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This Article is From Nov 02, 2018

क्या एबीवीपी तय करेगा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 02, 2018 23:10 pm IST
    • Published On नवंबर 02, 2018 23:10 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 02, 2018 23:10 pm IST
हमने कब ऐसे भारत की कल्पना कर ली कि किस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कौन होगा यह सत्ताधारी दल का छात्र संगठन अखिल विद्यार्थी परिषद तय करेगा और यूनिवर्सिटी मान लेगी. क्या आप वाकई ऐसा भारत चाहते थे, चाहते थे तो इस बात को खुलकर क्यों नहीं कहा या क्यों नहीं कहते हैं कि यूनिवर्सिटी में या तो पढ़ाने के लिए प्रोफेसर ही नहीं होंगे और अगर होंगे तो वही होंगे जिसकी मंज़ूरी एबीवीपी की चिट्ठी से मिलेगी. सबसे अच्छी बात है कि जब यह बात पब्लिक में सामने आई तो पब्लिक को यह बात बात के लायक ही न लगी. ऐसा कुछ नही हुआ है कि पहाड़ टूट जाए जब भीड़ लोगों को मार रही थी तब पहाड़ नहीं टूटा तो एक प्रोफेसर के लिए पहाड़ क्या, गिट्टी भी नहीं छिटकेगी, ऐसा मेरा विश्वास है.

16 अक्तूबर को प्रो. रामचंद्र गुहा ने ट्वीट किया था कि यह समाचार साझा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि मैं अमहादाबाद यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञान में श्रेणिक लाल भाई प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन करने जा रहा हूं. उसके बाद 31 अक्तूबर को रात साढ़े दस बजे ट्वीट करते हैं कि 'मेरे नियंत्रण से बाहर के हालात के कारण मैं अहमदाबाद यूनिवर्सिटी ज्वाइन नहीं कर रहा हूं. मैं यूनिवर्सिटी को शुभकामनाएं देता हूं. इसके पास बहुत अच्छी फैकल्टी है और शानदार वाइस चांसलर हैं. उम्मीद करता हूं कि एक दिन गांधी के अपने गुजरात में उनकी आत्मा फिर से ज़िंदा हो उठेगी या सटीक रूप से कहें तो गांधी का जीवनीकार गांधी के ही अपने शहर में गांधी पर नहीं पढ़ा सकता है.'

गांधी की हत्या को सही ठहारने पर लिखी कविताएं धड़ल्ले से सोशल मीडिया पर लिखी जा रही हैं, फैलाई जा रही हैं, गोडसे की मूर्ति पर माला पहनाने वालों को भी कोई तकलीफ नहीं है लेकिन क्या यह दुखद नहीं है कि गांधी के जीवनीकार को गांधी के शहर में गांधी पर ही कोर्स पढ़ाने की अनुमति न मिले. क्या आपने इसी भारत का सपना देखा था, जो भारत क्लास में एक गुरु बर्दाश्त नहीं कर सकता, वो विश्व गुरु कैसे. प्रो. रामचंद्र गुहा जैसे गांधी पर
1130 पन्नों की किताब लिखने वाले प्रो. रामचंद्र को नहीं चाहते हैं. इस किताब को आप हर एंगल से देख लें. वाकई 1130 पन्नों की किताब है. इस किताब को लिखने के लिए जिन किताबों का अध्ययन किया गया है, जिन संदर्भों को देखा गया है, उसकी लिस्ट भी एक किताब की तरह मोटी है. यही पहली किताब नहीं है, 1989 में गुहा ने पर्यावरण के इतिहास पर the unquiet woods लिखी थी. 2002 में a corner of a foreign field लिखी जिसे पुरस्कार मिला. 2007 में india after gandhi लिखी. गांधी की जीवनी का पहला खंड 2013 में लिखा, gandhi before india, यह किताब भी 1100 पन्नों की है. 2018 में उनकी ये किताब gandhi the years that changed the world आई. इतनी किताबें लिखने वाला, उसके बाद लगातार अखबारों में पर्यावरण से लेकर अलग-अलग विषयों पर लिखने वाले एक शख्स को अगर कोई यूनिवर्सिटी अपने यहां छात्र संघ के दबाव में नहीं रख पाती है तो भले ही यह खबर चैनल और अखबार भारत की जनता तक न पहुंचने दें, लेकिन विदेशों में पढ़ रहे भारत के छात्र क्या जवाब देंगे कि उनके भारत में ऐसा होता है. अब यह भी इम्तहान है कि गुहा का लेख जिन अखबारों में छपता है, क्या उनके बारे में यह खबर छपेग. गुहा को इसका अध्ययन करना चाहिए.

