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This Article is From Dec 12, 2018

शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाने की क्या रही वजह?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 12, 2018 23:39 pm IST
    • Published On दिसंबर 12, 2018 23:39 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 12, 2018 23:39 pm IST
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से ख़बर यह है कि तीनों मुख्यमंत्रियों का चुनाव दिल्ली में होगा और राहुल गांधी करेंगे. अभी तक यही खबर है. अर्थव्यवस्था चुनौतियों से गुज़र रही है मगर उसी पर चर्चा कम है. 11 दिसंबर को जब बीजेपी हार रही थी तब न्यूज़ चैनलों में बैठे एक्सपर्ट हार के कई कारणों में एक कारण नोटबंदी को भी बता रहे थे लेकिन उसी वक्त नोटबंदी की तारीफ करने वाले और नोटबंदी के समय वित्त मंत्रालय में सचिव पद से रिटायर हुए शक्तिकांत दास को भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर बनाए जाने का ऐलान हो रहा था. शक्तिकांत दास 2015-17 के दौरान आर्थिक मामलों के सचिव थे और उन्हीं के कार्यकाल में नोटबंदी लागू हुई थी. नवंबर से दिसंबर 2016 के बीच करीब-करीब हर दिन शक्तिकांत दास की प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी और वे नोटबंदी के लागू किए जाने को लेकर नए-नए नियम बनाते थे. सूचना देते थे. जब जनता नोट बदलने को लेकर समस्याओं से घिरी थी तब वे नए-नए आइडिया लेकर आते थे.

उस वक्त बैंकों के बाहर लंबी कतारों से जनता परेशान थी, हाहाकार मचा हुआ था मगर शक्तिकांत दास प्रेस के सामने आए और बताने लगे कि उन्हें रिपोर्ट मिली है कि काला धन बदलने के लिए कुछ लोग बार-बार लाइनों में लग रहे हैं, इसलिए कतारें लंबी होती जा रही हैं. बकायदा उनका बयान है कि बैंकों और एटीएम में लंबी कतारों का कारण यही था कि एक ही लोग अलग-अलग जगहों पर बार-बार जा रहे हैं. इसलिए तब यह आइडिया लेकर आए कि कैश काउंटर पर नोट बदलने वाले लोगों की उंगली पर चुनाव के समय इस्तेमाल होने वाली स्याही लगाई जाएगी. इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी. तब चुनाव आयोग ने वित्त मंत्रालय को लिख दिया कि न मिटने वाली स्याही के इस्तेमाल से पांच राज्यों में होने वाले मतदान की प्रक्रिया पर असर नहीं पड़ना चाहिए. ऐलान हो गया मगर बैंकों के पास स्याही नहीं पहुंची तो बैंक मार्कर का इस्तमाल करने लगे. इस फैसले का मजाक उड़ने लगा.

शक्तिकांत दास अब रिज़र्व बैंक के गवर्नर बन गए हैं. जब नोटबंदी के समय पूछा जाता था कि भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर नोटबंदी पर क्यों नहीं बोल रहे हैं तब शक्तिकांत दास ने कहा था कि कौन बोल रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है. मैं सरकार की तरफ से बोल रहा हूं. इसलिए इसका कोई मतलब नहीं है कि मैं बोल रहा हूं या कोई और बोल रहा है. शक्तिकांत दास 1980 बैच के आईएएस अफसर हैं. इतिहास विषय के हैं मगर लंबे समय तक आर्थिक मामलों से संबंधित विभागों में काम किया है.आईआईएम से भी मैनेजमेंट का कोर्स किया है. पी चिदंबरम, प्रणब मुखर्जी और अरुण जेटली के साथ वित्त मंत्रालय में काम कर चुके हैं. आईआईएम बेंगलुरु से फाइनेंशियल मैनेजमेंट से कोर्स किया है.

इतिहास से बीए और एमए करने वाले शक्तिकांत दास के बारे में कहा जा रहा है कि वे मौदीक नीति से संबंधित काम को कैसे संभालेंगे. जवाब में उनके आर्थिक मामलों से संबंधित विभागों को पेश किया जा रहा है. वे 28 साल में पहले ऐसे गवर्नर हैं जो अर्थशास्त्री नहीं हैं. उनसे पहले एस वेंकिटारमण गवर्नर बने थे. आरबीआई के गवर्नर बनने की यह कोई शर्त नहीं है कि अर्थशास्त्री ही होगा. पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि अर्थशास्त्र में बिना पीएचडी वाला भी गवर्नर हो सकता है. गवर्नर ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिस पर बाज़ार भरोसा करे. अमित रंजन मिश्रा ने लिखा है कि दास राजन के जाने के बाद भी दावेदार थे. रिटायर होने के बाद जब उनके सेक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड सेबी के चीफ बनाने की चर्चा हो रही थी तब बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने हंगामा कर दिया था. प्रधानमंत्री को पत्र लिख दिया था कि वे चिदंबरम के करीबी रहे हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं. इसके बाद कहा जाता है कि उन्हें सेबी का मुखिया नहीं बनाया गया था. सुब्रमण्यम स्वामी ने आज भी बयान दिया है.

