15 अगस्त 2022 को लाल किले से प्रधान मंत्री मोदी देश के नागरिकों का आवाहन कर रहे थे की उन्हें महिलाओं की इज्ज़त करनी होगी. इससे बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है की उसी वक्त, उनके ही दल द्वारा संचालित गुजरात की सरकार ने 11 ऐसे कैदियों को छोड़ने का फैसला लिया जो सामूहिक बलात्कार और हत्या के जघन्य अपराधों के दोषी पाए जा चुके थे. इन 11 कैदियों ने बिलकिस बानो के परिवार के कई सदस्यों के साथ वह व्यवहार किया था जिसके बारे में सोचना भी बहुत कठिन है. इन्होने उसकी आँखों के सामने उसकी 3 साल की बच्ची के सर को पटक कर उसे मार डाला; उसकी 1 दिन की भतीजी को भी बेरहमी से मार डाला; उसके परिवार के 14 सदस्यों को तलवारों और गडासों से रौंदकर उनकी जान ली; उसकी बेहन और भाभी के साथ इतनी क्रूरता के साथ सामूहिक बलात्कार किया कि दोनों ही मर गयीं. और 4 महीने की गर्भवती, बिलकिस बानो, को भी उन्होंने नहीं बख्शा. उसके साथ भी बलात्कार किया, उस पर भी तलवार से वार किया. वह वहीं बेहोश हो गयी और उसे मारा सोचकर, हमलावर वहां से चले गए.
यह घटना 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गोधरा जिले में घटीं. बिलकिस और उसके परिवार पर हमलावर लोग अजनबी नहीं उनके अपने गाँव के पडोसी थे जिन्हें वे भईया, ताऊ कहकर पुकारते थे.
बिलकिस जब होश में आयी तो अपने शारीर को एक लहंगे में लपेट कर वह कुछ दूर तक चलकर गयी और फिर उसे पुलिस वालों ने देख लिया और अस्पताल पहुंचाया. अस्पताल में उसके कपड़ों को सम्हालकर रखा गया और जिले की महिला कलेक्टर ने उसका बयान भी करवाया. लेकिन गुजरात पुलिस ने सरसरी तौर पर ‘छानबीन' करके, केस को बंद कर दिया. बिलकिस ने न्याय की अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी और उसके पति ने भी उसका पूरा साथ दिया. उसका मामला मानव अधिकार आयोग के पास गया, सीबीआई के पास भी गया और उसकी सुनवाई महाराष्ट्र के उच्च न्यायलय में भी हुई. आखिर 2008 में 12 लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. उसमे से एक मुकद्दमे के दौरान मर गए और 11 लोगों को जेल भेजा गया.
सर्वोच्च न्यायलय ने गुजरात सरकार से बिलकिस को 50 लाख रूपये का मुआवजा, एक घर और सरकारी नौकरी देने का आदेश पारित किया. काफी समय बाद मुआवजा मिला लेकिन घर और नौकरी अभी तक नहीं मिली है. यही नहीं, जिन 11 लोगों को जेल भेजा गया था, वे भी कई बार पेरोल पर छोड़े गए. बिलकीस और उसके परिवार के सर पर आतंक के काले बादल मंडराते ही रहे.
आज उसकी क्या हालत होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. अपराधियों के छूटने की बात सुनकर, वह सन्न रह गई और उसने इतना ही कहा की अब न्याय कहां मिलेगा.
उन 11 अपराधियों को छोड़ा ही नहीं गया, उनका मिठाई और मालाओं से स्वागत भी हिन्दुत्वादी संगठनों और व्यक्तियों ने किया. आखिर क्यों? अगर बलात्कारी-हत्यारे बहुसंख्यक धर्म के अनुयायी हैं और उनकी हिंसा के शिकार महिलाएं और मासूम बच्चे अल्पसंख्यक धर्म के हैं तो क्या उनका अपराध माफ़ ही नहीं बल्कि सराहा जाएगा?
यह भयावह है. इस तरह के अपराधियों को किसी भी कीमत पर माफ़ नहीं किया जाना चाहिए.
आज (23 अगस्त '22) को दो अन्य महिला कार्यकर्त्ताओं, श्रीमती रूप रेखा वर्मा और रेवती लाल, के साथ मैंने अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऐडवा) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से सर्वोच्च न्यायालय में गुजरात सरकार के इस कृत को खारिज करने की पेशकश की है.
हमें उम्मीद है की सर्वोच्च न्यायालय हमारी दर्ख्वास्त को सही ठहराएगा. देश भर की लोकतंत्रप्रेमी जनता, ख़ास तौर से महिलाएं, बड़ी उम्मीद के साथ उनकी ओर देख रही है. बिलकिस की बुझी-बुझी, निराश आंखे भी उसकी ओर टक टकी लगाकर देख रही होंगी.