बन तो रहा है इतिहास, मगर कक्षा इतिहास की नहीं है. सिलेबस तो कॉमर्स, टैक्सेसन का है. अखबारों में जीएसटी को लेकर अलग-अलग सेक्टर की परेशानियों की ख़बरें भी छप रही हैं, लेकिन इन सबको छोटी-मोटी दिक्कतें बताते हुए सरकार अपनी तय की हुई मंज़िल पर पहुंच चुकी है. 1 जुलाई से जीएसटी व्यवस्था लागू हो रही है. सरकार के लिए यह मौका इतना बड़ा है कि वो इसे आज़ादी के लैंडमार्क की तरह पेश करना चाहती है, कपड़ा व्यापारियों को छोड़ बाकी अधिकतर व्यापारिक संगठन आपत्तियों को आंदोलन से बचाते हुए ज़ाहिर कर रहे हैं. इसलिए समझना और दावा करना मुश्किल है कि उनकी परेशानी कितनी जायज़ और बड़ी है. जब बताने वाला ही साहस नहीं दिखायेगा तो क्या किया जा सकता है. एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जीएसटी हकीकत है और यह भी हकीकत है कि हम जैसे एंकरों से यह उम्मीद करना कि जीएसटी की बारीकियों को पेश करने की साधारण योग्यता भी रखते हैं, उचित नहीं होगा. कोशिश की मगर कम समझ पाया. लेकिन आज के दिन जीएसटी पर कार्यक्रम न करता तो इतिहास के फुटनोट में मेरा नाम दर्ज नहीं होता. हेडलाइन की जगह तो पहले से ही छेक ली गई है. शुक्र है अजमेर के ब्यावर में रहने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट सुधीर हालाखंडी ने जीएसटी पर हिन्दी में किताब लिख दी है. आज ही उनके बारे में पता चला और उनकी अनुमति से हिन्दी में लिखी उनकी किताब के अंश का हम इस्तमाल भी करेंगे. आप सभी को जीएसटी मुबारक.
सुधीर हालाखंडी का दावा है कि इन्होंने जीएसटी की 100 से अधिक शब्दावलियों को हिन्दी में समझाया है. जीएसटी मतलब वस्तु एवं सेवा कर. सुधीर हालाखंडी ने हिन्दी में यूट्यूब पर 30 ऑडियो क्लिप अपलोड किया हुआ है. gst by sudhir halakhandi के नाम से सर्च कर सुन सकते हैं. www.halakhandi.com पर सुधीर जी की हिन्दी वाली किताब भी उपलब्ध है. यह किताब ई बुक में उपलब्ध है. सुधीर ने लिखा है कि इसे कोई भी छाप कर शेयर कर सकता है बशर्ते वह किताब की कीमत नहीं वसूलेगा, उनका नाम छापेगा और लेखक को उसकी दो प्रति भेजेगा. सुधीर जी ने हिन्दी के लिए इतना सोचा, हम उनके आभारी हैं. जिस भाषा में रोज़गार पाता हूं, उस भाषा के प्रति किसी सी.ए. ने इतनी मेहनत की है तो शुक्रिया कहने में हर्ज नहीं है. थैंक्यू सुधीर हालाखंडी जी. सरकार जो काम लाखों-करोड़ों खर्च कर कर रही है, वही काम आप अपनी तरफ से फ्री में कर रहे हैं.
आम जनता को जीएसटी के बारे में सस्ता महंगा के फ्रेम में समझाया जा रहा है. भारत का मीडिया बजट के साथ भी यही करता है और बजट में दर्ज नीतिगत चालाकियां या खूबियां जनता तक नहीं पहुंच पाती हैं. दो तरह की जीएसटी है, एक स्टेट जीएसटी, जो राज्य के खाते में जमा होगी, दूसरा सेंटर जीएसटी जो सेंटर के खाते में जमा होगी. मान लीजिए जयपुर के व्यापारी रमेश चंद उसी शहर के डीलर सुरेश चंद को 10 लाख में अपना माल बेचते हैं. मान लीजिए 9 फीसदी स्टेट और 9 फीसदी सेंटर जीएसटी है. इस हिसाब से रमेश 90,000 टैक्स स्टेट जीएसटी के रूप में ले लेते हैं और 90,000 सेंटर जीएसटी के रूप में. ये पैसा रमेश दोनों खजाने में जमा करा देते हैं. अब सुरेश जी इस माल को जोधपुर के महेश चंद को 10.50 लाख में बेचते हैं. जो जिसको बेचेगा वो उससे जीएसटी वसूलेगा. तो सुरेश जी 94,500 स्टेट जीएसटी और 94,500 सेंटर जीएसटी महेश जी से वसूल ले लेते हैं. अब सवाल आता है कि क्या सुरेश जी भी 94,500 रुपये स्टेट जीएसटी में जमा करेंगे. जवाब है नहीं. चूंकि सुरेश जी 90,000 स्टेट और 90,000 सेंटर जीएसटी के रूप में रमेश जी को दे चुके हैं, इसलिए ये पैसा वो पहले दी गई जीएसटी से घटा देंगे. यानी दोनों जगहों पर 94,500 में से 90,000 माइनस हो जाए. इस तरह से वे 4500 रुपये स्टेट जीएसटी के खाते में जमा करेंगे और इतना ही सेंटर जीएसटी के खाते में जमा करेंगे.
