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This Article is From Aug 05, 2015

बांध, नदी और हरसूद : सारा कसूर बस रेलवे का नहीं है!

Rakesh Maviya
  • Blogs,
  • Updated:
    अगस्त 05, 2015 12:44 pm IST
    • Published On अगस्त 05, 2015 12:37 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 05, 2015 12:44 pm IST
स्थिति पूरी साफ नहीं है, लेकिन जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, उन्हें देखकर यह भरोसे से कहा जा सकता है, यह रेलवे ट्रैक के बैठ जाने से हुआ हादसा है। एक ट्रैक खराब हुआ होता तो एक हादसा होता, एक ही प्वाइंट पर दो रेल हादसे यह बताते हैं कि पानी के बहाव ने रेलवे ट्रैक की जमीन को खोखला किया, और फिर कुछ ही पलों में एक के बाद एक बोगियों के पहियों के तले जमीन खिसकती गई।

इटारसी में रेल रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम को दोबारा शुरू करके रेलवे ने राहत के कुछ दिन ही गुजारे थे और इस एक और हादसे ने नया संकट खड़ा कर दिया। इटारसी हादसे के दौरान रेलवे के इतिहास में पहली बार हजार से ज्यादा रेलगाड़ियों को रद्द करना पड़ा। अरबों का नुकसान हुआ। शुक्र यह था कि उसमें कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन इटारसी स्टेशन से तकरीबन 100 किमी की दूरी पर हादसे ने एक बार फिर कई सवालों को सामने ला खड़ा किया है।

इस हादसे को समझने के लिए आपको उस जगह के बारे में भी समझना होगा। आपको याद होगा हरसूद शहर। हरसूद शहर तक जाने के लिए पहले अलग रेल लाइन हुआ करती थी। यह रेल लाइन अंग्रेजों के जमाने में डाली गई थी। इंदिरा सागर बांध बनने से हरसूद शहर तो डूबा ही, वह रेल लाइन भी डूब गई। इसके बाद यहां एक नई रेल लाइन बिछाई गई।

मैं इस रेल लाइन पर बचपन से सफर करते रहा हूं, हरसूद में अपने मामा के घर जाने के चलते। हरसूद विस्थापित होने के बाद भी गया हूं, नयी रेल लाइन से। बारिश के मौसम में यहां पर जलभराव की बड़ी—बड़ी संरचनाएं भी देखी हैं। जिस कालीमाचक नदी के आसपास का किनारा पलों में नजर के सामने से गुजर जाता था, बांध बनने के बाद लंबी दूरी तक यह समझ पाना मुश्किल होता है कि नदी कहां है। नदी एक किस्म के बड़े तालाब में तब्दील हो जाती है। आप भी यदि कभी इस रेल रूट से जाएंगे तो आपको ऐसे दृश्य दिखाई देंगे। मुझे लगता है इसी पानी ने तो कहीं इस लाइन को खोखला न कर दिया हो, क्योंकि पानी नई जमीन पर नए रास्ते खोजता है, उसकी अपनी गति है, अपना रास्ता है।

सूचनाएं यह भी आ रही हैं कि बांध का पानी छोड़ा गया, या भर गया। पुष्टि होनी बाकी है, लेकिन मुझे सितम्बर 1999 की नर्मदा की बाढ़ जरूर याद आती है। इस बाढ़ में भी चार दिनों तक नर्मदा नदी के एक किनारे पर फंसा रहा था। यह बाढ़ जितनी बारिश से नहीं आई थी, उससे अधिक इस कारण से आई थी कि जबलपुर के बरगी बांध, बारना बांध और होशंगाबाद के तवा बांध से एक साथ पानी छोड़ दिया गया। इसे डूब क्षेत्र में पांच से छह दिन तक बाढ़ ने तबाही मचाई थी।

अब जबकि पूरी नर्मदा नदी पर जगह-जगह बड़े-बड़े बांध बनाकर उसे छोटे-छोटे जलाशयों में तब्दील कर दिया गया है, तब भौगोलिक संरचनाओं में बदलाव का असर यूं भी नजर आ सकता है। इसमे रेलवे के मॉनिटरिंग सिस्टम की लापरवाही तो साफ है, लेकिन इस बिंदु से भी जांच की जरूरत है कि यह क्या केवल रेल विभाग का हादसा है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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