प्रो. गुहा ने इस बारे में कुछ भी विस्तार से नहीं बताया है. सिर्फ ट्वीट किया है. हमने यूनिवर्सिटी से संपर्क करने का प्रयास किया. बताया गया कि वाइस चांसलर ही बोल सकेंगे लेकिन वे देश में नहीं हैं. बाहर हैं. प्रो. गुहा जिनके नाम पर बने चेयर के प्रोफेसर होने वाले थे, वे कोई साधारण हस्ती नहीं थे. अहमदाबाद की पहचान थे और उनका असाधारण योगदान था. 2014 में जब उनका निधन हुआ तब हर बड़े अखबार में उनका जीवन परिचय छपा था. प्रधानमंत्री ने भी उनके बेटे से बात की थी और शोक जताया था.

पूरा नाम तो श्रेणिक कस्तुरभाई लालभाई है, दुनिया की नंबर एक यूनिवर्सिटी एमआईटी यानी मेसेचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नालजी के ग्रेजुएट थे, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए की डिग्री ली थी. उन्होंने कपड़ा मिल की स्थापना की. जैन तीर्थ स्थलों के संरक्षण में शानदार काम किया. 1200 से अधिक जैन मंदिरों का पुनरुद्धार कराया. शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान काफी लंबा चौड़ा है. ISRO, the Institute of Plasma Research (IPR), IIM-A और Ahmedabad Textile Industries Research Association की गवर्निंग बॉडी में थे. श्रेणिक लालभाई के पिता मुगलों के जौहरी थे. फाइनेंसर थे. उन्हें नगर सेठ कहा जाता था. इतनी धाक मुगलों के समय इनके परिवार की थी. इतनी धाक इनके परिवार की आज भी है. मगर कितना दुखद है कि हार्वर्ड और एमआईटी से पढ़ कर आए श्रेणिक भाई के नाम पर बने चेयर पर प्रोफेसर कौन होगा, उस पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की रज़ामंदी चल गई.

हमें यह नहीं पता कि बोर्ड ऑफ गवर्नर ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की चिट्ठी मिलने के बाद प्रो. गुहा से जाने के लिए कह दिया या फिर इसका पता चलने पर डॉ. गुहा ही पीछे हट गए या फिर ऐसा माहौल बनाया गया जिसमें डॉ. गुहा के लिए वहां जाना सम्मानजनक ही न रह जाए. अहमदाबाद के इतने प्रतिष्ठित घराने के लिए क्या यह ज़रूरी नहीं था कि वह डॉ. रामचंद्र गुहा का बचाव करता. वाइस चांसलर को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जो पत्र लिखा है उसका विषय है तथाकथित इतिहासकार डॉ. रामचंद्र गुहा की नियुक्ति के संबंध में. पत्र लिखने वाले का नाम है प्रवीण देसाई, महानगर मंत्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद. पत्र शुरु होता है...

'हमें 17 अक्तूबर के दिव्य भास्कर से पता चला है कि तथाकथित इतिहासकार डॉ रामचंद्र गुहा अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के विंटर स्कूल के निदेशक के तौर पर ज्वाइन कर चुके हैं. उनके द्वारा लिखी गई किताबें और लेख ने हिन्दू संस्कृति और देश की एकता को नुकसान पहुंचाया है. उनके लेखन से जेएनयू और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसे कैंपस में देश की विघटनकारी ताकतों, निजी आज़ादी के नाम पर मनमाने व्यवहार, निजी आज़ादी के नाम पर आतंकियों को छोड़ने, भारत के अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर की आज़ादी की बात करने वाले को मज़बूती मिलती है. डॉ. गुहा की किताबों से कुछ विवादितों अंश भी यहां दिए जा रहे हैं.