उम्मीद है कि आज मेरे स्कूल के गणित के टीचर 'प्राइम टाइम' नहीं देख रहे होंगे, वर्ना उन्हें सदमा लग सकता है कि जो लड़का गणित में फिसड्डी था वो टीवी पर देश को जोड़-घटाव कैसे समझा रहा है. उनके लिए बता दूं कि मैंने सुधीर जी की किताब टीप ली है, अपना कोई दिमाग़ नहीं लगाया है. जीएसटी के साथ पुराने कर समाप्त हो जाएंगे मगर एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच माल ले जाने पर एक नई व्यवस्था से गुज़रना होगा जिसका नाम है इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विस टैक्स. इस दौरान रोड परमिट टैक्स भी देना होता है, जो अभी नहीं हटा है. सुरेश हालाखंडी मानते हैं कि रोड परमिट टैक्स तो देने होंगे. तो क्या यह जीएसटी के अतिरिक्त कर है. अगर ऐसा है तो फिर जीएसटी एक कर कैसे है.
इंटिग्रेटेड जीएसटी कोई नया कर नहीं है बल्कि नया तंत्र है. इसके ज़रिये दो राज्यों के बीच व्यापार पर नज़र रखी जाएगी. कहा जा रहा है कि इससे प्रक्रियाएं थोड़ी जटिल हो जाएंगी. कैसे जटिल होगी, जब मैं इसे पढ़ने लगा तो चक्कर आ गया. फिर छोड़ दिया बाकी आप जो विज्ञापनों में छपा है उसे देखकर समझ लें. वैसे सुरेश जी ने काफी सरल तरीके से समझा दिया है लेकिन टीवी पर समयाभाव और जगहाभाव के कारण हम उसे छोड़ रहे हैं. इतिहास बन रहा है तो थोड़ी मेहनत आप भी कीजिए.
अब आते हैं रिटर्न पर. हर महीने तीन रिटर्न भरने होंगे जो एक-दूसरे से अलग होंगे. GSTR-1, मासिक बिक्री का विवरण होगा जो अगले महीने की दस तारीख तक जमा करना होगा. GSTR-2 मासिक खरीद का विवरण होगा जो अगले माह की 15 तारीख तक जमा करना होगा. 10 तारीख से पहले जमा नहीं कर सकते क्योंकि आपको दस तक बिक्री का विवरण जमा करना होगा, इसलिए आप खरीद का विवरण 10 के बाद ही 15 तारीख तक जमा करने होंगे. GSTR-3 ये मासिक कर का रिटर्न है जो अगले माह की 20 तारीख तक जमा करने होंगे. GSTR-9 ये वार्षिक रिटर्न है जो वित्त वर्ष की समाप्ति के बाद 31 दिसंबर तक जमा करने होंगे. इस प्रकार पूरे साल में 37 रिटर्न भरने होंगे. यह रिटर्न सरकार ने जो जीएसटीएन नेटवर्क बनाया है वहां जाकर भरने होंगे. आप पहले भी वैट वगैरह ऑनलाइन ही भर रहे थे. सुधीर हालाखंडी ने लिखा है कि इससे जुड़े प्रावधानों के पालन के लिए काफी मेहनत करनी होगी, बल्कि समय की मुश्किल सीमा का भी पालन करना होगा क्योंकि जबतक पहला विक्रेता रिटर्न नहीं भरेगा, तब तक उससे ख़रीदने वाला अपना रिटर्न नहीं भर सकेगा. ऐसा होते ही पूरी चेन में ब्रेक आ जाएगा और सिस्टम को पता चल जाएगा. इस अंतर को ठीक करने के लिए सिर्फ दो महीने का समय दिया गया है. अगर पहले डीलर ने रिटर्न नहीं भरा, दुकान बंद कर गायब हो गया तो जो जीएसटी आपने उसे दी है, उतनी ही रकम आप दोबारा भरेंगे. अगर पहले वाले का विचार बदल गया और उसने भर दिया तो आपको वो रकम वापस मिल जाएगी. अब आप कहेंगे कि हमें कैसे मालूम कि जिससे माल खरीद रहे हैं वो डीलर भरोसेमंद है. तो इसके लिए जीएसटी की साइट पर डीलरों की रेटिंग दी जाएगी. हर व्यापारी दूसरे व्यापारी की रेटिंग देख सकेगा जो जीएसटीएन की साइट पर होगी.
