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This Article is From Dec 10, 2018

बिहार से लेकर यूपी की परीक्षाओं को लेकर क्यों परेशान हैं छात्र

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 10, 2018 14:48 pm IST
    • Published On दिसंबर 10, 2018 14:48 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 10, 2018 14:48 pm IST
सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया को लेकर सरकारें अब उदासीन बने रहना छोड़ दें. नौजवान यह समझने लगा है कि भर्ती का एलान नौकरी देने के लिए कम, नौकरी के नाम पर सपने दिखाने के लिए ज़्यादा होता है. जब उस भर्ती की प्रक्रिया को पूरा होने में कई साल लग जाते हैं तब नौजवान समझ जाता है कि उसका गेम हो चुका है. ऐसा लगता है कि सरकारें ज़िद पर अड़ी हैं कि हम इन चयन आयोगों में कोई बदलाव नहीं करेंगे. हर परीक्षा विवादों से गुज़र रही है. प्रश्न पत्र लीक होने से लेकर रिश्वत लेकर नौकरी देने के आरोपों और किस्सों ने नौजवानों की रातों की नींद उड़ा दी. सिस्टम का अपने प्रति इस तरह अविश्वास पैदा करते जाना उसके लिए सही नहीं होगा.

बिहार कर्मचारी चयन आयोग को अब कोई नहीं सुधार सकता है. एक ही उपाय है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक का तबादला कर दें. इन सबको अपने सचिवालय में ले आएं और बैठने के लिए कोई कमरा न दें. सिर्फ एक स्टूल दें. वहां इनसे सिर्फ फाइल लाने ले जाने का काम कराया जाए. एक नया विभाग बने. नए कर्मचारियों के साथ. सरकार प्रश्न पत्रों का ठेका किसी कंपनी को न दे. यह धंधा बन चुका है. सरकार खुद अपने स्तर पर परीक्षा का आयोजन करे और विश्वनीयता बहाल करे. आखिर, कितनी घूसखोरी होती है कि हर बहाली को लेकर नौजवान दिन रात अफवाहों के बीच जी-मर रहा है. यह कब तक चलेगा.

बड़ी संख्या में नौजवान फोन कर रहे हैं कि 2014 में बिहार राज्य कर्मचारी चयन आयोग की भर्ती निकली थी. अभी तक इसकी परीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है. क्या यह मज़ाक नहीं है? इन छात्रों का कहना है कि परीक्षा केंद्र से प्रश्न पत्र बाहर ले जाने की अनुमति नहीं थी, फिर कैसे यह प्रश्न पत्र व्हाट्सएप पर वायरल हो गया है. उन्हें लीक होने का शक है. स्थानीय अखबारों के अनुसार इसकी जांच हो रही है. मगर कैंसिल की आशंका से छात्रों का वक्त और बर्बाद होगा. प्रश्न पत्र लीक हुआ है तो कैंसिल तो करना पड़ेगा लेकिन यह कैसे हुआ.

क्या छात्रों की ज़िंदगी से खेलना इतना आसान है. अगर आसान है तो छात्रों के परिवार वाले ई ठंडा में फुल स्वेटर पहन कर चूड़ा मटर खा रहे हैं क्या. उतरिए बच्चों की खातिर सड़कों पर. 12 हज़ार से अधिक पदों की भर्ती आई थी. तीन बार इम्तिहान हो चुके हैं. तीनों बार कैंसिल. जनवरी 2017 में भी प्रश्न पत्र लीक हो गया था. कैंसिल हो गया. उसके बाद अब हो रहा है. ग़ज़ब तमाशा चल रहा है. पेपर लीक होने की ख़बर से छात्र खासे विचलित हैं. 460 रुपये लगाकर छात्रों ने फार्म भरे थे.

वहीं, उत्तर प्रदेश के गांव-गांव से नौजवानों के फोन आ रहे हैं. उनका कहना है कि पुलिस भर्ती बोर्ड ने सामान्यीकरण कर नाइंसाफी की है. उनका कहना है कि एक पाली में 214 नंबर लाने वालों का नहीं हुआ है, जबकि दूसरी पाली में 170 अंक लाने वालों का हो गया है. ऐसा सामान्यीकरण की प्रक्रिया के कारण हुआ है. उन्हें यह बात समझ नहीं आ रही है कि कम नंबर लाकर कैसे किसी का हो गया और अधिक नंबर वाला कैसे छंट गया. अगर ऐसा है तो ठीक नहीं है. ऐसे बेकार फार्मूले के आधार पर भर्ती बोर्ड छात्रों को संतुष्ट नहीं कर पाएगा. उसे और बेहतर तरीके से जवाब देना चाहिए. सैंकड़ों की संख्या में छात्रों ने मुझसे संपर्क किया है. मेरे पास भर्ती बोर्ड का पक्ष नहीं है लेकिन परेशान नौजवानों की बात इस वक्त अहम है. ऐसा क्यों हैं कि उन्हें परीक्षा की प्रक्रिया को लेकर घड़ी-घड़ी शक होता रहता है. सरकार को चाहिए कि वह छात्रों के सवालों को अखबारों में बड़े-बड़े पन्ने का विज्ञापन देकर जवाब दे ताकि परीक्षा व्यवस्था में उनका भरोसा बन सके.

हर दिन मुझे किसी न किसी परीक्षा को लेकर धांधली के मैसेज आते रहते हैं. इसमें कोई भी राज्य अपवाद नहीं है. इन संदेशों की तादाद इतनी है कि मेरे पास संसाधन नहीं है कि सबकी कहानी की पड़ताल करूं और चैनल पर दिखाऊं. यह समस्या बहुत व्यापक हो चुकी है. इसे लगातार अनदेखा करना समाज के हित में नहीं है. आखिर, नौजवानों की क्या गलती है. क्या सरकारें नियमित रूप से नहीं बता सकतीं कि आज इतने लोग रिटायर हुए हैं. हमारे यहां इतनी वेकैंसी बनी है. हम खास समय सीमा के भीतर बहाली कर लेंगे. यह कौन सा बड़ा काम है. मगर विवादों और मुकदमों में फंसी इन परीक्षाओं को देखकर यही लगता है कि सरकारें नौकरी नहीं देना चाहती हैं. वो बस नौकरी के नाम उन्हें फुसलाए रखना चाहती हैं ताकि युवा उनके नेता का ज़िंदाबाद करता रहे और उम्मीद पालता रहे. बेहद दुखद है. शर्मनाक है. स्थानीय अख़बारों को चाहिए कि इन खबरों को रूटीन की तरह किनारे न छापें बल्कि बकायदा अभियान चलाकर सिस्टम की इस सड़न को दूर करवाएं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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