विज्ञापन
Story ProgressBack

सोशल मीडिया पर ज़्यादा लाइक बटोरने के जुनून के पीछे क्या है?

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    June 28, 2024 14:47 IST
    • Published On June 28, 2024 14:47 IST
    • Last Updated On June 28, 2024 14:47 IST

सोशल मीडिया के उफान का दौर है. लोग कई प्लेटफॉर्म पर तरह-तरह से अपनी क्रिएटिविटी दिखा रहे हैं. कई लोगों के लिए यह मोटी कमाई का ज़रिया भी बन चुका है, लेकिन सोशल मीडिया पर ज़्यादा लाइक पाने की खातिर लोग किस हद तक जा रहे हैं, देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आखिर इस तरह के जुनून के पीछे क्या है?

पुणे में खतरनाक स्टंट

हाल ही में पुणे से एक बेहद खतरनाक स्टंट का वीडियो वायरल हुआ. वीडियो क्लिप में एक लड़की किसी ऊंची इमारत की छत से एक युवक के हाथ के सहारे हवा में लटकती नजर आ रही है. एक तीसरा शख्स इसे फिल्माता दिख रहा है. कहना न होगा कि अगर स्टंट के दौरान किसी से रत्तीभर भी चूक हो जाती, तो क्या होता. इसे तो देखकर भी किसी की सांस अटक जाए. खैर, ख़बर है कि वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

रेल कर्मचारियों की जांबाज़ी

पिछले सप्ताह एक और वीडियो वायरल हुआ. यात्रियों से भरी एक ट्रेन अचानक गड़गड़ाहट और झटके के साथ बीच पुल पर रुक गई. इंजन के नीचे पाइप में कुछ खराबी आ गई थी. वहां तक पहुंचने का कोई सीधा रास्ता न था. मौसम भी खराब. यात्रियों की घबराहट बढ़ रही थी. तभी लोको पायलट और सहायक ने अपनी जान जोखिम में डालकर गड़बड़ी ठीक करने का फैसला किया. एक तो ट्रेन के ठीक नीचे से, दोनों पटरियों के बीच रेंगते हुए आगे बढ़ा. दूसरे ने पटरी से नीचे उतरकर, पुल पर लटककर आगे बढ़ते हुए गड़बड़ी ठीक की. अब दोनों जांबाज़ों की तारीफ़ हो रही है. सोशल मीडिया पर उन्हें भर-भरकर लाइक मिल रहे हैं.

लाइक और दुआओं का फ़र्क

दोनों वीडियो पर गौर करने से कुछ नतीजों तक पहुंचा जा सकता है. पुणे वाले केस में स्टंट को फिल्माने का पूरा इंतज़ाम था. ज़ाहिर है, इस तरह का स्टंट सोशल मीडिया पर ज़्यादा से ज़्यादा वाहवाही पाने के चक्कर में किया गया होगा. ट्रेन वाले केस में रेलकर्मियों ने औरों की हिफ़ाज़त की खातिर अपनी जान जोखिम में डाली. एक में व्यूअर्स के सामने निहायत ही गैरज़रूरी दुस्साहस और मूढ़ता-भरा प्रदर्शन किया गया, जो अपराध की श्रेणी में भी आता है. दूसरे में देश-समाज के सामने कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल पेश की गई. एक में लाइक के लिए मौत के दरवाज़े पर दस्तक देने तक से कोई गुरेज़ नहीं. दूसरे में लाइक की कोई चाह नहीं. वहां तो लाइक लोगों की दुआओं की शक्ल में बरस रहा है.

लाइक की ज़रूरत क्यों?

इस पूरी चर्चा में सबसे ज़रूरी सवाल यही है. आखिर इस 'लाइक' को इतना ज़्यादा लाइक किए जाने की वजह क्या है? सोशल मीडिया पर अपनी फोटो, पोस्ट, ट्वीट, रील्स या अन्य चीजों को दूसरों के 'अप्रूवल' की ज़रूरत क्यों पड़ जाती है? हद तो यह है कि मिनट-मिनट, घंटे-घंटे पर लाइक के नंबर्स देखने की भी लत! क्या आम, क्या खास, ज़्यादातर इसके शिकार पाए जाते हैं.