अब आते हैं बिल पर. 1 जुलाई को आप अपनी दुकान पर जाते हैं. ग्राहक को माल बेचते हैं तो पहला जीएसटी बिल कैसे काटेंगे. जीएसटी के तहत आप कंप्यूटर के अलावा अपनी बिल बुक भी छपवा सकते हैं. मान लीजिए कि आप कपड़ा व्यापारी हैं. शनिवार को आपकी दुकान पर कोई ग्राहक पहुंचता है और 100 शर्ट खरीदता है तो बिल कैसे बनायेंगे. कुल 15 प्रकार की जानकारी होनी चाहिए आपके पास. विक्रेता और ख़रीदार का नाम, पता और जीएसटीएन नंबर ज़रूर होना चाहिए. बिल जारी करने की तारीख, उसका सीरियल नंबर भी होना चाहिए. माल का विवरण, मात्रा और कुल कीमत आपको दर्ज करना होगा. डीलर के दस्तख़त अनिवार्य हैं. हर बिल की तीन प्रति होगी. एक आप रखेंगे, दूसरा खरीदार के पास और तीसरा ट्रांसपोर्टर के लिए. इसे आपको छपवा कर रख लेना चाहिए.
छपवाने की लागत हर व्यापारी को खुद उठानी पड़ेगी. जीएसटी के तहत सज़ा का भी प्रावधान है. क्या जीएसटी के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान हैं. क्या इससे छोटी मोटी नादानी आपको जेल में पहुंचा देगी, ये आशंका है या वाकई ऐसा है. ये भी जानने का प्रयास करते हैं. सुरेश जी ने हिन्दी में लिखा है कि जीएसटी की धारा 69 में गिरफ्तारी के प्रावधान दिये गए हैं. अगर किसी ने 132 के तहत अपराध किया है तो गिरफ्तार हो सकता है. सीजीएसटी अधिकारी गिरफ्तारी करेगा और आदेश आयुक्त का होगा. कुछ अपराध ग़ैर ज़मानती हैं और कुछ ज़मानती. बगैर आयुक्त के आदेश के गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी. बिना बिल का माल सप्लाई करेंगे, कर चोरी के इरादे से. बिना जीएसटी लिए बिल जारी करने पर जेल जा सकते हैं. जीएसटी लेकर तीन महीने तक जमा नहीं करने पर जेल जाएंगे. अगर 2 करोड़ से ज़्यादा की चोरी है तो गिरफ्तारी के प्रावधान लागू होते हैं. यानी 2 करोड़ से कम की कर चोरी पर जेल जाने से बच सकते हैं. मध्यम और छोटे श्रेणी के डीलर को डरने की ज़रूरत नहीं है. मगर आप दो बार जीएसटी का उल्लंघन करते हैं तो जेल जा सकते हैं. तब यह नहीं देखा जाएगा कि 2 करोड़ की कर चोरी का आरोप है या नहीं.
0 प्रतिशत, 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत टैक्स हैं जीएसटी के तहत. आवश्यक वस्तुओं को जीएसटी से बाहर रखा गया है तो कई चीज़ें ऐसी हैं जो पहली बार टैक्स के दायरे में आएंगी.
This Article is From Jun 30, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या जीएसटी से टैक्स सिस्टम बेहतर होगा?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 01, 2017 09:35 am IST
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Published On जून 30, 2017 21:21 pm IST
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Last Updated On जुलाई 01, 2017 09:35 am IST
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