प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
भारत के छोटे और मंझोले उद्योग यानी MSME सेक्टर में करीब 3.60 करोड़ यूनिट रजिस्टर्ड हैं. अगर गैर पंजीकृत यूनिट को भी जोड़ दें तो इन इकाइयों की संख्या करीब चार करोड़ बताई जाती है. इनमें 12 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है. ये एक ऐसा सेक्टर है जो पिछले कुछ सालों में एक नियत रफ्तार से बढ़ा है. लेकिन पिछले एक साल में इन उद्योगों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
बजट के वक्त इन व्यापारियों की वित्तमंत्री से कुछ मांगें हैं. पहली मांग है कि कॉर्पोरेट टैक्स की दर घटाई जाए. व्यापारी कहते हैं कि पिछले बजट में वित्तमंत्री ने कॉर्पोरेट टैक्स को धीरे-धीरे कम करने की बात कही थी लेकिन इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए हैं. दिल्ली के नारायणा इलाके में एसकेएन बैंटेक्स के एमडी कपिल चोपड़ा कहते हैं, "कॉर्पोरेट टैक्स आज भी 30 प्रतिशत है और उसके ऊपर सरचार्ज और सेस है. यह मिलाकर 35% तक चला जाता है. यह मैक्सिमम 25% होना चाहिए. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से भी तभी इंडस्ट्रियल ग्रोथ होगी. बहुत कम, चुनिंदा लोग ही हैं जो टैक्स देते हैं. उसके हिसाब से अगर 25% देंगे तो छोटे और मंझोले कारोबारियों का हौसला बढ़ेगा."
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जानकार कहते हैं कि सरकार ने पिछले बजट में कॉर्पोरेट टैक्स घटाने की बात ज़रूर कही थी लेकिन शायद वह इस दिशा में शुरुआत करने से पहले जीएसटी से टैक्स वसूली को संतोषजनक स्तर पर लाना चाहती है. वैसे जीएसटी को लेकर भी एमएसएमई सेक्टर में भी कारोबारियों के लिए अभी दिक्कतें बनी हुई हैं. जैसे शिमला में काम कर रहे कॉस्मेटिक उत्पादों के कारोबारी कुलदीप सिंह बग्गा, जिन्हें अब भी अपने कारोबार के लिए वैट के साथ एल्कोहल खरीदना पड़ता है. बग्गा कहते हैं, "अगर जीएसटी को चालू करना है तो जीएसटी को पूरी तरह से लागू करें वैट को बीच में से हटाएं.. मै आपको एक मिसाल देता हूं. हम लोग एल्कोहल खरीदते हैं कॉस्मैटिक इंडस्ट्री में.. एल्कोहल वैट में कवर है. हमें वैट पे करके खरीदना पड़ता है, जो कि हमें उसका इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता क्योंकि आगे हमारी सेल जीएसटी के अंडर है तो कॉस्ट एडीशन हो जाती है."
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MSME सेक्टर का मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में 6.11 प्रतिशत योगदान है और सर्विस जीडीपी का 24.63 प्रतिशत इस सेक्टर से आता है. कुल मैन्युफैक्चरिंग में इस सेक्टर का योगदान एक तिहाई है जिसका देश के कुल निर्यात में करीब 45 प्रतिशत योगदान है. फिर भी प्रिंटिंग के कारोबार से जुड़े सुरिन्दर बंसल जैसे लोगों की दिक्कतें कम नहीं हैं क्योंकि जो मशीनें वे इस्तेमाल करते हैं उनमें निर्माता की मोनोपॉली है. सुरिन्दर बंसल कहते हैं, "अगर हम मशीन बाहर से आयात करना चाहते हैं तो इम्पोर्ट और इज़ी होना चाहिए क्योकि देश में बहुत कम बनती हैं. जब मशीन बनती नहीं तो इम्पोर्ट ही होगी ना. एल्युमीनियम प्लेट बनाने वाला एक ही बन्दा है तो उसकी मोनोपॉली हो गई ना. और लोगों को भी लाइसेंस देकर प्लेटें बनाई जाएं."
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सरकार भले ही ईज़ ऑफ बिजनेस की बात दुनिया भर में कर रही हो लेकिन कपिल चोपड़ा जैसे कारोबारियों का कहना है कि इस दिशा में छोटे कारोबारियों के लिए तमाम दिक्कतें बनी हुई हैं. चोपड़ा बताते हैं “मान लो आज किसी को अपना एक नया बिजनेस स्टार्ट करना है तो उसे कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लाइसेंस से लेकर तमाम पेपर वर्क तक. पहले बिल्डिंग, फिर नक्शे फिर मशीनरी और फिर दूसरे क्लियरेंस. यह सब समझने में ही उसकी जिंदगी के पांच-छह साल निकल जाते हैं."
