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विश्व वन्यजीव दिवस पर चलिए मेरे साथ काजीरंगा अभयारण्य की यात्रा पर

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 03, 2025 16:47 pm IST
    • Published On मार्च 03, 2025 16:39 pm IST
    • Last Updated On मार्च 03, 2025 16:47 pm IST
विश्व वन्यजीव दिवस पर चलिए मेरे साथ काजीरंगा अभयारण्य की यात्रा पर

आज विश्व वन्यजीव दिवस है. सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गीर अभयारण्य में जंगल सफारी करने गए. उन्होंने किसी आम पर्यटक की तरह सुबह सफारी शुरू की और कई वन्य जीव देखे जिनमें शेर, शावक, हिरण, मोर आदि शामिल हैं. वन्य जीव दिवस पर वन्य जीवों के संरक्षण के लिए यह बहुत ही सकारात्मक कदम है. जंगल सफारी की तस्वीरों को देख कर मुझे पिछले सप्ताह की अपनी काजीरंगा राष्ट्रीय अभयारण्य की यात्रा की याद आ गई.

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पिछले सप्ताह मैं एडवांटेज असम 2.0 के कवरेज के लिए गुवाहटी में था. यह इंवेस्टर समिट 25 और 26 फरवरी को हुआ. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी. समिट से ठीक एक दिन पहले यानी 24 फरवरी को सरुसजाई स्टेडियम में बेहद भव्य कार्यक्रम हुआ. यह कार्यक्रम था झुमोइर बिनंदिनी. झुमोइर असम के चाय बागानों में काम करने वाले लोगों और आदिवासियों का पारंपरिक नृत्य है. दुनियाभर में मशहूर असम की चाय इन्हीं बागानों में उगाई जाती है. महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य में चाय के बागान शुरू हुए 200 साल पूरे हो चुके हैं. इसी मौके पर 8500 से भी अधिक कलाकारों ने सरुसजाई स्टेडियम में झुमोइर नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी. इस मौके पर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उपस्थित थे. इस नृत्य का हजारों दर्शकों की तरह उन्होंने भी आनंद लिया. वे ड्रम बजाते हुए नजर आए.

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इस नृत्य का आनंद लेने वाले हजारों लोगों में मैं भी शामिल था. यह वास्तव में एक अद्भुत दृश्य था. हजारों कलाकार खुले मैदान में उपस्थित थे. युवतियां एक-दूसरे को कमर से थामे हुई थीं और नंगे पैर नृत्य में हिस्सा ले रही थीं.वे पहले सीधी लाइन में खड़ी थीं. वहीं युवक ढोल, माडल, ढमसा और बांसुरी लिए सीधी पंक्ति में खड़े थे. जैसे ही नृत्य शुरू हुआ, अचानक माहौल बदल गया. वे सीधी कतारें पहले अर्द्ध वृत्त और धीरे-धीरे पूर्ण वृत्त में बदल गईं. कल्पना कीजिए कि हजारों लोग संगीत की धुन पर एक साथ, एक ही तरह से थिरकते हुए मैदान पर अलग-अलग आकार ले रहे हों. यह आकार लगातार बदलता जा रहा था और इसी के साथ उत्तेजित दर्शकों का शोर भीय वे हर बदलते आकार के साथ जोरदार तालियां बजाकर कलाकारों का उत्साह बढ़ा रहे थे. यह विहंगम दृश्य करीब आधे घंटे तक चलता रहा. इस प्रस्तुति ने भाव-विभोर कर दिया.

असम के चाय बागानों में अंग्रेजों ने मध्य और पूर्वी भारत के राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार आदि राज्यों से लोगों को लाकर काम कराना शुरू किया था. वे अपने साथ अपनी-अपनी संस्कृति लाए और असम की संस्कृति में मिल कर एक हो गए. झूमोइर या झूमर नृत्य इसी संस्कृति की प्रस्तुति है. इससे पहले इसी स्टेडियम में हजारों कलाकारों ने एक साथ बिहू नृत्य प्रस्तुत कर रिकॉर्ड भी बनाया था.

