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रूस और अमेरिका की तनातनी के बीच ग्लोबल ऑर्डर में कहां खड़ा है भारत

Gaurav Kumar Dwivedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 24, 2025 12:43 pm IST
    • Published On जुलाई 24, 2025 12:40 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 24, 2025 12:43 pm IST
रूस और अमेरिका की तनातनी के बीच ग्लोबल ऑर्डर में कहां खड़ा है भारत

भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील की बातचीत जारी है. एक अगस्त की अमेरिकी टैरिफ लागू होने की डेडलाइन में अब कुछ ही दिन बचे हैं. इधर, रूस से तेल खरीदने के चलते अमेरिकी टैरिफ की बात भी कही जा रही है. नैटो महासचिव मार्क रूट सीधे चेतावनी दे चुके हैं कि अगर अब भी रूस से तेल और गैस खरीदना जारी रखा तो उन पर 100 फीसदी अमेरिकी टैरिफ लगाया जाएगा. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी और अमेरिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम लगातार धमकी दे रहे हैं कि चीन, भारत और ब्राजील पर रूस का तेल खरीदने की वजह से भारी-भरकम टैरिफ लगाया जाएगा. उन्होंने धमकी देते हुए कहा है, "आपको तबाह कर देंगे, आपकी इकोनॉमी को नेस्तनाबूद कर देंगे." इन सबके बीच भारत और रूस का संबंध बेअसर है. ऐसा पहली बार नहीं है जब रूस से भारत की नजदीकी से अमेरिका परेशान है. भारत ने हमेशा ही रूस के साथ संबंधों को प्राथमिकता देते हुए गुट निरपेक्ष नीति का भी पालन किया है. हालांकि ट्रंप रूस को लेकर लगातार आक्रामक हैं. वो  भारत पर भी उससे रिश्ते खत्म करने का दबाव बना रहे हैं. 

अब सवाल यह है कि क्या भारत के इस कदम से अमेरिका नाराज होगा या भारत दोनों देशों के बीच हमेशा की तरह संतुलन बनाए रखेगा? आखिर भारत दुनिया में किस ओर खड़ा है. सवाल यह भी है कि चीन के साथ संबंधों में सुधार और पश्चिम के साथ संतुलन को वह कैसे बनाएगा. ग्लोबल ऑर्डर की यह पूरी तस्वीर बेहद दिलचस्प है. चलिए जानते हैं...

ऐतिहासिक तौर पर रूस भारत का 'टाइम-टेस्टेड' और 'विश्वसनीय' साझेदार रहा है. दुनिया के नक्शे पर देखा जाए तो भारत अमेरिका, रूस, चीन और अन्य देशों के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए स्वायत्त भी बना हुआ है. जहां पाकिस्तान को चीन का समर्थन भारत के लिए चुनौती है. वहीं, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के वर्चस्व को संतुलित करने के लिए भारत रूस और चीन के साथ एक मंच पर भी आता है.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी पुस्तक 'द इंडिया वे: स्ट्रैटेजीज़ फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड' में लिखा है, "यह हमारे लिए अमेरिका से जुड़ने, चीन को साधने, यूरोप को साधने, रूस को आश्वस्त करने, जापान को शामिल करने, पड़ोसियों को साथ लाने, पड़ोस का विस्तार करने और समर्थन के पारंपरिक क्षेत्रों का विस्तार करने का समय है."

दुनिया के लिए जरूरी क्यों है भारत

दरअसल, भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार होने के अलावा कई वजहों से पश्चिमी देशों के साथ ग्लोबल नॉर्थ की भी पसंद हैं. यूरोपीय संघ मंदी में डूब रहा है और अमेरिका अपने ऋण के तहत हांफ रहा है, जबकि भारत सालाना सात फीसदी की दर से विकास कर रहा है. दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश, जिसकी युवा आबादी औसतन 29 साल की है. वही,  जापान जैसे देश बूढ़े हो रहे हैं. भारत 60 करोड़ की श्रम शक्ति के साथ एक आकर्षक बाजार है, जिस तक पहुंचने के लिए दुनिया भर के बाजार उत्सुक हैं. 

इन तीन संगठनों में भारत अहम साझेदार

QUAD: भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका. मकसद इंडो पेसिफिक क्षेत्र में संतुलन कायम करने के साथ इसे चीन की बढ़ती क्षेत्रीय शक्ति के मुकाबले के तौर पर भी देखा जाता है.

BRICS: ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात. मकसद- सदस्य देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग को मजबूत करना.

SCO: भारत, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान और बेलारूस.मकसद सुरक्षा, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी, संस्कृति और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग.

भारत को अपने पाले में रखना चाहता है अमेरिका

अमरीका चाहता है कि भारत उसके गुट में रहे और रूस कमजोर हो. लेकिन भारत मल्टी पोलर वर्ल्ड ऑर्डर यानी बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का हिमायती है. जबकि चीन के व्यवहार को देखते हुए अमेरिका और रूस, दोनों ही भारत के लिए जरूरी हो जाते हैं. क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व वाली हिंद-प्रशांत रणनीति (यानी QUAD) समुद्री मुद्दों और एशियाई भूभाग पर केंद्रित है, वहीं, रूस चीन और भारत के बीच एक ब्रिज भी हैं.

चीन के साथ सुधरते रिश्ते

चीन भारत का दीर्घकालिक प्रतिद्वंद्वी बना हुआ है, लेकिन अब तक, नई दिल्ली ने बीजिंग के साथ अपने संबंधों को कूटनीति और रणनीतिक दूरदर्शिता के साथ संभाला है. हाल ही विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के राष्ट्रपति की मुलाकात भी हुई, जिसे दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार की कवायद के तौर पर देखा गया.

दूसरी ओर, भारत की विदेश नीति का इतिहास भी गुट निरपेक्ष नीति का रहा है. शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में रहे भारत में अमेरिका-सोवियत संघ प्रतिद्वंद्विता में तटस्थता बनाए रखी, जो बहुत हद तक अब भी जारी है.

हर विपरीत परिस्थिति में रूस के साथ मजबूत रहे रिश्ते

भारत और रूस के रिश्ते दशकों पुराने, मजबूत और बहुआयामी हैं. शीत युद्ध के समय से ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक, रक्षा, अंतरिक्ष, विज्ञान, ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में गहरा सहयोग रहा है. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान जब भारत को अलग-थलग करने की कोशिश हुई, तब भी रूस हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था. आज जब यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़ी आर्थिक पाबंदियां लगाईं तो अमेरिका और NATO ने कई बार भारत को रूस से तेल और अन्य व्यापार पर रोकने की कई बार धमकी भी दी. बावजूद इसके, भारत ने अमेरिका का दबाव नजरंदाज करते हुए अपने व्यापक राष्ट्रीय हितों के आधार पर रूस से सस्ता तेल आयात लगातार बढ़ाया है. रूसी तेल भारत के कुल तेल आयात का 35–44 फीसदी हिस्सा बन चुका है. इससे भारत को 2022-25 के दौरान करीब 25 अरब डॉलर की बचत भी हुई है.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं. उनसे एनडीटीवी की सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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