राम मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के लिए जमीन 9 गुना दाम पर क्यों खरीदी?

अयोध्या में बड़ी मात्रा में ज़मीन की ख़रीद बिक्री और अधिग्रहण हो रहा है, इसमें कौन करोड़पति और अरबपति बन रहा है इस कहानी तक पहुंचना आसान नहीं है

गणित में कमज़ोर होने के कारण तय नहीं कर पा रहा हूं कि कौन सी ख़बर बड़ी है. राम का नाम जुड़ा होने का कारण 5 मिनट में ज़मीन की कीमत 2 करोड़ से 18 करोड़ हो गई, ये ख़बर बहुत बड़ी है या पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी कंपनी के 4000 करोड़ के शेयर एक दूसरी कंपनी को दे दिए, ये खबर बड़ी है. या तीसरी ख़बर इन दोनों से भी बड़ी है कि भारतीय बैंकों को 5000 करोड़ से अधिक का चूना लगाकर भारत से भाग गए बड़ोदरा के कारोबारी संदेरसा ने तेल कंपनी बनाकर भारत की सरकारी कंपनियों को पांच हज़ार करोड़ का कच्चा तेल एक दूसरी कंपनी के ज़रिए बेच दिया. तो आपको तय करना है 18 करोड़ का कथित घोटाला, 4000 करोड़ और 5000 करोड़ का कथित घोटाला इन तीनों में से कौन बड़ा है. तय करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आस्था की कोई कीमत नहीं होती. काफी समय तक सोचता रहा कि कहां से शुरू करूं. राम मंदिर के लिए ज़मीन ख़रीदने का एक मामला सामने आया है जिसके कई किरदार मामला सामने आने के बाद सामने नहीं आ रहे हैं. अगर कुछ गड़बड़ नहीं है तो सौदा में शामिल कई किरदार मीडिया के सामने क्यों नहीं आते? जिस मंदिर का भूमि-पूजन सबके सामने हुआ, एक एक बात पूरे देश को बताई गई, उस मंदिर के लिए ज़मीन के मामले से जुड़े किरदार पर्दे के पीछे क्यों छिपे रहे.

उन्हें याद होना चाहिए कि इसी मंदिर के भूमि पूजन के वक्त प्रधानमंत्री साष्टांग हो गए थे, उस भूमि से प्रधानमंत्री को गए एक साल भी नहीं हुए हैं कि ऐसी खबर आई है. तालाबंदी से आर्थिक तबाही झेल रहे भारत के लिए यह दृश्य आध्यात्मिक उन्नयन के समान था. वर्ना लोग अस्पतालों और उनके भीतर आक्सीजन वेंटिलेटर के इंतज़ाम के ऐसे दृश्य की भी मांग करते और महान बताते. 5 अगस्त 2020 के भूमि पूजन की पवित्रता को समृद्ध करने के लिए 1500 से भी अधिक स्थानों से पवित्र एवं ऐतिहासिक स्थलों की मृदा (मिट्टी) लाई गई थी और 2000 से भी अधिक स्थानों व देश की 100 से भी अधिक पवित्र नदियों एवं सैकड़ों कुण्डों से जल लाया गया था. हर तरह से पवित्रता सुनिश्चित की गई थी. इसके बाद भी ज़मीन के एक सौदे पर सवाल उठ गया है.

रविवार को समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी ने अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस कर यह सवाल उठाए हैं. श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने जो ज़मीन 18 करोड़ में खरीदी है वही ज़मीन कुछ मिनट पहले दो करोड़ में खरीदी गई थी. दोनों ही सौदे में श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा गवाह के रुप में मौजूद हैं.
 
सफाई देने के बाद भी चीज़ें साफ़ नहीं हो जातीं. इस करार के हिसाब से तो दो साल में खेती की ज़मीन का दाम नौ गुना बढ़ा है. क्या और भी खेती की ज़मीनें लिखाई गई हैं उनके दाम भी 9 गुना बढ़े हैं? कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा है कि करोड़ों लोगों ने आस्था और भक्ति के चलते भगवान के चरणों में चढ़ावा चढ़ाया. उस चंदे का दुरुपयोग अधर्म है, पाप है, उनकी आस्था का अपमान है.