दरअसल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंसानों के मन पर गहरा असर डाल रहा है. यहां पर लाइक कम, माने कुछ गड़बड़ है. कुछ नहीं, बहुत-कुछ गड़बड़ है - लोग हमें पसंद नहीं करते. लोग जान-बूझकर हमें इग्नोर करते हैं. ये सारे सिर्फ दिखावे के लिए 'दोस्त' हैं. इस दुनिया में अच्छे लोग ही बहुत कम हैं! दूसरी ओर, अगर लाइक ज़्यादा आए, तो सोच इसके ठीक उलट - लोग कितने अच्छे हैं. दुनिया हसीन है. दुनिया रंगीन है! माने लाइक ही वह एंजाइम है, जो भोजन पचाता है. लाइक ही वह हार्मोन है, जो दिनभर हैप्पी-हैप्पी रखता है. लाइक ही रात में गहरी नींद सुलाता है. और यह आज का कड़वा सच है!

लाइक का मनोविज्ञान

कई रिसर्च में सोशल मीडिया और इंसान की भावनाओं के बीच सीधा संबंध पाया जा चुका है. इंसान के दिमाग में काम करने वाला न्यूरोट्रांसमीटर है - डोपामाइन. वैसे तो इसका बहुत-सारा काम है, लेकिन यह ज़्यादातर खुशी, आनंद, संतुष्टि में रोल के लिए जाना जाता है. जब सोशल मीडिया पर लाइक, लव, कमेंट, शेयर की बारिश होती है, तो डोपामाइन वैसे ही एक्टिव हो जाता है, जैसे कुछ स्वादिष्ट खाने, इनाम जीतने या रकम मिलने से होता है. लाइक से दिमाग को डोपामाइन का डोज़ मिलता है, जिससे सब कुछ हरा-हरा महसूस होने लगता है. नतीजा - लाइक के लिए फिर से तेज़ भूख. ज़्यादा से ज़्यादा पोस्ट. लाइक की गिनती, फिर पोस्ट. इस जुनून में कीमती वक्त, और यहां तक कि जान की भी परवाह नहीं!

लाइक और इकोनॉमी

दरअसल, आज लाइक को अदना-सा बटन समझना भारी भूल होगी. सिर्फ लाइक ही क्यों, कहीं-कहीं रिएक्शन के लिए लव, हाहा-हूहू जैसे और भी इमोजी हैं. ज़्यादा रिएक्शन, मतलब अपनी पसंद का ज़्यादा कंटेंट पाना और प्लेटफॉर्म पर ज़्यादा टाइम बिताना. यही तो वह चीज़ है, जो विज्ञापन देने वालों को चाहिए. इन सबके पीछे इंसान के मनोविज्ञान से चलने वाला विशाल बाज़ार है. दिनोंदिन फलती-फूलती क्रिएटिव इकोनॉमी है.

यह सोशल स्टेटस भी बताता है. हमारे समाज में सेलेब्रिटी 'लाइक' के धनी होते हैं. साथ ही 'लाइक' के धनी रातोंरात सेलेब्रिटी बनते भी देखे गए हैं. तभी तो लाइक की भूख ने एक इंडस्ट्री तक को जन्म दे दिया, जहां फर्ज़ी लाइक, फॉलोअर और कमेंट खरीदने-बेचने का धंधा होता है! इन पर नकेल कसी है, पर अभी बहुत कसा जाना बाकी है.

डरना ज़रूरी है!

एक इन्फ्लूएन्सर मार्केटिंग फर्म है - कोफ्लुएंस (Kofluence). हाल ही में इसकी एक रिपोर्ट आई है, जिसमें बताया गया है कि अपने देश में सोशल मीडिया यूज़र इस पर रोजाना औसतन 4 घंटे 40 मिनट बिताते हैं. साथ ही भारत में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग इंडस्ट्री हर साल 30% की दर से बढ़ रही है. जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च (JMIR) की स्टडी कहती है कि सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने से शरीर में इंफ्लेमेशन का लेवल बढ़ जाता है. यह सेहत के लिए काफी हानिकारक है. इतना ही नहीं, उम्र के हिसाब से कंटेंट नहीं मिलने से युवाओं में चिंता और अवसाद बढ़ सकता है. इससे उनकी खुशी छिनती है.

देखा जाए, तो यह खतरनाक स्थिति है, खासकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले युवा वर्ग के लिए. लाइक की भूख चिंता, अवसाद से बढ़ते हुए जानलेवा जुनून का रूप ले सकती है. क्या पुणे का खतरनाक स्टंट वाला वीडियो यह सब साफ-साफ बताने के लिए काफी नहीं है?

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
मध्य प्रदेश कैसे बनता गया BJP का गढ़...?
सोशल मीडिया पर ज़्यादा लाइक बटोरने के जुनून के पीछे क्या है?
जीत से पहले कोई विनर नहीं होता, न हार से पहले कोई लूजर !
Next Article
जीत से पहले कोई विनर नहीं होता, न हार से पहले कोई लूजर !
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;