प्रदीप कुमार : दिल्ली की 'दुर्गति' का ज़िम्मेदार कौन?

अरविंद केजरीवाल की फाइल तस्वीर

अरविंद केजरीवाल हमेशा कहते रहे कि उनकी आम आदमी पार्टी गंदगी की सफाई करने राजनीति में आई है। उनके दावों और लड़ने-भिड़ने की शैली ने दिल्ली की जनता का दिल भी जीत लिया। 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतकर वे राज्य के मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन बीते सौ दिनों में उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता और अड़ियल रवैये से दिल्ली में राजनीतिक कूड़ों का अंबार लगता दिख रहा है।

वैसे, राजनीतिक कूड़ों के अलावा दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों की हड़ताल के चलते दिल्ली की सड़कों और मोहल्लों में कूड़ा-कचरा भी फैलता जा रहा है। जिस दिल्ली को केजरीवाल विश्वस्तरीय सिटी बनाने का दावा कर रहे हैं, उसकी व्यवस्थाएं अब चरमराती दिख रही हैं।

ताजा विवाद आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं से जुड़ा है। अरविंद केजरीवाल ने जिन जितेंद्र तोमर को कानून मंत्री बनाया, वे कानून के शिकंजे में हैं। फर्जी डिग्री के आरोप में उनके झूठ की परत-दर-परत खुलती जा रही है। फर्जी डिग्री हासिल करने का रोग नया नहीं है, लेकिन आम आदमी पार्टी जिस शुचिता की बात करती रही है, उसे पंक्चर करने के लिए काफी है। तोमर पर आरोप पहले से थे, लेकिन केजरीवाल ने उन आरोपों को कभी तवज्जो नहीं दी। जब मंत्री महोदय गिरफ्तार हो गए, पार्टी और सरकार की फजीहत हो गई तब आम आदमी पार्टी ने तोमर पर जांच बिठाने का फैसला लिया।

आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार में कानून मंत्री रहे सोमनाथ भारती की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। उनकी पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा के गंभीर आरोप लगाए हैं। हालांकि पत्नी के आरोपों की टाइमिंग पर सवालिया निशान जरूर उठता है, लेकिन इससे सोमनाथ भारती पर लगे आरोप कमतर नहीं हो जाते हैं। सोमनाथ भारती और उनकी पत्नी भी अलग अलग रहते हैं, लेकिन इस मामले ने भी आम आदमी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है।

पार्टी हाईकमान की इन दोनों मामलों में काफी समय तक चुप्पी और इसे साजिश बताने की कोशिशों से भी फायदा कम, नुकसान ज्यादा हो रहा है। इन दो नेताओं के अलावा आम आदमी के दो अन्य विधायकों पर हलफनामे में फर्जी डिग्री दिखाने का आरोप है। इमेज के नाम पर जिस राजनीति का केजरीवाल दावा करते रहे हैं, अब वह उन पर भारी पड़ने लगा है।

वैसे विवादों की शुरुआत तो फरवरी में दिल्ली की सरकार संभालने की बाद ही शुरू हो गई थी। सरकार में आने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से पार्टी के संस्थापक सदस्यों प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आनंद कुमार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया, उससे भी पार्टी की छवि को नुकसान हुआ। आम आदमी पार्टी एक चेहरे की पार्टी में तब्दील होती दिखी, जहां हाईकमान की चलती है। इस झगड़े से पार्टी उबरती, उससे पहले दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच अजीब सी जंग शुरू हो गई।

पहले केजरीवाल सरकार, दिल्ली पुलिस से एंटी करप्शन ब्यूरो पर अधिकार के लिए हाईकोर्ट गई। इसके बाद मुख्य सचिव के तौर पर शकुंतला गैमलिन और प्रमुख सचिव अनिंदो मजूमदार की तैनाती पर दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच तनातनी दिखने को मिली। मजूमदार के दफ्तर में सरकार की तरफ से ताला लगवा दिया गया। राज्य सरकार का उप राज्यपाल से विवाद इतना बढ़ा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को सर्कुलर जारी कर बताना पड़ा कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और यहां राज्यपाल के दायरे में क्या-क्या आता है।

पहली बार दिल्ली की सरकार और उप राज्यपाल के बीच इतनी तनातनी देखने को मिल रही है। केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद दिए अपने पहले साक्षात्कार में (जो उन्होंने एनडीटीवी को दिया था) में नजीब जंग पर काफी व्यक्तिगत हमले भी किए। हालांकि इन मुद्दों को समझदारी से बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता था, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि केजरीवाल खुद की छवि केंद्र सरकार से पीड़ित मुख्यमंत्री की बनाना चाहते हैं। इस छवि से उन्हें और उनकी राजनीति को फायदा भले हो, लेकिन दिल्ली की जनता को कामकाज के लिहाज से नुकसान उठाना पड़ रहा है।

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इतना नहीं, अरविंद केजरीवाल की सरकार ने मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए सर्कुलर जारी करके भी एक तरह की तानाशाही का संकेत दिया। ऐसे में अब दिल्ली में फैले कूड़े को लेकर एक बार फिर क्या केजरीवाल सरकार अपनी राजनीतिक नासमझ का परिचय देकर इस मसले को भी अपने लिए नई मुश्किल बनाती दिख रही है। हालांकि जरूरत इस बात की है कि दिल्ली सरकार ठंडे दिमाग से काम कर आरोप-प्रत्यारोप से बचकर जनता के बीच ये भरोसा पैदा करे, जिसके लिए उसे प्रचंड बहुमत मिला है।