ज़मीन सौदे के कागज़ात बाहर आने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ता लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन करने पहुंच गए. चंदा चोर-गद्दी छोड़ के नारे लगाने लगे. बाद में पुलिस ने उन्हें हटा दिया. कांग्रेस के बड़े नेता तो नज़र नहीं आ रहे, मगर साधारण कार्यकर्ताओं ने सड़क पर उतर कर विरोध करने की ज़िम्मेदारी ज़रूर निभाई. बड़े नेता पार्टी छोड़ने के समय नज़र आते हैं. कांग्रेस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की जांच करे.

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी प्रेस कांफ्रेंस की है. आम आदमी पार्टी ने रविवार को ही इस मामले को उठाया था.

समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन के बाद भी बीजेपी चुप्पी साधे रही. सोमवार दोपहर तक की प्रेस कांफ्रेंस तक बीजेपी के किसी प्रमुख नेता न तो ट्वीट किया और न ही बयान दिया. बीजेपी नेता और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय क्यों दोपहर तक ग़ायब रहे समझ नहीं आ रहा है.

अयोध्या में बड़ी मात्रा में ज़मीन की ख़रीद बिक्री और अधिग्रहण हो रहा है. ख़रीद बिक्री में कौन करोड़पति और अरबपति बन रहा है इस कहानी तक पहुंचना आसान नहीं है. संसाधन और संवाददाताओं की फौज से ही मुमकिन है. जो नहीं है उसकी चर्चा छोड़िए, जो हो रहा है और जितना पता चल रहा है उसी को देखिए.

फैज़ाबाद से सटा हुआ धर्मपुर शहादत गांव. इस गांव की ज़मीन का अधिग्रहण अयोध्या में बन रहे एयरपोर्ट के लिए हो रहा है जिसका नाम श्री राम एयरपोर्ट है. उम्मीद है बाद में यह एयरपोर्ट अडानी एयरपोर्ट नहीं कहलाएगा. बहरहाल, इसी के लिए ज़मीन का अधिग्रहण हो रहा है. इस गांव के लोगों का कहना है कि उनकी ज़मीन का पश्चिमी सिरा बगल के जनौरा गांव के पूर्वी सिरे से मिलता है. जनौरा चूंकि शहरी क्षेत्र में आता है इसलिए वहां बिना रास्ते वाली एक हेक्टेयर ज़मीन का सर्किल रेट 1 करोड़ 16 लाख तय है. जिस ज़मीन तक जाने का रास्ता है उसका सर्किल रेट 1 करोड़ 87 लाख प्रति हेक्टेयर है. अब इसी को देखकर धर्मपुर शहादत गांव के लोगों की मांग है कि सरकार उन्हें भी उसी रेट पर मुआवज़ा दे. इनकी मांग सही भी लगती है. अगर यह गांव ग्रामीण क्षेत्र में आता है तो भी इसमें बदलाव कर पास के गांव के बराबर मुआवज़ा मिलना चाहिए क्योंकि इस गांव की ज़मीन पर एयरपोर्ट और रनवे बनना है. लोगों के घर टूटने हैं. मगर गांव वालों ने बताया कि उनके गांव का सर्किल रेट प्रति हेक्टयेर 21 लाख और 32 लाख है. हमारे सहयोगी प्रमोद श्रीवास्ताव धर्मपुर शहादत गए थे.

गांव के सुभाष तिवारी कहते हैं, '“हमारे यहां एयरपोर्ट बनने जा रहा है. राम जन्मभूमि के किनारे का गांव है. हमारे गांव की जमीन ले रहे हैं. जनौरा का बैनामा करा चुके हैं. वहीं से सटा हुआ हमारे गांव को आठ लाख चालीस हज़ार दे रहे हैं. हम ज़मीन देना चाहते हैं. पूरा मुआवज़ा मिलेगा तो देंगे. आगरा एक्सप्रेस को भरपूर मुआवज़ा दिया है, वहां के किसान खुशहाल हैं. हमारा गांव घर ग्राम सभा उजड़ रही है. हम लोगों को मुआवज़ा नहीं मिल रहा है. तमाम लोग कोरोना काल में बंबई दिल्ली से आ गए. यहां भी गुज़र नहीं होने वाला है. किस दुनिया में चले जाएं. आए दिन अधिकारी अलग अलग फाइल लेकर आते हैं. एक बार कहते हैं 44 लाख हेक्टेयर है. किसी दस्तखत हैं. गांव में गुमराह करते हैं. मैं निवेदन करना चाहते हैं हमारे गांव में न आवे अच्छा है.”