1) Makers of Modern India, Chapter 16. pg.267
2) Makers of Modern India, pg.404
3) Makers of Modern India, Chapter 11, Pg.187
4) Makers of Modern India, chapter.11, pg.181

उनके अन्य विवादित लेखों की कॉपी भी पत्र के साथ संलग्न है. इनमें से कुछ लेख प्रतिबंधित हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में महान श्रेष्ठी श्री कस्तुरीभाई लालभाई, श्री श्रेणिक कस्तुरभाई जैसों का योगदान अतुलनीय है. आप जैसे कुशल अनुयायियों के निरंतर प्रयासों की वजह से अहमदाबाद एजुकेशन सोसायटी और अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के ज़रिए शिक्षा के क्षेत्रों को अनमोल योगदान मिल रहा है. डॉ गुहा प्राचीन महान राष्ट्र को, हमारी श्रेष्ठ लोकतांत्रिक परपंरा, दुनिया भर में स्वीकृत भारतीय संस्कृति को मंज़ूर नहीं करते हैं. ऐसे डॉ. रामचंद्र गुहा को अहमदाबाद यूनिवर्सिटी के विंटर स्कूल ने निदेशक नियुक्त किया है, जिस यूनिवर्सिटी ने हमेशा छात्रों के हित को केंद्र में रखा है, वहां डॉ. रामचंद्र गुहा को नियुक्त किया जा रहा है, गुहा छात्रों को मानवता की कौन सी शिक्षा देंगे यह गंभीर प्रश्न है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का मानना है कि ऐसे दिशाहीन व्यक्ति के निर्देशन में देश की युवा शक्ति देश के प्रति कोई भावना नहीं रखेगी, हमारी संस्कृति में यकीन नहीं रखेगी. अगर ऐसा व्यक्ति आपके संस्थान की मदद से देशविरोधी गतिविधियों और भारत को तोड़ने की गतिविधियों के साथ सहयोग करे, तब विद्यार्थी परिषद आपके संस्थान के खिलाफ बड़ा आंदोलन करेगी और इसके लिए सिर्फ आप ज़िम्मेदार होंगे.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ज़ोर देकर निवेदन करती है कि आप डॉ. रामचंद्र गुहा की नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दें.

प्रवीण देसाई, महानागर मंत्री
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद


यह पत्र गुजरात के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव, अहमदबाद यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ गर्वनर्स, संजय लालभाई, सुधीर मेहता, अंजुबेन शर्मा और पंकज पटेल को भी भेजा गया है. पत्र में जिस तरह से डॉ रामचंद्र गुहा को भारत विरोधी, हिन्दू संस्कृति विरोधी बताया गया है, गनीमत है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से उन्हें देश से निकाल देने की मांग नहीं की है. यह एक अच्छी बात है इसमें. लेकिन आप सोचिए कि राजनीतिक तौर पर एबीवीपी को किसी से भी एतराज़ या असहमति रखने का पूरा हक है, मगर वह इस आधार पर किसी की नियुक्ति रोक दे तो बेहतर है कि आप वही पढ़ें जो एबीवीपी कहे. बल्कि अपना सिलेबस भी एबीवीपी से ही बनवा लें.

क्या आपको पता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक मामलों की स्टैंडिंग कमेटी ने एमए पोलिटिकल साइंस के छात्रों के लिए जो किताबें पढ़ाई जाती हैं उसमें से दलित शब्द हटाने के आदेश दिए हैं. दलित की जगह बहुजन, अंबेडकरवादी या अनुसूचित जाति का इस्तमाल होगा. यही नहीं कांचा इलैया शेफर्ड की किताब को भी पोलिटिकल साइंस के कोर्स से हटा दिया गया है. वायर में मनीषा तिवारी ने लिखा है कि स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में प्रस्ताव पास रखा गया कि इलैया की किताबें इसलिए हटाई जाएं क्योंकि वे कथित तौर पर हिन्दू धर्म का अपमान करती हैं. इसी न्यूज़ वेबसाइट पर दिल्ली विश्वविद्लाय के पोलिटिकल साइंस विभाग में पढ़ाने वाले एन सुकुमार ने अपना पक्ष रखा है. उनका पक्ष यही है कि ज़माने तक पोलिटिकल साइंस विभाग में मनु, कौटिल्य, टगोर, गांधी सावरकर को ही पढ़ाया जाता रहा है. लेकिन मैंने एक नया कोर्स बनाया जिसका नाम था दलित बहुजन पोलिटिकल थॉट. जिसमें गौतम बुद्ध, ज्योतिबा फुले, अंबेडकर, पेरियार, ताराभाई शिंडे, कांशीराम को पढ़ाया जाता है. इसमें अन्य विद्वानों के साथ कांचा इलैया की भी किताब है. सत्तारूढ़ प्रतिष्ठानों को दलित विद्वानों के उठाए सवालों से परेशानी होती है. हाईकोर्ट के आदेश के बाद दलित शब्द का इस्तमाल नहीं हो सकता है. इसलिए दलित शब्द हटाया जा रहा है. लेकिन कांचा इलैया की किताब क्या इसलिए हटाने का फैसला हुआ है क्योंकि हिन्दू धर्म का अपमान करती हैं. डॉ. रामचंद्र गुहा पर भी पर इसी तरह के आरोप हैं. कांचा इलैया की किताबें पढ़ कर देखिए, आपको समाज को समझने का गहरा और नया नज़रिया मिलेगा.

