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This Article is From Apr 10, 2022

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मीडिया के सवालों से क्यों भाग रहे?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    April 10, 2022 22:38 IST
    • Published On April 10, 2022 22:38 IST
    • Last Updated On April 10, 2022 22:38 IST

भारतीय जनता पार्टी के लिए ख़ुशख़बरी है कि उनके सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मीडिया से सवालों से बचने के लिए उनके कदमों का अनुसरण कर रहे हैं . नीतीश ने अपने जनता दरबार में आम मीडिया वालों के प्रवेश पर पाबंदी जो शुरू में कोरोना के बहाने से शुरू की थी, उसे कोरोना संबंधित सारे आदेश दिल्ली से पटना तक वापस होने के बाद भी जारी रखने का फ़ैसला किया है. नीतीश कुमार के सचिवालय और उनके मीडिया सलाहकारों की मानें तो आम मीडिया वालों के सवाल से रूबरू न होने के लिए जो फ़ैसला गया है, वो उनके मनमुताबिक किया गया है. इसका एक बड़ा कारण नीतीश कुमार मीडिया वालों के सवाल से दूर रहना चाहते हैं. अपने पिछले कार्यकाल तक मीडिया के सवालों का जवाब देने वाले नीतीश कुमार के स्वभाव में ये परिवर्तन पिछले विधानसभा चुनाव के बाद आया हैं जब उनकी पार्टी तीसरे नम्बर की पार्टी बनकर उभरी.

उसके बाद उन्होंने आज तक अपने इस कार्यकाल में कभी भी कोरोना के समय दो तीन प्रेस कान्फ्रेंस की, वो भी पिछले साल दूसरे दौर के दौरान की थी. अन्यथा वो मीडिया से दूर ही रहते हैं. हालांकि कभी चलते चलते किसी विषय पर बाइट देकर नीतीश मीडिया से अपने संबंधो को इतिश्री कर लेते हैं. नौबत यहां तक आ गई है कि जिन तीन मीडिया वालों- जिसमें यूएनआई , पीटीआई और एएनआई मात्र शामिल है, उनको बुलाया जाता है, उनसे भी जो संवादाता सम्मेलन की औपचारिकता की जाती है, उन्हें भी सवाल कुछ घंटे पहले देना होता है और उसके बाद मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी बताते हैं कि अमुक सवाल पूछा जा सकता हैं और कौन सा सवाल उन्हें नहीं पूछना हैं वो भी स्पष्ट बता दिया जाता है. लेकिन अधिकारियों की मानें तो ये सब कुछ नीतीश के निर्देशन में होता है.

हालांकि नीतीश अपने हर कार्यक्रम में ये रोना रोते हैं कि वो प्रचार प्रसार में विश्वास नहीं रखते लेकिन मीडिया पर पाबंदी का उनका ये नया चेहरा निश्चित रूप से चौंकाने वाला है. नीतीश के मीडिया सलाहकारों की मानें तो ये कहना अतिशयोक्ति होगा कि इस कार्यकाल में उन्होंने मीडिया से अपनी दूरी बनाई है, क्योंकि उनके अनुसार जनता दरबार तो पिछले कार्यकाल में बंद कर दिया गया था और पिछले सात वर्षों से उन्होंने कभी अपने सरकार के कार्यकाल का वार्षिक रिपोर्ट भी जारी नहीं की. इसके दौरान मीडिया के सभी सवालों का वो जवाब देते थे. वहीं वरिष्ठ मीडिया कर्मियों का कहना हैं कि नीतीश की मीडिया के प्रति इस निरंकुश व्यवहार को हालांकि प्रिंट मीडिया के लोग एक दशक से अधिक से झेल रहे हैं, जब किसी सरकार विरोधी ख़बर पर पहले महीनों तो उसके बाद हफ़्ते तक विज्ञापन या तो बन्द कर दिया जाता था और बाद के समय में उसमें कटौती कर प्रबंधन को झुकाने की प्रथा जो शुरू हुई वो आज तक चालू है . टीवी में कुछ अधिक ख़ासकर शराबबंदी की पोल खोल रिपोर्ट आने पर दबाव डालने के हर तरह के हथकंडे अपनाये जाते हैं .

हालांकि नीतीश कुमार सरकार अब अपने हर सरकारी कार्यक्रम के क्षेत्रीय चैनल पर लाइव प्रसारण के लिए उन्हें एक निश्चित रक़म देती है और इस साल उस समय हद हो गई जब बिहार दिवस का आयोजन भी इस “पैसे देके प्रसारण देखो" श्रेणी में आ गया . ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि कम से कम बिहार के अंदर नीतीश को लोग देखते रहें, जहां उनके भाषण का टेलीकास्ट होता है. नीतीश पिछले दो विधानसभा सत्रों के दौरान मीडिया वालों से एक बार भी सामने कैमरा पर नहीं आए. इसका सबसे बड़ा कारण सवालों से उनका दिनोंदिन बढ़ता डर है, जो इस बार जब से 2017 में वो भाजपा के साथ गए हैं, उसके बाद बढ़ा है, क्योंकि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में उन्हें आज तक कुछ भी मनमुताबिक मिलना तो दूर सार्वजनिक रूप से अपमान अधिक झेलना पड़ा है. हालांकि नीतीश के मीडिया पर दबाव पर प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से उनके पहले कार्यकाल में जाँच भी हुई थी. कुछ वर्ष पूर्व जापान के एक विश्वविद्यालय में उनकी इस प्रवृत्ति पर शोध भी हुआ था, लेकिन नीतीश उन दिनों कम से कम सवाल से भागते नहीं थे और आज की तरह सवाल प्रबंधन कर जवाब देने की अब की नई प्रवृति से बचते थे .

लेकिन नीतीश मीडिया के सवालों से भाग रहे हैं तो उन्होंने अपने ब्रांड नीतीश या सुशासन बाबू की इमेज को खुद से मिट्टी में मिला रहे हैं, लेकिन साथ ही ये भी एक तरह से मान रहे हैं कि जिन अंतर्विरोधों के बीच सरकार वो आज चला रहे हैं उसके बाद उनके पास जवाब देने के लिए तर्क नहीं हैं. क्योंकि आज नीतीश के प्रति विपक्ष से अधिक उनके सहयोगी हमलावर रहते हैं और वो खुद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपने कुर्सी बचाने के लिए नतमस्तक हैं. ऐसे में वो किसी को अपने दुर्गति के लिए दोष भी नहीं दे सकते और ना मीडिया के सामने अपने वास्तविकता का हाल बयां कर सकते हैं. ऐसे में उनसे दूर रहकर वो सता में येन केन प्रकारेन बने रहने की जुगाड़ में फ़िलहाल लगे हैं.

(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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