वहीं एक अन्य ग्रामीण दिलीप तिवारी कहते हैं, ''मैं किसान परिवार से हूं. श्रीराम एयरपोर्ट में हम लोगों की ज़मीनें जा रही हैं. गांव जा रहा है. घर भी जा रहा है. मतलब भूमिहीन हो जा रहे हैं. हमारे गांव के किसान खेती करते हैं. समस्या ये आ रही है कि यहां का जो मुआवज़ा दिया जा रहा है वो इतना कम है कि हम लोग अयोध्या जनपद में दोबारा बस ही नहीं पाएंगे. सबसे आग्रह किया लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. ज्यादा दिक्कत करेंगे तो हमारे यहां के सरकारी कर्मचारी को सताते हैं. कहते हैं कि आप लोग आकर सहमति दीजिए नहीं तो नौकरी से निकाल देंगे. हम लोग डरे सहमे रहते हैं. भयावह स्थिति है हमारे गांव की. हम सरकार से यही गुजारिश करते हैं कि हमारे बगल जनौरा में जो मुआवजा दिया है वही मांगते हैं. सरकार दें नहीं तो हम लोग अयोध्या से उजड़ जाएंगे. उनका मंदिर तो बन रहा है लेकिन हम लोग जनपद से उजाड़ दिए जाएंगे.''

दिलीप तिवारी ने कहा कि उनके गांव के सरकारी कर्मचारियों को धमकाया जा रहा है कि वे सहमति दें. ज़मीन दें. गांव वालों का साथ देने पर कहा जाता है कि नौकरी से निकाल देंगे. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर यह सब हो रहा है.

कुछ दिन पहले इस नौजवान ने अपनी तस्वीर भेजी थी. अपने मैसेज में लिखा है कि उसके पिता का नाम नरेंद्र तिवारी है जो धर्मपुर शहादत गांव के रहने वाले हैं. अधिकारी किसानों को अपनी जमीन बैनामा न करने पर उनके घर के सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने और जेल में डालने की धमकी दे रहे हैं. नरेंद्र तिवारी को फर्ज़ी तरीके से सस्पेंड कर दिया गया है. इसके अलावा इस गांव से और किसी सरकारी कर्मचारी के प्रताड़ित होने की खबर नहीं मिल पाई.

किसी से डरा धमका कर ज़मीन नहीं लेनी चाहिए. यह ठीक नहीं कि बगल के गांव वालों को सवा करोड़ मिले और दूसरे गांव के लोगों को तीस लाख. सरकार को देखना चाहिए कि धर्मपुर शहादत गांव के लोगों को वही मुआवज़ा मिले जो पास के गांव जनौरा के लोगों को मिल रहा है. इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात कुछ और है. इस गांव के लोगों ने मुआवज़ा नीति को लेकर विरोध किया था. उस विरोध के दौरान अपनी नागरिकता को जिस तरह परिभाषित किया है उसे देख कर बहुत दुख हुआ. कहां तो संविधान की कसम खानी चाहिए लेकिन खा रहे हैं जनेऊ की कसम. यह वीडियो अपने आप में रिसर्च का एक महत्वरपूर्ण टेक्स्ट है. जो बताता है कि हमने इतने सालों में संवैधानिक अधिकारों को लेकर आधी अधूरी समझ ही बनाई है. अगर यही लोग ब्राह्मण न होते, परशुराम के वंशज न होते तो फिर अपने प्रदर्शन के दौरान किसकी शपथ उठाते. आप इसे ध्यान से पढ़ें. 

