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This Article is From Jul 26, 2022

...क्यों एकनाथ शिंदे से बार-बार एक ही सवाल कर रहे हैं उनके सहयोगी MLAs

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 26, 2022 16:14 pm IST
    • Published On जुलाई 26, 2022 16:02 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 26, 2022 16:14 pm IST

महाराष्ट्र में 26 दिनों से दो सदस्यीय मंत्रिमंडल काम कर रहा है. या यूं कहें कि यह सिलसिला 30 जून के बाद से चल रहा है जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने भाजपा के नए साथी देवेंद्र फडणवीस के साथ पद की शपथ ली .

एकनाथ शिंदे और देवेन्द्र फडणवीस ने मिलकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराने के लिए काम किया था. गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे खेमा के बहुत सारे शिवसेना के विधायकों ने शिंदे का हाथ थाम लिया था.

जांच एजेंसी की धमकियों और मंत्रालय की पेशकशों के जरिए दोनों नेताओं ने बड़ी आसानी से ठाकरे सरकार को गिरा दिया. जांच एजेंसियों की धमकियों और मंत्रालय की लालच की वजह से बहुत सारे शिवसेना के विधायक भाजपा की बाहों में चले गए. लेकिन बाद की पार्टी या जश्न अल्पकालिक ही थी.

तो फिर समस्या क्या है ? यदि सचमुच में कहा जाए तो समस्या लूट के माल का बंटवारा है. उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने की जल्दबाजी में शिंदे और फडणवीस ने दलबदलुओं से बड़े-बड़े वादे किए. अब उन वादों को निभाना मुश्किल साबित हो रही है. एक अधीर "बड़े भाई" की भूमिका में बीजेपी बड़े हिस्से की मांग कर रही है.

देवेन्द्र फडणवीस पिछली भाजपा-शिवसेना सरकार में मुख्यमंत्री थे. इस बार उन्हें अपमान का घूंट पीकर रहना पड़ा और काफी अनिच्छा से वो शिंदे के डिप्टी के रूप में काम करने के लिए तैयार हुए. दरअसल, उन्हें बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बताया था कि यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे वो मना नहीं कर सकते हैं. गौरतलब है कि इससे पहले देवेन्द्र फडणवीस के अधीन शिंदे काम कर चुके हैं. सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने फडणवीस से कहा कि शिंदे सरकार में शामिल नहीं होना उनके लिए करियर सीमित करने वाला कदम हो सकता है. शाह ने फडणवीस को अपनी उदारता साबित करने और शिंदे सरकार को स्थिरता देने की सलाह दी. शाह ने उनकी उम्मीदों को जीवित रखने के लिए यह भी आश्वासन दिया कि राजनीति में हमेशा ही कुछ न कुछ आश्चर्य होते रहते हैं.

केंद्रीय भाजपा को यह चिंता थी कि कहीं फडणवीस मुंबई में प्रतिद्वंद्वी सत्ता का केंद्र तो नहीं बन जाएंगे. फडणवीस अब साथ तो हैं लेकिन साझा करना और देखभाल करना अभी तक नहीं हो रहा है. नतीजतन भारत का दूसरा सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्य, महाराष्ट्र, वस्तुतः दो पुरुषों द्वारा चलाया जा रहा है. कैबिनेट नहीं होने की वजह से एक विवादास्पद कार शेड परियोजना के लिए मुंबई के आरे जंगल में पेड़ों को काटने के निर्णय को मंजूरी दे दी गई है. ठाकरे ने इस परियोजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह पर्यावरण की दृष्टि से सही कदम नहीं होगा.

दो सदस्यीय कैबिनेट दिल्ली की यात्रा कर रहे हैं. अब तक दोनों पांच बार दिल्ली आ चुके हैं. दोनों चाहते हैं कि शाह और नड्डा विभागों पर गतिरोध को तोड़ें लेकिन अब तक बहुत कम सफलता मिली है.

शिंदे लोक निर्माण विभाग, गृह और वित्त जैसे "बड़े" विभागों को नियंत्रित करने के लिए अड़े हुए हैं. नम्बर दो पायदान पर खड़े फडणवीस को भी एक बढ़िया पोर्टफोलियो चाहिए.

महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. लेकिन भाजपा के अंदर का एक वर्ग जो शिंदे का विरोध करती है वो पहले से ही भाजपा के साथ शून्य जवाबदेही और शून्य शक्ति के बारे में सोच रहे हैं. एक बीजेपी विधायक ने मुझसे कहा, "फडणवीस को तो लाल बत्ती मिल गई, हमारा क्या.”

फडणवीस और शिंदे भी अपने कानूनी विशेषज्ञों के साथ घंटों बिता रहे हैं क्योंकि उद्धव ठाकरे गुट ने नई सरकार की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर किए हैं. ठाकरे गुट शिवसेना के धनुष-बाण सिंबल के लिए लड़ रहा है.

रक्तहीन तख्तापलट को जिन विधायकों ने अंजाम तक पहुंचाया है वो शिंदे के विधायक अब नाराज हो रहे हैं और अपने इनाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं. आठ मंत्रियों सहित 40 दलबदलुओं के इस समूह से वादा किया गया था कि उनके स्टेटस में बढ़ोतरी होगी. शिंदे अब तख्तापलट में शामिल विधायकों को रोजाना फोन कर रहे हैं.

महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र अगस्त में शुरू होने की संभावना है और तब तक शिंदे और फडणवीस दोनों ही एक कैबिनेट बना लेना चाहेंगे.

45,000 करोड़ रुपये के सालाना बजट वाले देश के सबसे अमीर निगम ‘बृहन्मुंबई नगर निगम' (बीएमसी) के लिए अहम चुनाव होने जा रहे हैं. ठाकरे सेना और शिंदे सेना के बीच यह पहला चुनावी आमना-सामना होगा, और दोनों पक्ष हर तरह की जोर-आजमाइश में शामिल होंगे.

ठाकरे गुट के एक वरिष्ठ नेता ने उपहास किया, "सरकार तो इनसे बन नहीं रही है और ये बीएमसी जीतेंगे."

बेशक, चाय की प्याली और ओंठ के बीच काफी दूरी होती. आप कुछ भी निश्चितता के साथ नहीं कह सकते.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं ...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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