही राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी नाम प्रस्तावित किया गया था. लेकिन उसे क्या मालूम था कि उसे भोपाल की सड़कों पर भीख मांगकर अपने हक के लिए लड़ाई लड़नी पड़ेगी. 

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मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव तहसील के कंधरापुर गांव के रहने वाले मनमोहन सिंह लोधी के माता-पिता रोज़ाना मज़दूरी करके ज़िन्दगी चलाने पर मजबूर हैं. मनमोहन बचपन से आर्मी ज्वाइन कर देश की सेवा करने का जज़्बा लिए तैयारी में जुटा था लेकिन 2009 में गेहूं काटते वक्त थ्रेसर से उनका एक हाथ कट गया. लेकिन उन्होंने पढ़ाई के लिए कोशिश जारी रखी. यही वजह थी कि उसने 2010 में 12 वीं पास की. उसके आगे पढ़ाई करने के लिए गांव से 35 किलोमीटर जाना पड़ता था. घर में माता-पिता की मजदूरी से गुज़ारा करने वाले मनमोहन ने  दूसरों की मदद के सहारे बीए कर रहा है और दूसरे वर्ष का छात्र है. 
 
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मनमोहन कहता है कि जब-जब वह अपने हाथों को देखता था तो उसकी आंखों में आंसू भर जाते थे. लेकिन वह दिव्यांग होने के बावजूद  कुछ करने की ललक में गांव में ही दौड़ लगाने लगा. उसका यही जज़्बा उसको गोल्ड, कांस्य पदक पर ले जाकर रुका. लेकिन रुआंसे होकर मनमोहन कहते हैं कि मैं तो दौड़कर दुनिया में देश का झंडा लहराना चाहता हूं लेकिन परिवार की आर्थिक हालत खराब होने की वजह से अपने हक के लिए भोपाल की सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर हूं. वह कहते हैं कि भीख मांगते हुए खुद एक बार खेल मंत्री मिल गईं उन्होंने भी अधिकारियों के पास भेज दिया लेकिन अधिकारियों ने नियम कायदे समझाकर वापस कर दिया. 
 
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर मनमोहन ने अपने पदक वापस करने की इच्छा जताई. मनमोहन ने मुख्यमंत्री से कहा कि या तो मेरा मैडल वापस ले लीजिए या फिर दिव्यांग खिलाड़ी को सरकारी विभाग में नौकरी दें. मुख्यमंत्री ने अपने दूसरे सहयोगी मंत्री के पास भेज दिया और मंत्री जी ने नरसिंहपुर कलेक्टर के पास भेज दिया. मैडल प्राप्त दिव्यांग व्यक्ति होने के नाते नौकरी दिए जाने के आवेदन पर  खुद मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री हेल्प लाइन सेवा में इसको लिखवाया भी था, कि भ्रमण के दौरान दिए गए इस आवेदन का निराकरण किया जाए. लेकिन अधिकारियों ने नियम कानून समझा कर भगा दिया. लेकिन नौकरी की आस में एक दर से दूसरे दर पर भटकते-भटकते उसको भोपाल में 31 अगस्त 2010 से भोपाल की सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. सुबह सड़क पर और रात रैन बसेरे में बिताने पर मजबूर मनमोहन अपनी आस पर आज भी डटे हैं. उन्होंने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि जब तक प्रदेश में चुनाव को लेकर आचार संहिता नहीं लग जाएगी वे मुख्यमंत्री से लेकर कलेक्टर तक के दर पर अपनी नौकरी की फरियाद के लिए जाते रहेंगे.
 
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केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत को जब एनडीटीवी ने मनमोहन सिंह लोधी के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि दिव्यांगों को नौकरी के लिए केंद्र और राज्य में अलग-अलग तरह से कानून हैं. मैरिट और प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही नौकरी मिलती है. लेकिन एनडीटीवी ने मुझे इस प्रकरण के बारे में बताया है तो मैं मनमोहन को अपने मंत्रालय से लोन दिला दूंगा ताकि वे अपने गांव में लोन लेकर व्यवसाय कर लें.

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जब मनमोहन सिंह को केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री  थावरचंद गहलोत की पेशकश के बारे में बताया तो उसने कहा कि मुझे लोन की जरुरत नहीं है. मैं तो मुख्यमंत्री जी की दिव्यांगों को नौकरी देने की घोषणा के तहत ही नौकरी लेने के लिए संघर्षरत हूं. मनमोहन सरकार से मांग करते हैं कि दिव्यांग मंत्रालय बनाया जाए जिसका मंत्री खुद दिव्यांग व्यक्ति ही हो क्योंकि दिव्यांग व्यक्ति ही दूसरे दिव्यांग व्यक्ति का दर्द समझ सकता है.

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