“जय श्री परशुराम, जय श्री परशुराम, हम ग्रामसभा धर्मपुर शहादत, अयोध्या के किसान, ब्राह्मण, हम लोगों ने 2017 में भाजपा को वोट देकर भाजपा की सरकार बनवाई. लेकिन आज श्री राम एयरपोर्ट के नाम पर हमको योगी सरकार के अधिकारियों द्वारा सताया जा रहा है. उत्पीड़न किया जा रहा है. फर्जी मुकदमे में जेल भेजने की धमकी दी जा रही है. प्रभु श्री राम की धरती पर उनकी प्रजा को घर से बेघर करने की तैयारी की जा रही है लेकिन हम सभी ब्राह्मण, योगी सरकार के सामने झुकेंगे नहीं. हम भगवान श्री परशुराम के वंशज, जनेऊ की कसम खा कर कहते हैं. जो ग़लती हमने 2017 में भाजपा को वोट देकर की है वह दोबारा नहीं करेंगे.”

इन्हें सुनते हुए लगा कि समाज में कितना कुछ बदल गया है. संवैधानिक प्रतीक हमारी सोच से बाहर हो गए हैं. धर्मपुर शहादत के गांव के लोगों को फिर से सरयू नदी में खड़े होकर प्रतिज्ञा करनी चाहिए और इस बार हाथ में संविधान की किताब हो. हमें नहीं मालूम कि इस गांव में दूसरी जाति के लोग रहते हैं या नहीं. अगर रहते हैं तो तब आप और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे कि इस शपथ में क्या दिक्कत है. संविधान की शपथ लेते तो सब शामिल होते.

फिर भी आपको इस बात की शिकायत नहीं होनी चाहिए कि हमने पांच हज़ार करोड़ के कथित घोटाले के सामने 18 करोड़ के कथित हेर-फेर को कम महत्व दिया. अब आते हैं कम महत्व के घोटालों पर. ऐसी ख़बरें घोटालों की दुनिया में एक ईंट के समान हैं जो कब इधर से उधर कर दी जाती हैं पता भी नहीं चलता है. मैं समझता हूं कि लोग सदमे में होंगे लेकिन क्यों सदमे में हैं ये नहीं समझ पा रहा हूं. 18 करोड़ रुपये की बात अगर आहत टाइप कुछ कर रही है तो एक सरकारी बैंक के 4000 करोड़ के शेयर एक कंपनी को ट्रांसफर कर देने से कोई आहत क्यों नहीं होता है. समझने की कोशिश कर रहा हूं.

ये पंजाब नेशनल बैंक है। इसकी एक और कंपनी है जिसका नाम है पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी. इस कंपनी में पंजाब नेशनल बैंक की हिस्सेदारी है. इंडियन एक्सप्रेस के संदीप सिंह ने ख़बर लिखी है कि पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी के बोर्ड ने अमरीका की एक कंपनी Carlyle Group को 4000 करोड़ के शेयर ट्रांसफर कर दिए हैं जिससे ये कंपनी इस ग्रुप की हो गई है. पंजाब नेशनल बैंक की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से भी कम हो गई है. यह खेल कैसे हुआ - पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी को चलाने के लिए एक बोर्ड है. इस बोर्ड के 12 सदस्य हैं. 12 में से 7 सदस्यों का संबंध Carlyle Group से कभी न कभी रहा है. दो सदस्य तो सीधे ही कंपनी के कर्मचारी हैं क्योंकि पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी में पहले से ही Carlyle Group की हिस्सेदारी है. जैसे पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी के प्रबंध निदेशक और सीईओ हरदयाल प्रसाद इसके पहले 2018 में स्टेट बैंक क्रेडिट कार्ड के प्रबंध निदेशक बनते हैं. फिर वहां से जुलाई 2020 में VRS ले लेते हैं. एक महीने के भीतर पंजाब नेशनल हाउंसिग फाइनांस के प्रबंध निदेशक बन जाते हैं. VRS लेने से पहले मार्च 2020 में CCarlyle Group को 9.3 crore शेयर दे देते हैं. इससे SBI card में Carlyle Group की हिस्सेदारी बढ़ जाती है. ऐसा करने से इस कंपनी को तीन साल के भीतर 2000 करोड़ का मुनाफा होता है. जब स्टेट बैंक में थे तब 9500 करोड़ का पब्लिक इश्यू आया था जिसमें 9.3 करोड़ शेयर Carlyle Group को दिए गए थे. ऐसा करने से Carlyle Group ने तीन साल के भीतर 2000 करोड़ का मुनाफा कमा लिया. आईपीओ आने के चार महीने के बाद हरदयाल प्रसाद रिटायरमेंट ले लेते हैं और पंजाब नेशनल हाउसिंग फाइनांस कंपनी के निदेशक बन जाते हैं. इसी तरह से कुल पांच सदस्यों के संबंध 4000 करोड़ का शेयर पाने वाली कंपनी से हैं.