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इंवेस्टर समिट के कवरेज के बाद काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जाने का कार्यक्रम बना. यह नेशनल पार्क किसी परिचय का मोहताज नहीं. पूरी दुनिया में एक सींग वाले गैंडे सबसे अधिक संख्या में यहीं पाए जाते हैं. सरकार की नीतियों ने न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की है, बल्कि फॉरेस्ट गार्ड की चौकस निगाहों ने शिकारियों को भी इस पार्क से दूर रखा है.

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हमारी सफारी भी सुबह शुरू हुई. हम कोहरा प्वाइंट पहुंचे जहां हमने जीप से सफारी शुरू की. खुली जीप में सुबह की ठंडी हवा एक अलग ही आनंद दे रही थी. मन में दिल्ली एनसीआर की हवा का विचार आया और तुरंत स्मार्टफोन पर काजीरंगा नेशनल पार्क की हवा का एक्यूआई चेक किया. जमीन-आसमान का अंतर था. यह भी सोचा कि कहीं इतनी शुद्ध हवा से बीमार न हो जाएं क्योंकि शरीर को प्रदूषित हवा की आदत पड़ चुकी है. कुछ दूर चलते ही सबसे पहले प्रवासी पक्षी दिखे हालांकि उनकी संख्या कम थी. आगे चलने पर गाइड ने दूर घास चरते गैंडे को दिखाया. यह इलाका खुला था और यहां पानी के कई स्रोत थे. यही कारण है कि प्रवासी पक्षी और गैंडे यहां डेरा डाले हुए थे. कुछ ही दूर पर जंगली भैंस और सुअर भी दिखाई दिया. आगे जाकर बड़ी झील दिखी जहां हर वर्ष आने वाली बाढ़ का जल स्तर दर्ज है.

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दरअसल, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पशु-पक्षियों के लिए हर साल आने वाली बाढ़ काफी संकट में डालने वाली होती है. पानी बढ़ने से उनके डूबने का खतरा बढ़ जाता है. पिछले साल काजीरंगा में आई बाढ़ के कारण 31 पशुओं की मौत हो गई थी, जिनमें 23 हॉग हिरण भी थे. एक रॉयल बंगाल टाइगर रास्ता भटक कर गांव में घुस गया था. बाढ़ का जलस्तर बताने वाला पैमाना दिखा रहा था कि 1988 के बाद से 2017, 2019 और फिर 2024 में जल स्तर सबसे अधिक था. जिन ऊंचे रास्तों से सफारी की जीप चलती है, उन्हें ही बाढ़ के दौरान हाई लैंड या बाढ़ से बचने की ऊंची जगहों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे कुछ अन्य ऊंचे स्थान भी बनाए गए हैं जहां पशु बाढ़ के दौरान शरण लेते हैं. इस समय उनके खाने की व्यवस्था भी वन विभाग की ओर से की जाती है.

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थोड़ा आगे चलने पर एक गैंडा बिल्कुल नजदीक दिखा. जीप देख कर वह तेजी से उसकी ओर लपका. जीप में बैठे सभी लोग घबरा गए. जीप में एक गार्ड भी था, जो सतर्क हो गया, लेकिन फिर गैंडे ने कुछ सोच कर रास्ता बदल लिया. गाइड ने बताया कि यह इस इलाके में नया आया है लिहाजा अपना इलाका मजबूत कर रहा है.उसे जीप देख कर शायद लगा हो कि यह उसके इलाके में घुस आई इसलिए वह उसके पीछे भागा.

बहरहाल, जैसे-जैसे आगे बढ़े माहौल बदलता गया. खुला मैदान अब घास के घने जंगल में बदलता जा रहा था. इसे एलीफेंट ग्रास कहते हैं, जो काफी ऊंची होती है. नाम शायद इसीलिए पड़ा कि इसमें हाथी भी छुप जाए. यह सुनते ही सवाल उठा कि क्या यहां जंगली हाथी भी हैं और दूर से आती हाथी की चिंघाड़ से उसका जवाब भी मिल गया, हालांकि यहां पर पालतू हाथी भी बड़ी संख्या में हैं, जिनसे आप सफारी कर सकते हैं.

