आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना की वकालत की गई है...
नई दिल्ली:
सरकार ने पहली बार सभी नागरिकों को लिए आमदनी यानी यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) की बात औपचारिक रूप से छेड़ी है. मंगलवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि चाहे यूबीआई को लागू करने का समय अभी नहीं आया हो लेकिन इस पर गंभीर रूप से चर्चा होनी चाहिए. आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी सबके लिए आमदनी योजना की वकालत की गई है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी यूबीआई गरीबी कम करने के लिए कई सामाजिक कल्याण योजनाओं का विकल्प हो सकती है.
हालांकि सरकार ने ये माना है कि यूबीआई को लागू करने में कई चुनौतियां हैं. एक बड़ी संभावना ये भी है कि ये गरीबी हटाने की मौजूदा योजनाओं और सामाजिक कार्यक्रमों का विकल्प बनने के बजाए उन्हीं में जुड़ कर रह जाए. सर्वेक्षण में महात्मा गांधी का भी जिक्र किया गया है और कहा गया है कि वो भी इस योजना को लेकर चिंतित हो सकते थे कि ये भी किसी अन्य सरकारी कार्यक्रम की ही तरह है लेकिन आखिरकार वो भी इसे मंजूरी दे देते.
...तो मोदी सरकार इस फार्मूले से बढ़ाएगी गरीबों की आय, बजट में हो सकती है घोषणा
सर्वेक्षण के मुताबिक सभी नागरिकों के लिए आमदनी की योजना को लागू करने के लिए दो चीजें चाहिएं- पहला तो जाम यानी जनधन, आधार और मोबाइल और दूसरा राज्य तथा केंद्र सरकार के बीच कार्यक्रम के खर्च को लेकर करार. इस योजना को लागू करने से ऐसी यूबीआई योजना जिससे 0.5 फीसदी गरीबी कम हो सके, उसे लागू करने में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब 4-5 फीसदी खर्च आएगा. ऐसा तब जबकि ये मान लिया जाए कि सबसे ज्यादा कमाने वाले 25 फीसदी लोग इसके दायरे में न आएं. जबकि दूसरी तरफ राशन, पेट्रोलियम और खाद की सब्सिडी देने में सरकार को जीडीपी का करीब 3 फीसदी खर्च करना पड़ता है. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यूबीआई चाहे अभी लागू करने का समय न आया हो, लेकिन इस पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए.
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम
इस योजना में प्रावधान है कि हर नागरिक को सरकार हर महीने एक निश्चित रकम देगी. यह रकम कितनी हो यह गरीबी रेखा के मानक से तय किया जा सकता है. यह योजना लागू होने के बाद सरकार की ओर दी जा रही सभी तरह की सब्सिडी खत्म कर दी जाएगी.
हालांकि सरकार ने ये माना है कि यूबीआई को लागू करने में कई चुनौतियां हैं. एक बड़ी संभावना ये भी है कि ये गरीबी हटाने की मौजूदा योजनाओं और सामाजिक कार्यक्रमों का विकल्प बनने के बजाए उन्हीं में जुड़ कर रह जाए. सर्वेक्षण में महात्मा गांधी का भी जिक्र किया गया है और कहा गया है कि वो भी इस योजना को लेकर चिंतित हो सकते थे कि ये भी किसी अन्य सरकारी कार्यक्रम की ही तरह है लेकिन आखिरकार वो भी इसे मंजूरी दे देते.
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सर्वेक्षण के मुताबिक सभी नागरिकों के लिए आमदनी की योजना को लागू करने के लिए दो चीजें चाहिएं- पहला तो जाम यानी जनधन, आधार और मोबाइल और दूसरा राज्य तथा केंद्र सरकार के बीच कार्यक्रम के खर्च को लेकर करार. इस योजना को लागू करने से ऐसी यूबीआई योजना जिससे 0.5 फीसदी गरीबी कम हो सके, उसे लागू करने में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब 4-5 फीसदी खर्च आएगा. ऐसा तब जबकि ये मान लिया जाए कि सबसे ज्यादा कमाने वाले 25 फीसदी लोग इसके दायरे में न आएं. जबकि दूसरी तरफ राशन, पेट्रोलियम और खाद की सब्सिडी देने में सरकार को जीडीपी का करीब 3 फीसदी खर्च करना पड़ता है. आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यूबीआई चाहे अभी लागू करने का समय न आया हो, लेकिन इस पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए.
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम
इस योजना में प्रावधान है कि हर नागरिक को सरकार हर महीने एक निश्चित रकम देगी. यह रकम कितनी हो यह गरीबी रेखा के मानक से तय किया जा सकता है. यह योजना लागू होने के बाद सरकार की ओर दी जा रही सभी तरह की सब्सिडी खत्म कर दी जाएगी.
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