सोचिए पुराने बैंक में रहते हुए एक कंपनी को शेयर देते हैं. नए बैंक में जाकर कंपनी को पूरा बैंक दे देते हैं. बैंक में पैसा आपका होता है. उस पैसे का खेल कोई और खेल रहा होता है. पिछले सप्ताह हिन्दू बिज़नेसलाइन और बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी इस संबंध में रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस सौदेबाज़ी को ग़लत बताया है. सवाल किया है कि क्यों पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी हिस्सेदारी Carlyle Group के आगे सरेंडर कर दी. इससे बैंक को 2000 करोड़ का नुकसान हुआ है. बिज़नेस स्टैंडर्ड की ख़बर के अनुसार पंजाब नेशनल बैंक इस बात की जांच कर रहा है कि Carlyle Group को शेयर कैसे बेच दिए गए.

4000 करोड़ के शेयर ट्रांसफर हो जाते हैं. कमेटियों को शक भी होता है, रिपोर्ट भी आती है लेकिन काम हो जाता है. बोर्ड का गठन ही इस तरह से किया जाता है कि उसके सदस्यों का नाता उस कंपनी से हो जो आगे चल कर खरीदने वाली होती है. मतलब जिस कंपनी को सरकारी कंपनी खरीदनी है, वो अपने लोगों को उस कंपनी के बोर्ड में बिठाती है फिर ये लोग सरकारी कंपनी को उस कंपनी के नाम कर देते हैं.

हेर-फेर का गेम केवल सरकारी कंपनी को खरीदने के लिए नहीं होता है, कई बार किसी सरकारी कंपनी को अपना माल बेच कर हज़ारों करोड़ कमाने का भी होता है. यह जो हो रहा है वह न तो अकल्पनीय है और न ही अभूतपूर्व. खिलाड़ी अपना खेल ऐसे ही खलते हैं और आप हैं कि गैस सिलेंडर की सब्सिडी के लिए रो रहे हैं.

इनकी कहानी आप सुन चुके हैं लेकिन भूल चुके होंगे. गुजरात प्रांत के वडोदरा ज़िले नितिन संदेसरा, चेतनकुमार संदेसरा, उनकी पत्नी दीप्तिबेन, दीप्तिबेन के भाई हितेशकुमार पटेल. गुजरात का यह धनिक परिवार एक दिन भारत से लापता हो जाता है. मार्च 2019 की बात है. भारत के कई बैंकों का 5127 करोड़ रुपया लेकर भाग गए. यह परिवार अल्बानिया में जमकर निवेश करता है. नाइजीरिया की नागरिकता लेते हैं. दि वायर में इनकी खुशहाली पर लंबी रिपोर्ट छपी है. आपको जान कर खुशी होगी कि वडोदरा का यह भगोड़ा कई तरह के धंधे कर रहा है. बहुत सारी कंपनियां हैं. 50,000 करोड़ से अधिक का कारोबार कर रहे हैं. चाय का व्यापार करते हैं. जेलटिन (जेल-अ-टिन) बनाते हैं जिसका इस्तमाल भारत की दवा कंपनियां करती हैं. यही नहीं नाइजीरिया में इसने एक तेल कंपनी बनाई थी जिससे भारत की सरकारी कंपनियों ने 5000 करोड़ का कच्चा तेल खरीदा है. संदेसरा की कंपनी ने लंदन की कंपनी ग्लेनकोर को कच्चा तेल बेचा और फिर उस कंपनी से भारतीय कंपनियों ने कच्चा तेल खरीदा. नाइजीरिया से तेल का आयात भी 59 प्रतिशत बढ़ गया है. बाकी वायर की रिपोर्ट में आप विस्तार से पढ़ सकते हैं.