अब गैंडे सब दूर दिखाई दे रहे थे. एक मादा और उसका बच्चा तो बिल्कुल सड़क के पास ही घास चर रहे थे. फोटो खींचने और गैंडे के साथ सेल्फी लेने का इससे अच्छा मौका मिल ही नहीं सकता था. लिहाजा एक के बाद एक जीप वहां रुकने लगीं. सभी टूरिस्ट ने जमकर मां-बच्चे का फोटो खींचा. पूरे नेशनल पार्क में जीप के आने-जाने के लिए कच्ची सड़क है और रूट इस तरह बनाया गया है कि आप एक बड़ा हिस्सा कुछ घंटों में घूम सकते हैं. इस कच्ची सड़क के दोनों ओर सेमल के बड़े पेड़ हैं. घास उगती रहे इसके लिए कई पेड़ हटा कर जेसीबी से मैदान समतल किया जा रहा था. नई घास उग सके, इसके लिए पुरानी घास को जलाया भी जाता है. हमने देखा कि जली हुई घास की जड़ों में नई घास की कोंपले फूटने लगी थीं.

कुछ दूर आगे जाने पर पार्क का रंग-रूप बदल गया. अब घास की जगह ऊंचे और घने पेड़ों ने ले ली थी. हवा में ठंडक बढ़ गई थी और वातावरण बिल्कुल शांत हो चला था. बीच-बीच में पक्षियों का कोलाहल इस शांति को भंग कर रहा था. मैंने अपने साथियों से शांत रहने का अनुरोध किया ताकि जंगल की इस खामोशो को मैं अपने मस्तिष्क में कैद कर सकूं. आगे बढ़ने पर हमें गिद्ध के घोंसले दिखाए गए. इनमें गिद्ध और उनके बच्चे मौजूद थे. इसी बीच एक जंगली मुर्गा हमारा रास्ता काट गया.उससे नजर हटी कि अचानक एक जंगली सुअर तेजी से भागता हुआ नजर आया. गाइड ने हमें दिखाया कि दूर किसी पशु की मौत हुई है क्योंकि वहां बड़ी संख्या में वल्चर दिखाई दे रहे थे. यह प्राकृतिक मृत्यु भी हो सकती है या फिर टाइगर का शिकार भी..

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टाइगर का जिक्र आते ही सवाल उठा क्या टाइगर दिखेगा? गाइड ने बताया कि इस समय तो मुश्किल है, क्योंकि अब तेज धूप होने लगी है. हां, थोड़ा आगे चलने पर उसने पेड़ पर टाइगर के नाखूनों के निशान जरूर दिखाए. यह देखकर निराशा हुई क्योंकि इससे पहले भी मैं जिन नेशनल पार्क में गया वहां पेड़ों पर टाइगर के नाखूनों के निशान या कच्चे रास्ते पर पड़ा उनका मल दिखा कर ही खाली हाथ वापस भेज दिया गया थाय. इस बार भी ऐसा ही हुआ.

यहां यह बताना आवश्यक है कि काजीरंगा में गैंडे के संरक्षण के लिए बेहद कड़ी सुरक्षा व्यवस्था है. वन विभाग पूरे समय चौकस रहता है. जगह-जगह वॉच टॉवर बने हैं. आने-जाने वालों पर नजर रखी जाती है. यही कारण है कि यहां गैंडों की संख्या लगातार बढ़ रही है. एक अनुमान के अनुसार यहां करीब 2800 एक सींग वाले गैंडे हैं. बहरहाल, असम चाय के गर्मागर्म प्याले के साथ काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की यह यात्रा समाप्त हुई जिसने इस सफारी को और अधिक मजेदार बना दिया.

अखिलेश शर्मा, एनडीटीवी में एग्जीक्यूटिव एडिटर (पॉलिटिकल) हैं. इस लेख में लेखक के निजी विचार हैं. 

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