वैसे पी चिबंदरम ने भी शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाए जाने की आलोचना की है. कहा है कि शक्तिकांत दास सरकार के इशारे पर चलेंगे. एक अर्थशास्त्री की जगह नोटबंदी का समर्थन करने वाले नौकरशाह को चुनने से इस संस्था की गरिमा को और ठेस पहुंचेगी. नोटबंदी का समर्थन करने वाले दास दूसरे व्यक्ति हैं जिन्हें चोटी के पद पर बैठाया गया है. शायद उनका इशारा कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम को आर्थिक सलाहकार बनाए जाने को लेकर है.
कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने भी नोटबंदी को फायदेमंद बताया था. चिदंबरम ने सवाल किया है कि क्या सरकार लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि आप क्या सोचते हैं, हमें परवाह नहीं. हम वही करेंगे जो हमें पसंद है. उधर, ज़्यादातर मामलों में सरकार के हर फैसले की तारीफ करने वाली दो संस्थाएं सीआईआई और फिक्की ने शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाए जाने का स्वागत किया है. फिक्की के अध्यक्ष ने कहा है कि शक्तिकांत दास वित्तीय मामलों की 360 डिग्री समझ रखते हैं. सीआईई के अध्यक्ष राकेश भारती मित्तल ने कहा है कि अनुभवी आर्थिक एक्सपर्ट को गवर्नर बनाकर सरकार ने स्थिति को संभाला है और निवेशकों और इंडस्ट्री में बहुत ज़्यादा भरोसा पैदा किया है. हमें भरोसा है कि बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं के पास कर्ज़ देने के लिए पैसे का प्रवाह बढ़ेगा. दास तत्काल इस समस्या पर ध्यान देंगे.

क्या उर्जित पटेल बैंकों के लिए पैसे का प्रवाह नहीं बढ़ा रहे थे, क्या इसका यही मतलब हुआ जो समझा जा रहा था कि सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक अपने रिज़र्व खज़ाने से बैंकों के लिए पैसा दे. क्या शक्तिकांत दास उन बातों पर दस्तखत करते चलेंगे जिनके विरोध में उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया है. इस वक्त बैंकों का एनपीए बढ़ता जा रहा है. कहा जा रहा है कि लोन लेकर नहीं चुका पाने वाली कई कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर हैं, ये उद्योगपति अपनी कंपनियों को बचा लेना चाहते हैं. चाहते हैं कि बैंकों से और कर्ज़ मिल जाए ताकि पुराना हिसाब चुकाकर नया बहीखाता चालू हो जाए. मोटा-मोटी यही बात है. गवर्नर शक्तिकांत दास ने मीडिया से बात करते हुए साफ कर दिया कि सरकार ही अर्थव्यवस्था चलाती है.

दास ने कहा है कि वे बैंकिंग सेक्टर के कार्यकारी अधिकारियों से मिलेंगे. उनसे बात करेंगे. निजी बैंकरों से भी मिलेंगे. फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सुनील जैन ने ट्विट किया है कि क्या शक्तिकांत चुपचाप वही करेंगे जो वित्त मंत्रालय और आर्थिक मामलों के सचिव उर्जित पटेल से चाहते थे? पीएसए के नियमों में ढील देंगे, एनपीए पर नरम रुख अपनाएंगे, आरबीआई का रिज़र्व सरकार को सौंप देंगे, लघु उद्योगों को ज़्यादा कर्ज़ देंगे, बोर्ड में सरकारी निदेशकों को और अधिकार देंगे या अपनी राह पर चलेंगे?

पीसीए को समझना होगा. इसे प्राम्ट करेक्टिव एक्शन होता है. भारतीय रिज़र्व बैंक ने पीसीए के नियम बनाए हैं. कहा जाता है कि सरकार को पता नहीं था मगर मिंट ने एक रिपोर्ट छापी थी और दावा किया था कि दोनों पक्षों को पता था. पीसीए के तहत होता यह है कि भारतीय रिज़र्व बैंक उन बैंकों को अपनी निगरानी में ले लेता है जिनका एनपीए एक अनुपात से बहुत ज़्यादा हो जाता है. अपनी निगरानी में लेकर बैंकों से कहता है कि वे नई ब्रांच न खोलें, डिविडेंड न दें, एक-एक पैसा बचाएं और जो लोन दिया है उसे वसूलें. नया लोन नहीं दें. कुछ खास सेक्टर में लोन देने से बचें. बैंकों से कहा जाता है कि अगर उनके लोन की किश्त 180 दिनों में नहीं आती है तो उस लोन को एनपीए घोषित कर दें. एनपीए घोषित करने से यह होगा कि उस कंपनी को आगे के लिए लोन नहीं मिलेगा. बैंक भी लोन नहीं दे सकेगा. बैंक को पैसा वसूल करना है. इस वक्त 11 बैंक पीसीए के तहत हैं. विवाद यही है कि भारतीय रिज़र्व बैंक इन 11 बैंकों को पीसीए नियमों की कड़ाई से मुक्त करे ताकि लोन बंट सके. आशंका यह है कि लोन बंटने लगे तो फिर से एनपीए बढ़ेगा.

मोदी सरकार के समय MSME को लोन कम हो गया है. 2013-14 में जीडीपी का 4.2 प्रतिशत था. 2017-18 में 2.8 प्रतिशत हो गया. बैंक NBFC को लोन देने लगे जिसके जरिए लघु उद्योगों को लोन दिया जाने लगे. जब से IL&FS का विवाद सामने आया है बैंकों ने NBFC को लोन देना बंद कर दिया है. इससे छोटे बिजनेस को लोन नहीं मिल रहा है.

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