आपकी नौकरी गई है और आप होम लोन की ईएमआई को लेकर कितने परेशान हैं. लेकिन इन लोगों को कोई परेशानी नहीं है. जो नहीं भागे हैं उनका भी ख्याल रखा गया है. ऐसा कत्तई ज़रूरी नहीं कि बैंकों का लोन लेकर भारत से भागे ही, जो नहीं भागते हैं उनके लिए बैंक ही दूसरे तरीके से लूट कर भरपाई कर देते हैं. इसे कानूनी शब्दों में लूटना नहीं कहते हैं. तो आप शब्दों क इस्तमाल सोच समझ ही करें.

भारतीय बैंकों ने 2021 के वित्त वर्ष में 1 लाख 53 हज़ार करोड़ का लोन बट्टे खाते में डाल दिया है जिसे अंग्रेज़ी में Write Off कहते हैं. यह राशि पिछले वित्त वर्ष से 6 प्रतिशत ज्यादा है. बिज़नेस की ख़बरें करने वाली वेबसाइट मनीकंट्रोल का मानना है कि वित्त वर्ष 2020 में 1 लाख 45 हज़ार करोड़ रुपये का लोन Write Off कर दिया गया. इस कारण बैंकों का Non Performing Assets यानी NPA काफी बढ़ जाता है.

पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को हमेशा सुखी माना जाता है, सफल माना जाता है. लेकिन यहां क्या हो रहा है. बंगाल के बीरभूम में तृणमूल दफ्तर के बाहर बीजेपी में गए कार्यकर्ता नारे लगा रहे हैं कि वापस तृणमूल में लिया जाए. कह रहे हैं कि बीजेपी में जाना भूल थी. कहीं ये भय से तो नहीं कह रहे हैं, ED से जांच करानी चाहिए. भय का एंगल है तो ठीक नहीं है. अगर खुद से तृणमूल में आना चाहते हैं तो इन्हें पता नहीं कि ये लोग पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में जाने का मार्केट खराब कर रहे हैं. जितिन प्रसाद कांग्रेस से बीजेपी में गए तो कितना इंटरव्यू हुआ. लेकिन जब बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय बीजेपी छोड़ कर वापस तृणमूल गए तो कहीं कोई एक्सक्लूसिव इंटरव्यू नहीं दिखाई दे रहा है. कवरेज तभी मिलेगा जब कोई बीजेपी में जाएगा. आया राम गया राम की राजनीति वाले इस देश में यह दृश्य बिल्कुल अद्भुत है. ये लोग समझ नहीं रहे कि जो लोग इनके साथ तृणमूल से बीजेपी में गए हैं वो कितने अकेले हो जाएंगे. इन लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए.

अभी तक जब पेट्रोल के दाम का विरोध कांग्रेस कर रही थी तब बीजेपी कहती थी कि कांग्रेस अपनी सरकारों से कहे कि टैक्स घटा दे. बिहार में बीजेपी की सहयोगी जनता दल युनाइटेड ने कहा है कि केंद्र सरकार पेट्रोल के दाम कम करे, लोग कष्ट में हैं. अब बीजेपी उनसे कहेगी कि आप टैक्स कम कीजिए. वैसे पेट्रोलियम मंत्री ने कहा था कि सर्दियों में दाम बढ़ जाते हैं. क्या कोई धर्मेंद्र प्रधान से पूछेगा कि इन दिनों भारत में गर्मी है या सर्दी है. अगर सर्दी नहीं है तो दाम क्यों बढ़ रहे हैं.

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मंत्री हैं तो कुछ भी बोल सकते हैं. जैसे No word, No meaning, Any word, One meaning, One Nation-one anchor, One Nation-one tanker, One Nation-one banker, One Nation - One actor काफी कुछ हो सकता है. One Nation-one dictation तो सबसे बेस्ट होगा. Dictation से ही तो Nation चल रहा है. आप बताइये गुज़ारा कैसा चल रहा है.