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This Article is From Apr 07, 2016

वर्ल्ड हेल्थ-डे पर विशेष : आंखों को इस घातक रोग से बचाने के लिए डायबिटीज को हराना ही होगा...

Dr Vineet Ratra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 08, 2016 12:11 pm IST
    • Published On अप्रैल 07, 2016 15:30 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 08, 2016 12:11 pm IST
स्वास्थ्य के महत्व की ओर बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अगुवाई में हर साल 7 अप्रैल को पूरे विश्व में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसके लिए WHO द्वारा हर वर्ष एक थीम तय की जाती है और उसी के अनुरूप इस दिवस पर जनजागरुकता वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस साल इसकी थीम है- "डायबिटीज को हराओ"। ऐसा इसलिए क्योंकि डायबिटीज जिसे सामान्य भाषा में मधुमेह कहा जाता है, वर्तमान दौर में दुनियाभर में तीसरा सबसे आम स्वास्थ्य विकार है, वहीं यह मृत्यु का चौथा कारण है।

टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज में से टाइप-2 का प्रसार विकसित और विकासशील दोनों में तेजी से हो रहा है। हाल के विश्लेषण के मुताबिक वर्तमान में भारत में लगभग चार करोड़ डायबिटीज रोगी हैं। आशंका है कि वर्ष 2030 तक यह संख्या आठ करोड़ से भी अधिक हो सकती है। ऐसे में इसके प्रति जागरुकता जरूरी है। वास्तव में डायबिटीज का सबसे अधिक प्रभाव शरीर के दो अंगों पर पड़ता है- आंख और किडनी। आंखों का विशेषज्ञ होने के नाते मैं आपको डायबिटीज की वजह से आंखों में सबसे अधिक होने वाले रोग ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ और उसके बचाव-उपचार के बारे में बताने जा रहा हूं, ताकि आप सही समय पर सतर्क हो जाएं और अपनी आंखों को गंभीर क्षति (अंधत्व) होने से बचा सकें।

सबसे पहले हम यह समझते हैं कि डायबिटिक रेटिनोपैथी है क्या और इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं। डायबिटिक रेटिनोपैथी डायबिटीज की वजह से आंखों में होने वाला सबसे आम रोग है, जो अंधत्व का मुख्य कारण होता है। यह रेटिना की रक्त वाहिनियों में परिवर्तन की वजह से होता है। आप सोच रहे होंगे कि यह रेटिना क्या है, तो सामान्य शब्दों में रेटिना आंखों के पिछले भाग में स्थित प्रकाश संवेदी ऊतकों से बनी एक परत है, जो बेहद संवेदनशील होती है।

अब जानते हैं कि आखिर डायबिटीज इसे किस प्रकार प्रभावित करता है। दरअसल डायबिटीज होने पर यदि रक्त शर्करा (ब्लड ग्लूकोज) का स्तर कुछ वर्षों तक लगातार निर्धारित अधिकतम मात्रा से काफी अधिक के स्तर पर बना रहता है, तो इससे रेटिना की छोटी रक्त वाहिनियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इसकी वजह से इन रक्त वाहिनियों की भित्ति में अतिसूक्ष्म दरारें आ जाती हैं, जिससे माइक्रोएन्यूरिज्म हो जाता है। इससे रेटिना में द्रव का रिसाव होने लगता है। इसके साथ ही डायबिटीज के कारण रेटिना की सूक्ष्म रक्त वाहिनियां भी अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे उसमें रक्त की सप्लाई कम हो जाती है। इसके कारण दृष्टि (विजन) कमजोर हो जाती है और रेटिना के ऊपर नई रक्त वाहिनियों की असामान्य वृद्धि होने लगती है।

हालांकि आमजन के लिए इसे समझना कठिन हो सकता है, लेकिन फिर भी मैंने इसे सरलतम शब्दों में बताने की कोशिश की, ताकि आपको इसके बारे में बेसिक जानकारी मिल जाए।

डायबिटिक रेटिनोपैथी की दो स्टेज होती हैं- नान प्रॉलिफरेटिव और प्रॉलिफरेटिव। आपके लिए इसके बारे में विस्तार से जानना आवश्यक नहीं है, क्योंकि इसके बारे में आपके विशेषज्ञ डॉक्टर को पता होता है और यह उपचार के निर्धारण में उसके लिए ही सहायक होती हैं।
 

अब मैं आपको उन लोगों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनमें डायबिटिक रेटिनोपैथी का सबसे अधिक जोखिम होता है। कुछ लोग सोचते हैं कि यह केवल टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों में ही होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल इसका जोखिम डायबिटीज टाइप-1 और टाइप-2, दोनों प्रकार के सभी रोगियों में होता है, इसीलिए डायबिटीज के किसी भी रोगी को साल में कम से कम एक बार नेत्र विशेषज्ञ के पास जाकर अपनी आंखों की समुचित जांच (डायलेशन वाली) करानी चाहिए। खास बात यह कि आपका डायबिटीज जितना पुराना होगा, आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी का उतना ही खतरा होगा। डायबिटीज वाले लगभग 40 से 45 फीसदी लोगों में यह किसी न किसी अवस्था में मौजूद होता है। यदि आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी है तो आपका डॉक्टर इसके फैलाव को रोकने के लिए उपचार की अनुशंसा कर सकता है।

