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This Article is From Mar 09, 2017

एग्ज़िट पोल : क्या वाकई किसी की हवा नहीं बन पाई उत्तर प्रदेश में...

Sudhir Jain
  • चुनावी ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 09, 2017 20:23 pm IST
    • Published On मार्च 09, 2017 20:23 pm IST
    • Last Updated On मार्च 09, 2017 20:23 pm IST
एग्ज़िट पोल वालों ने अपना काम निपटा लिया. ये वही लोग हैं, जो पिछले तीन महीनों से सर्वेक्षणों के ज़रिये मतदाताओं को सही फैसला ले पाने में उनकी मदद के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे थे. पुराने सर्वेक्षणों और इस एग्ज़िट पोल में फर्क यह आया है कि जो माहौल बताया जा रहा था, वह बदला हुआ है. खासतौर पर उत्तर प्रदेश में किसी को भी साफ बहुमत पाते हुए नहीं दिखाया गया है. वैसे इन अनुमानों से अब नतीजों पर तो कोई फर्क पड़ना नहीं है, सो, इस लिहाज़ से एग्ज़िट पोल की कवायद देखने में बिल्कुल फिज़ूल है. इसके बावजूद अगर एग्ज़िट पोल पर इतना धन, समय और ऊर्जा खर्च की जाती है, तो कौतूहल तो पैदा होता ही है कि आखिर इसका मकसद क्या है...?

कोई तर्क देना चाहे, तो बस रहस्य-रोमांच का तर्क ही बनता है. हालांकि इस बारे में पिछले महीने ही एक विशेषज्ञ-आलेख लिखा जा चुका है. इस बीच जुड़े कुछ नए तथ्यों को जोड़ें, तो रहस्य-रोमांच के अलावा भी एक खास बात निकलती है, जो है चुनाव नतीजों के बाद जोड़-तोड़ से पूरा बहुमत जुटाने की ज़रूरत पड़ने की स्थिति. खासतौर पर उत्तर प्रदेश में जटिल समीकरण बनने का एक दूर का अंदेशा है. वास्तविक नतीजे आने में कुछ वक्त बाकी है, सो, उस स्थिति में जोड़-तोड़ के लिए अभी से प्रबंधन में ये एग्ज़िट पोल बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

दरअसल ओपिनियन पोल से हवा बन नहीं पाई...
आमतौर पर हवा बनाने में चुनावी सर्वेक्षण कामयाब हो ही जाते थे. उसके बाद एग्ज़िट पोल भी उसी के मुताबिक बताने में ज्यादा अड़चन नहीं आती थी, लेकिन इस बार सर्वेक्षणों का मकसद कामयाब नहीं हुआ, इसीलिए एग्ज़िट पोल किसी को साफ-साफ जीतता हुआ नहीं बता पा रहे हैं. लेकिन किसी को आगे और किसी को पीछे दिखाने का काम अभी भी होता हुआ दिखता है. लेकिन यहां दिलचस्प और हैरानी में डालने वाली बात यह है कि अलग-अलग एजेंसियों के अनुमान बिल्कुल अलग-अलग हैं. सारे एग्ज़िट पोलों के नतीजों का अलग-अलग विश्लेषण करें तो अनुमान यह बनता है कि उत्तर प्रदेश में कोई भी दल बहुमत पाने नहीं जा रहा है.

गठजोड़ के लिए पेशबंदी की कोशिश...
किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिखने से यह अंदेशा खड़ा होता है कि नतीजों के बाद जोड़-तोड़ की राजनीति करनी पड़ेगी. पहले जब कभी ऐसी स्थिति बनी है, सभी को अफसोस हुआ है कि जोड़-तोड़ की तैयारी पहले करके क्यों नहीं रखी. इस तरह इस बार ये एग्ज़िट पोल अपने दल के पक्ष में वह माहौल बनाने के काम आएंगे कि अगर किसी को गठजोड़ करना है तो हमारे दल के पास अभी से आ जाइए.

क्यों इतना जटिल है इस बार उत्तर प्रदेश...
तीनों बड़े दल कितना भी दावा करें कि हम ही 300 सीटें जीत रहे हैं, लेकिन रात-दिन के फर्क की तरह सबको दिख रहा है कि किसी के भी पक्ष में ऐसी हवा नहीं बनी. ओपिनियन पोल वालों ने जो हवा पहले बनाई थी, उसे उन्होंने अपनी साख बचाने के लिए अपने ही एग्ज़िट पोल में सुधार लिया. अपने पुराने और नए अनुमानों में ज्यादा फर्क दिखाने से खुद अपनी फजीहत होती है. लेकिन हेराफेरी से बाज आना भी मुश्किल होता है. सांख्यिकी के मोटे नियमों के आधार पर कहा जा सकता है कि केंद्रीय प्रवृत्ति तीनों दलों के बीच अपूर्व समानता की है. यह सांख्यिकीय अनुमान वोटों के प्रतिशत के आधार पर करने का चलन है, और दो से चार फीसदी वोटों के अंतर से सीटों की संख्या 40 फीसदी कम या ज्यादा बढ़ जाने की सूरत बन जाती है. केंद्रीय प्रवृत्ति के हिसाब से हर दल के खाते में औसतन 130 सीटें बनती है.

अगर 20-25 सीटें कम पड़ीं, तो...
दो से चार फीसदी वोटों के अंतर का अनुमान लगाकर हिसाब करें तो किसी भी दल की रेंज नीचे की तरफ 90 सीट से लेकर उपर की तरफ 180 सीट ही बनती है. यानी, ऐसे माहौल में कतई आश्चर्य की बात नहीं कि सबसे बड़े प्रतिभागी को 20 से 25 सीटों का टोटा पड़ जाए. नतीजों के ऐलान के बाद इन्हीं सीटों का जुगाड़ करने के लिए जोड़-तोड़ की सूरत बनने का अंदेशा है. इसी के प्रबंधन के लिए अभी से कोशिशें शुरू होंगी. इसी दूर के अंदेशे से निपटने के लिए एग्ज़िट पोल वालों ने शतरंज की बाजी बिछा दी है. यानी, आश्चर्य नहीं होना चाहिए, अगर 11 मार्च को नतीजे आने से पहले ही सभी दल जोड़-तोड़ करने या जोड़-तोड़ न हो सके, इसकी सुरक्षा में लगे नजर आएं. अगर वाकई ऐसा होता दिखता है तो यह एग्ज़िट पोल वालों का ही कमाल होगा.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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