नेतृत्व में महिलाओं को शामिल कर किस तरह से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाकर उनके परिवार और अर्थव्यवस्था में बदलाव लाया जा सकता है. भारत के सांसदों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 को पारित किया था.यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी. यह विधेयक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं का 33 फीसद आरक्षण देता है. यह विधेयक महिला नेतृत्व के जरिए देश के नीति-निर्माताओं के रूप में सुरक्षित प्रतिनधित्व का मार्ग प्रशस्त करता है.
कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का 54.6 फीसदी कार्यबल कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में शामिल है. इसमें ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 41.8 फीसदी है. कार्यबल में शहरी महिलाओं की भागीदारी 35.31 फीसदी है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण महिलाएं दुनिया की आबादी का एक चौथाई हिस्सा बनाती हैं. वे 'नव भारत' के सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणी रूपांतरण के लिए पथप्रदर्शक की भूमिका निभाती हैं. हालांकि वे गरीबी, निर्भरता और कई प्रकार के भेदभाव और असुरक्षा से पीड़ित हैं.
महिलाओं को हम कैसे सशक्त बना सकते हैं?
लड़कियों की शिक्षा में निवेश कर बुनियादी बदलाव लाया जा सकता है. यही कारण है कि 'एसडीजी 1 यानि गरीबी नहीं लड़कियों के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर देता है. शिक्षा को एक समान रूप से सुलभ बनाकर गरीबी के चक्र को तोड़ा जा सकता है. यह ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी है. लड़कियों को शिक्षित करने और उन्हें कमाने के लिए सशक्त बनाने से वे परिवार में अपनी बात रखने के लिए सक्षम होती हैं. ऐसा न होने पर वो परिवार में दबकर रह जाती हैं.
यूएनडीसी के इस लेख में दिए गए शोध के मुताबिक जिन संगठनों में लिंग समावेशी संस्कृति को अपनाया जाता है, वहां उत्पाद और उत्पादकता 60 फीसदी अधिक होती है. महिलाओं को एक समान अवसर उपलब्ध कराने से अधिक उत्पादक परिणाम हासिल कर सकते हैं. संस्कृति और समाज की बारीकियों को महिलाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. ऐसे में लीडरशिप में उनकी भूमिका बढ़ाने से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पानी और अन्य बुनियादी समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है. स्थायी संस्थाओं जैसे ग्राम सभा, पंचायतों में उनकी सक्रिय भूमिका न सिर्फ कार्यप्रणाली को उचित बनाने के लिए जरूरी है बल्कि यह अन्य युवतियों के लिए भी रोल मॉडल बन सकती है.
अधिवक्ता और स्वयंसेवक
युवा महिलाओं को मार्गदर्शन देना, जागरूक बनाना और भावी लीडर्स का निर्माण करना. क्या आप जानते हैं? यूएन के विकास प्रोग्राम अध्ययन के मुताबिक जिन 53 नीतियों का मूल्यांकन किया गया, उनमें सबसे ज्यादा नीतियां महिलाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की थीं. लेकिन सामाजिक मानकों और चुनौतियों का सामना करने के लिए यह समर्थन पर्याप्त नहीं था. इतना ही नहीं एक चौथाई से भी कम जॉब प्लेसमेंट और मेंटरिंग पर ध्यान देते हैं. बहुत सी महिलाएं बड़े सपने देखती हैं, लेकिन उन्हें साकार करने के लिए उनके पास कोई योजना नहीं होती है. ऐसे में उन्हें सहयोग प्रदान करने के लिए उचित नीतिगत ढांचा बनाने की जरूरत है. स्थानीय समुदायों, एनजीओ और संगठनों के सहयोग से युवा महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है.
इसके कुछ तरीके हैं-
महिलाओं में महत्वाकांक्षाओं को प्रोत्साहित करना. उन्हें सिर्फ घरेलू कामकाज तक ही सीमित न रखना. उन्हें ऐसे मंच उपलब्ध कराना जहां उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिले.