एक महत्वपूर्ण जानकारी डायबिटीज से पीड़ित उन महिलाओं के लिए, जो गर्भवती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए डायबिटिक रेटिनोपैथी एक समस्या हो सकती है। दृष्टि (विजन) को बचाने के लिए, डायबिटीज से पीड़ित प्रत्येक गर्भवती महिला को जितनी जल्दी हो सके अपनी आंखों की जांच (डायलेशन वाली) करानी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान आपका चिकित्सक अतिरिक्त जांचें कराने की सलाह दे सकता है।

अब मैं आपको वह उपाय बताने जा रहा हूं, जिन्हें अपनाकर आप डायबिटीज होने के बावजूद समय रहते अपनी आंखों की रोशनी कम होने या पूरी तरह चले जाने से बच सकते हैं।

यदि आपको डायबिटीज हो, तो साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की समुचित जांच (डायलेशन वाली) अवश्य कराएं और इन बातों का ध्यान रखें :
  • प्रॉलिफरेटिव रेटिनोपैथी बिना किसी लक्षण या संकेत के भी हो सकती है। यह बीमारी की एडवांस स्टेज होती है, जिसमें आपकी आंखों की रोशनी जाने का अत्यधिक जोखिम होता है।
  • डायबिटिक रेटिनोपैथी की किसी भी स्टेज में मैक्यूलर एडीमा हो सकता है, जिसमें जरूरी नहीं है कि लक्ष्ण दिखें ही।
  • प्रॉलिफरेटिव रेटिनोपैथी और मैक्यूलर एडीमा होने पर भी आपकी दृष्टि अच्छी हो सकती है, लेकिन इस स्थिति में भी आपकी आंखों की रोशनी जाने का अत्यधिक जोखिम होता है।
  • सही समय पर निदान और उपचार से आंखों की रोशनी जाने से रोका सकता है।
  • डायबिटिक रेटिनोपैथी का निदान हो जाने पर आपको बार-बार आंखों की जांच करानी पड़ सकती है। नियमित रूप से जांच कराने से आप अपनी आंखों को बचा सकते हैं।
  • अपने HbA1C स्तर को 7% से नीचे बनाए रखें। यह एक ऐसी जांच है, जिससे यह पता चलता है कि आपने पिछले 2-3 माह में डायबिटीज पर कितना नियंत्रण रखा है। यदि HbA1C का स्तर 7% से कम होता है, तो अधिकांश मामलों में यह माना जाता है कि रोगी ने रक्त में शुगर के स्तर को अच्छी तरह नियंत्रित रखा है। इससे रेटिनोपैथी के बढ़ने की गति धीमी पड़ जाती है। इतना ही नहीं इससे आंखों की रोशनी बचाने के लिए की जानी वाली सर्जरी की भी संभावना कम हो जाती है।

यह तो रहे बचाव के उपाय। अब मैं आपको उन लक्ष्णों के बारे में बताने जा रहा हूं, जिनसे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि कहीं आपको डायबिटिक रेटिनोपैथी तो नहीं है-

डायबिटिक रेटिनोपैथी की शुरुआती अवस्था में तब तक कोई खास लक्षण नजर नहीं आते जब तक कि रेटिना का मध्य भाग मैक्युला प्रभावित नहीं होता। कई बार तो एडवांस स्टेज वाले प्रॉलिफरेटिव रेटिनोपैथी में भी आंखों की रोशनी बिल्कुल ठीक रहती है। हालांकि जैसे-जैसे रेटिनोपैथी बढ़ता है, वैसे-वैसे दृष्टि कमजोर होती जाती है, यहां तक कि अंधत्व भी हो सकता है। इसलिए भले ही आपकी आंखों की रोशनी ठीक हो, फिर भी लक्षणों की प्रतीक्षा नहीं करते हुए साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की समुचित जांच करवा लें। यदि रेटिनोपैथी है, तो उसकी स्टेज के अनुसार अपने डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें और समुचित उपचार लें, भले ही दृष्टि (विजन) सही हो।

आपकी जानकारी के लिए मैं कुछ खास लक्ष्णों के बारे में बता रहा हूं-
  • आंखों की केंद्रीय रोशनी का कम होना
  • धुंधला दिखना
  • छोटे अक्षरों को पढ़ने में परेशानी होना
  • देखने के दौरान काले धब्बे या रेखाएं नजर आना
  • विजन फील्ड में खाली स्थान दिखना
  • पूर्ण अंधत्व

इसका पता लगाने के लिए आपका डॉक्टर कई टेस्ट करवा सकता है, जो आपकी आंखों की स्थिति पर निर्भर करते हैं, वहीं इसके उपचार के लिए अलग-अलग दवाओं का उपयोग किया जाता है, जो रोग की गंभीरता और स्टेज के आधार पर तय की जाती हैं। इन दवाइयों से सेंट्रल रेटिना की सूजन कम हो जाती है और दृष्टि में भी सुधार हो सकता है। कई मामलों में लेजर उपचार भी किया जाता है। रोग के एडवांस स्टेज में पहुंच जाने पर आंखों की रोशनी लौटाने के लिए विट्रियोरेटिनल सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है, लेकिन हमारा प्रयास आंखों को इस स्टेज तक पहुचंने से रोकने का होना चाहिए और ऐसा डायबिटीज के प्रति सावधानी बरत कर और जागरुकता के माध्यम से किया जा सकता है, क्योंकि आंखें हैं तो सबकुछ है। इसलिए डायबिटीज को नजरअंदाज न करें।

- डॉ. विनीत रात्रा, नवसूजा शंकर नेत्रालय, चेन्नई में वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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