27 सालों के वनवास के बाद दिल्ली की गद्दी पर भाजपा के मुख्यमंत्री का राजतिलक हो चुका है. नरेन्द्र मोदी पिछले 23 सालों से सत्ता में हैं, पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, फिर अब देश के प्रधानमंत्री के पद पर हैं. मोदी राज में यह भाजपा के लिए यह स्वर्णिम काल तो है ही, लेकिन इसने प्रधानमंत्री मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती भी खड़ी कर दी है. देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में न सिर्फ दुनिया के हर देश के राजनयिक रहते हैं, बल्कि यहां भारत के शासन तंत्र की धुरी केन्द्र सरकार, संसद, राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट भी विद्यमान है. एक तरह से कहा जा सकता है कि दिल्ली देश की शासन सत्ता का ‘ब्रेन सेंटर” है. अब तक दिल्ली की व्यवस्था पर आम आदमी पार्टी का वर्चस्व था, जो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की विरोधी थी, और उसके शासन का अपना एक अलग मॉडल था, जिसे वह ‘दिल्ली मॉडल' कह कर प्रचारित करती थी. जाहिर है ‘गुजरात मॉडल' के दम पर देश की सत्ता पर परचम लहराने वाले प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली में अपना मॉडल नहीं पेश कर पा रहे थे. दिल्ली पिछले दस सालों से पीएम मोदी को वह मौका नहीं दे रही थी कि वह ‘गुजरात मॉडल' के आधुनिक अवतार ‘मोदी मॉडल' को दुनिया के सामने राजधानी दिल्ली में पेश कर सकें. दिल्ली वह केन्द्र है, जहां सैकड़ों वैश्विक संगठनों के साथ दुनिया का हर मीडिया संस्थान मौजूद है, ऐसे में इस जगह पर प्रधानमंत्री मोदी को अपने ‘मोदी मॉडल' को शो केस न कर पाना बहुत बड़ी चुनौती थी. जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने अरविंद केजरीवाल के शासन व्यवस्था के दौरान ही 2023 में G-20 का सफल आयोजन कर के यह अहसास करा दिया था कि उनके दिल में दिल्ली में करने के लिए बहुत कुछ है.
क्या नियति ने प्रधानमंत्री मोदी को चुना है
इतिहास के पन्नों को खंगालिए तो एक बात साफ नजर आती है कि सफल व्यक्ति वही होता है कि जो महान चुनौतियों का सामना न केवल कुशलता के साथ करता है, बल्कि उसमें समाज के लिए एक अवसर भी ढूंढ निकालता है. मुख्यमंत्री बनने से लेकर प्रधानमंत्री के सफर तक पीएम मोदी के जीवन में ऐसे अनगिनत उदाहरण देखने को मिलते हैं, जब उन्होंने आपदा को अवसर में बदलकर दिखाया है. इसलिए वह एक सामान्य कार्यकर्ता से देश के प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच पाए. याद कीजिए जिन परिस्थितियों में उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था, वह भाजपा के लिए एक क्लोज चैप्टर की तरह था. भारत चुनाव से पहले अपनी लड़ाई हार चुकी थी. लेकिन नरेंद्र मोदी ने न केवल गुजरात में भाजपा को जीत दिलाई, बल्कि इसके बाद गुजरात मॉडल को जिस तरह से स्थापित किया, उसने उन्हें पूरे भारत में स्थापित कर दिया.
इसके बाद जब वे प्रधानमंत्री बने तो अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने ‘गुजरात मॉडल' की गति और शक्ति से पूरे देश के विकास का मिशन बनाया. अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने देश को राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से श्रेष्ठ बनाने के अपने मिशन को आगे बढ़ाया. 2014 से 2024 के दस सालों में प्रधानमंत्री मोदी ‘मोदी मॉडल' के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और वैश्विक नीति के आयाम का तानाबाना बुन चुके थे. यह आवश्यकता से आकांक्षा की ओर बढ़ने की सशक्त यात्रा थी. लेकिन जब इस मॉडल को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए तीसरे टर्म की जरूरत थी तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत पाने से पिछड़ गई. याद कीजिए पिछले साल लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो एक बड़े तबके में ये निराशा भर गई थी कि अब मोदी का सियासी जीवन अवसान की ओर बढ़ चला है. लेकिन पीएम मोदी ने गठबंधन की सरकार को जिस तरीके से आगे बढ़ाया है, वो भारत के अब तक के राजनीतिक इतिहास में आदर्श उदाहरण की तरह सामने आया है. लोकसभा चुनाव में हुई इस चूक को शायद जनता ने भी महसूस किया और इसका प्रतिफल आने वाले हर विधानसभा चुनाव में देखने को मिला. महाराष्ट्र और हरियाणा की जीत ने जहां ‘मोदी मॉडल' को एक नया विश्वास दिया, वहीं दिल्ली की जीत से प्रधानमंत्री मोदी के मिशन के संकल्प को नई उर्जा मिली है.