अभिभावकों में जागरुकता अभियान चलाना, ताकि वे सांस्कृतिक और मानसिक बाधाओं को दूर कर सकें. लड़कियों की शिक्षा से जुड़े मिथकों को दूर करना. उन्हें लीडर के रूप में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना. ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों का रखरखाव और सुनिश्चित करना कि वे स्वस्थ परिस्थितियों में हैं. इसके अलावा लड़कियों की सुरक्षा को सुनिश्चित
करना.
छात्रवृत्ति जैसी इन्सेंटिव, मुफ्त किताबें, भोजन आदि मुहैया कराकर उपस्थिति के महत्व पर रोशनी डालना.
महिला उन्मुख उद्यमों को समर्थन देना. महिला उद्यमियों से खरीददारी कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देना एक और महत्वपूर्ण सेगमेंट है. महिलाएं हैण्डीक्राफ्ट में मुख्य योगदान देती हैं. इंटरनेशनल ट्रेड सेंटर के अनुसार महिलाएं, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वस्तरीय हैण्डीक्राफ्ट में 70 फीसदी भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में यह उनके लिए आय का मुख्य स्रोत भी है.इसके बावजूद संसाधनों, अवसरों, शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी के चलते उन्हें कई समस्याओं से जूझना पड़ता है. लिंग असमानता और सांस्कृतिक बाधाओं का सामना भी करना पड़ता है. हम उद्यमिता, मार्केटिंग, फाइनेंशियल मैनेजमेंट उचित प्रशिक्षण और मार्गदर्शन देकर उनमें कौशल विकसित कर सकते हैं. इस तरह हम उन्हें मार्केट प्लेस में प्रतिस्पर्धा में सक्षम बना सकते हैं.
महिलाओं को माइक्रोफाइनैंस प्रोग्रामों से अवगत कराकर उन्हें आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराकर अपना खुद का काम शुरू करने में मदद की जा सकती है. यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि उन्हें अपने उत्पादों और सेवाओं की उचित कीमत मिले.
ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना विकास के लिए क्यों जरूरी है.
महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना
इस लेख में दिया गया नया अध्ययन इस बात पर रोशनी डालता है कि किस तरह महिला उद्यमिता को बढ़ावा देकर कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाई जा सकती है. विश्व बैंक द्वारा 138 देशों में 2006 से 2018 के बीच किए गए सर्वे के मुताबिक महिलाएं आधी आबादी बनाती हैं, लेकिन कारोबार में उनका हिस्सा पांचवां भी नहीं है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि महिला उन्मुख कारोबार अन्य महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं.
पुरुष प्रधान फर्मों में केवल 23 फीसदी महिलाएं हैं, लेकिन महिला प्रधान कारोबारों में अधिक संख्या में महिलाओं को नौकरी दी जाती है. इसलिए महिलाओं की ओर से चलाए जाने वाले उद्यम अधिक संख्या में महिलाओं को नौकरी देकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाते हैं. हाल ही में जारी बार्कलेज रीसर्च रिपोर्ट के अनुसार अगर 2030 तक कार्यबल में आधी से अधिक महिलाओं को शामिल किया जाता है तो देश जीडीपी की विकास दर आठ फीसदी हो सकती है. ऐसे में उद्यमिता में महिलाओं को बढ़ावा देना जरूरी है.
महिलाएं कैसे लाती हैं सामाजित बदलाव
आर्थिक विकास के अलावा वे नियमों को चुनौती देकर सामाजिक बदलाव लाती हैं.वे सदियों पुरानी गलत परंपराओं जैसे दहेज, बाल विवाह को दूर करने में मदद करती हैं. मां सबसे पहली शिक्षक होती है, ऐसे में सशक्त और शिक्षित महिला अपने परिवार को सशक्त बनाने में मुख्य भूमिका निभाती है. कुल मिलाकर देश की ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाकर हम समग्र आर्थिक पर्यावरणी और सामाजिक विकास को सुनिश्चित कर सकते हैं. हमें उनका साथ देना चाहिए, उनके लिए बाधा नहीं बनना चाहिए.
(लेखिका कोर्टनी लालोत्रा समर्पण ट्रस्ट इंडिया की संस्थापक हैं.)
अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के नीजि विचार हैं. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.
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