अब आते हैं रफाल विमान विवाद पर. रोहिणी सिंह और रवि नायर की दि वायर में एक नई रिपोर्ट आई है जिससे रफाल विवाद को लेकर सवाल और गहरे हो गए हैं. रोहिणी सिंह और रवि नायर ने एक बात पकड़ी जो अभी तक सामने नहीं आई थी. दोनों ने लिखा है कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी ने अनिल अंबानी की एक दूसरी निष्क्रिय कंपनी आरडीएल में 35 फीसदी हिस्सेदारी खरीद कर 284 करोड़ रुपये का मुनाफा पहुंचाया है.

इस कंपनी का लड़ाकू विमान बनाने से कोई लेना देना नहीं है. दास्सो एविशेन के साथ रिलायंस डिफेंस का करार हुआ था मगर दास्सों ने एक निष्क्रिय कंपनी का शेयर क्यों खरीदा. दि वायर की रिपोर्ट के अनुसार जिस कंपनी में दास्सो ने निवेश किया है वो घाटे में चल रही है और उसका राजस्व शून्य है. यही नहीं रिलायंस इंफ्रा ने जो सार्वजनिक फाइलिंग की है उससे पता चलता है कि इसने वित्त वर्ष 2017-18 में आरडीएल के 34.7 प्रतिशत शेयर बेचे हैं. दि वायर पर आप पूरी रिपोर्ट पढ़ सकते हैं. इस रिपोर्ट के बाद राहुल गांधी खुद प्रेस कांफ्रेंस करने आए और सरकार पर नए संदर्भों में आरोप लगाए.

राहुल ने कहा, 'राफेल के सीईओ ने कहा था की एचएल को परे करके अनिल अंबानी को कॉन्ट्रैक्ट देने का कारण था कि अनिल अंबानी के पास जमीन थी. अब बात निकलती है कि अनिल अंबानी की कंपनी में दसों ने 284 करोड़ पर डाला और उसी पैसे से अनिल अंबानी ने जमीन खरीदी मतलब साफ है कि डिफॉल्ट कैसी हो साफ झूठ बोल रहा है. बड़ा सवाल उठता है कि 8 लाख की कंपनी में जो कुछ नहीं कर रही लॉस मेकिंग कंपनी है उसमें 284 करोड़ रुपए डसॉल्ट ने क्यों डाले. इसे किकबैक कहते हैं. सो, दिस इज द फर्स्ट किकबैक गिवन टू मिस्टर अंबानी बाय डसॉल्ट. and it is clear like day.'

NDTV ने दास्सो और अनिल अंबानी रिलायंस ग्रुप से वायर की रिपोर्ट के संबंध में संपर्क किया है. अभी तक दास्सो ने ईमेल का जवाब नहीं दिया है. अनिल अंबानी रिलायंस ग्रुप ने एनडीटीवी से कहा है कि वह वायर की रिपोर्ट पर जवाब नहीं दे रही है. लेकिन ट्रांजेक्शन से जुड़ी जानकारियां दास्‍सो की 2017 की सालाना रिपोर्ट और रिलायंस इंफ्रा की मार्च 2018 की सालाना रिपोर्ट में दी गयी है. इस मामले को समझने के लिए रोहिणी सिंह की स्टोरी को आप पढ़ सकते हैं. भारत के लिए राहत की खबर है. अमरीका ने भारत सहित आठ देशों को ईरान पर लगे प्रतिबंध से छूट दी है. ये देश ईरान से तेल खरीद सकेंगे. इसी के साथ आज भारत के रुपये में मज़बूती आई है. डॉलर की कीमत में एक रुपये का सुधार हुआ है.

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