मिशन का पहला कदम- महिला मुख्यमंत्री
08 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने प्रधानमंत्री मोदी के मिशन को पूरा होने में सबसे बड़ी चुनौती को दूर कर दिया. विधानसभा की 70 सीटों में से 48 सीटों पर जीत मिली. जीत ने वह विश्वास भी दे दिया, जिसकी जरूरत मिशन को पूरा करने के लिए थी. देश की 140 करोड़ नजरें ही दिल्ली पर नहीं होती हैं, बल्कि पूरे विश्व की नजर दिल्ली पर होती है. इन पैनी नजरों के सामने दिल्ली के विकास का नेतृत्व करने के लिए एक महिला को चुनकर प्रधानमंत्री मोदी ने मोदी मॉडल के उस आयाम को स्थापित करने का काम किया है, जहां महिला सशक्तिकरण से आगे बढ़कर महिला नेतृत्व में विकास की अवधारणा उन्होंने दी है. पहली बार विधायक बनने वाली भाजपा की एक सामान्य कार्यकर्ता रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री का पद देकर उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे. इससे जहां पार्टी के कार्यकर्ताओं का जोश और उत्साह बढ़ा है, वहीं देश ही नहीं विश्व में यह धारणा स्थापित हुई कि आरएसएस की विचारधारा वाली भाजपा में महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार और सम्मान है.
दिल्ली में मोदी मॉडल के सामने चुनौतियां
आम आदमी पार्टी ने दस सालों में दिल्ली में शासन के दौरान जिस दिल्ली मॉडल को प्रचारित करने का काम किया, उसका एक ही मकसद था कि अरविंद केजरीवाल न केवल ‘मोदी मॉडल' को चुनौती दें, बल्कि प्रधानमंत्री के पद पर भी कब्जा कर लें. यदि केजरीवाल, दिल्ली विधानसभा का यह चुनाव भी जीत जाते तो यह मोदी मॉडल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती, लेकिन नियति ने ऐसा नहीं होने दिया. यहीं से प्रधानमंत्री मोदी के सामने ऐसी मुश्किलें खड़ी होती हैं, जो मोदी मॉडल को नए सिरे से परिभाषित करने वाली है क्योंकि अरविंद केजरीवाल दिल्ली में ऐसी मुसीबतों को छोड़ गए हैं, जिन्हें जल्द से जल्द पूरा करना प्रधानमंत्री मोदी के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आज देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया टकटकी लगाए देख रही है कि दिल्ली कैसे और कब बदलेगी.
दिल्ली की खस्ताहाल सड़कों से उड़ती धूल और उन पर गाड़ियों के जाम से, ट्रैफिक ने दिल्ली वालों का जीवन दूभर बना दिया है. ठंड के दिनों में दिल्ली के हालात और भी बदतर हो जाते हैं जब पंजाब, हरियाणा से पराली का धुंआ दिल्ली की हवा को जहरीला बना देता है. हर साल दिल्ली की आबोहवा में घुलने वाले इस जहर को दूर करना प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि अब दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और केंद्र में भाजपा की ही सरकारें हैं. दिल्ली के अस्पतालों से लेकर स्कूलों तक में फैली अव्यवस्था को कितनी जल्दी दूर कर सकते हैं, इस पर सबकी नजर होगी. दिल्ली की दिनों-दिन बढ़ती आबादी के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में डीटीसी की खस्ताहाल बसें कैसे और कितनी जल्दी भारत की राजधानी की विकसित परिवहन व्यवस्था बनती हैं, इस पर भी सबकी निगाहें हैं. दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जहां बड़े पैमाने पर काम करना है, वहीं दिल्ली की झुग्गी झोपड़ियों की समस्या भी बहुत बड़ी है, इन बस्तियों में रहने वाले हजारों परिवारों को पक्के मकान देने का वादा चुनाव के समय किया गया है. लेकिन इन झुग्गी झोपड़ी बस्तियों से दिल्ली कितनी जल्दी निजात पाती है और एक भव्य चमचमाती हुई वैश्विक राजधानी बनती है, इस पर सबकी नजर है. प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली के मिशन की चुनौतियों को समझ रहे हैं, इसलिए सरकार के गठन से पहले ही दिल्ली में यमुना नदी की सफाई का अभियान शुरू हो गया. यह रणनीति बनायी गई है कि यमुना को तीन सालों के अंदर साफ कर दिया जाएगा, उसी यमुना नदी को जिसे केजरीवाल पिछले दस सालों से वादा करके भी साफ नहीं कर पाए. एक तरफ यमुना की सफाई की चुनौती है तो दूसरी तरफ सीना तानकर खड़े कूड़े के पहाड़ दिल्ली के लिए न सिर्फ बदनुमा दाग हैं, बल्कि यहां के निवासियों के जीवन में जहर घोल रहे हैं. इन कूड़े के पहाड़ों को भाजपा सरकार कितनी जल्दी साफ कर पाती है, इस पर सबकी नजर होगी.
पिछले दस सालों में दिल्ली में पनपी समस्याएं, चुनौतियों के पहाड़ के रूप में प्रधानमंत्री मोदी को विरासत के रूप में मिली हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक ऐसा अवसर है जो ‘मोदी मॉडल' का डंका पूरी दुनिया में स्थापित कर सकता है. प्रधानमंत्री मोदी के जीवन से जुड़ी घटनाओं को करीब से देखने वाले जानते हैं कि चुनौतियां जितनी बड़ी होती हैं, मोदी उतना अधिक सफल होकर बाहर निकलते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं, आर्टिकल में लिखी बातें लेखक के निजी विचार है.)