VIDEO : छोटे उद्योगों पर जीएसटी का बुरा असर
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि 20 प्रतिशत MSMEs देहाती इलाकों में हैं.. इससे साफ है कि प्रधानमंत्री के इन्क्लूसिव ग्रोथ के नारे में इस सेक्टर का कितना रोल होगा.. इस लिहाज से भी इन कारोबारियों को सुनने की ज़रूरत है.
बजट के वक्त इन व्यापारियों की वित्तमंत्री से कुछ मांगें हैं. पहली मांग है कि कॉर्पोरेट टैक्स की दर घटाई जाए. व्यापारी कहते हैं कि पिछले बजट में वित्तमंत्री ने कॉर्पोरेट टैक्स को धीरे-धीरे कम करने की बात कही थी लेकिन इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए हैं. दिल्ली के नारायणा इलाके में एसकेएन बैंटेक्स के एमडी कपिल चोपड़ा कहते हैं, "कॉर्पोरेट टैक्स आज भी 30 प्रतिशत है और उसके ऊपर सरचार्ज और सेस है. यह मिलाकर 35% तक चला जाता है. यह मैक्सिमम 25% होना चाहिए. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हिसाब से भी तभी इंडस्ट्रियल ग्रोथ होगी. बहुत कम, चुनिंदा लोग ही हैं जो टैक्स देते हैं. उसके हिसाब से अगर 25% देंगे तो छोटे और मंझोले कारोबारियों का हौसला बढ़ेगा."
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जानकार कहते हैं कि सरकार ने पिछले बजट में कॉर्पोरेट टैक्स घटाने की बात ज़रूर कही थी लेकिन शायद वह इस दिशा में शुरुआत करने से पहले जीएसटी से टैक्स वसूली को संतोषजनक स्तर पर लाना चाहती है. वैसे जीएसटी को लेकर भी एमएसएमई सेक्टर में भी कारोबारियों के लिए अभी दिक्कतें बनी हुई हैं. जैसे शिमला में काम कर रहे कॉस्मेटिक उत्पादों के कारोबारी कुलदीप सिंह बग्गा, जिन्हें अब भी अपने कारोबार के लिए वैट के साथ एल्कोहल खरीदना पड़ता है. बग्गा कहते हैं, "अगर जीएसटी को चालू करना है तो जीएसटी को पूरी तरह से लागू करें वैट को बीच में से हटाएं.. मै आपको एक मिसाल देता हूं. हम लोग एल्कोहल खरीदते हैं कॉस्मैटिक इंडस्ट्री में.. एल्कोहल वैट में कवर है. हमें वैट पे करके खरीदना पड़ता है, जो कि हमें उसका इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता क्योंकि आगे हमारी सेल जीएसटी के अंडर है तो कॉस्ट एडीशन हो जाती है."
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MSME सेक्टर का मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में 6.11 प्रतिशत योगदान है और सर्विस जीडीपी का 24.63 प्रतिशत इस सेक्टर से आता है. कुल मैन्युफैक्चरिंग में इस सेक्टर का योगदान एक तिहाई है जिसका देश के कुल निर्यात में करीब 45 प्रतिशत योगदान है. फिर भी प्रिंटिंग के कारोबार से जुड़े सुरिन्दर बंसल जैसे लोगों की दिक्कतें कम नहीं हैं क्योंकि जो मशीनें वे इस्तेमाल करते हैं उनमें निर्माता की मोनोपॉली है. सुरिन्दर बंसल कहते हैं, "अगर हम मशीन बाहर से आयात करना चाहते हैं तो इम्पोर्ट और इज़ी होना चाहिए क्योकि देश में बहुत कम बनती हैं. जब मशीन बनती नहीं तो इम्पोर्ट ही होगी ना. एल्युमीनियम प्लेट बनाने वाला एक ही बन्दा है तो उसकी मोनोपॉली हो गई ना. और लोगों को भी लाइसेंस देकर प्लेटें बनाई जाएं."
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सरकार भले ही ईज़ ऑफ बिजनेस की बात दुनिया भर में कर रही हो लेकिन कपिल चोपड़ा जैसे कारोबारियों का कहना है कि इस दिशा में छोटे कारोबारियों के लिए तमाम दिक्कतें बनी हुई हैं. चोपड़ा बताते हैं “मान लो आज किसी को अपना एक नया बिजनेस स्टार्ट करना है तो उसे कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लाइसेंस से लेकर तमाम पेपर वर्क तक. पहले बिल्डिंग, फिर नक्शे फिर मशीनरी और फिर दूसरे क्लियरेंस. यह सब समझने में ही उसकी जिंदगी के पांच-छह साल निकल जाते हैं."
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