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This Article is From Dec 02, 2008

कसूरवार हम हैं, अच्युतानंदन नहीं...

Vivek Rastogi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 20, 2018 15:01 pm IST
    • Published On दिसंबर 02, 2008 16:52 pm IST
    • Last Updated On मार्च 20, 2018 15:01 pm IST

शर्मिन्दगी महसूस हो रही है... क्या हमें वास्तव में वीएस अच्युतानंदन जैसे नेताओं की ज़रूरत है... क्या हमने वास्तव में अच्युतानंदन जैसे नेता पाने के लिए लोकतंत्र की व्यवस्था के बीच वोट दिया था... क्या अच्युतानंदन जैसे लोगों के नेता बन जाने में हम कहीं भी दोषी नहीं हैं... क्यों अच्युतानंदन जैसे नेताओं को बर्दाश्त करते रहना हमारी मजबूरी है...

एक आतंकवादी हमले के दौरान मुल्क की आन, बान और शान के साथ-साथ जनसाधारण की जान का बचाव करते हुए एक जांबाज़ जान से गया... आप उसके घर पर 'तथाकथित' रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करने जाते हैं... वहां दुःख और गुस्से में भरे उसके पिता ने आपसे कुछ कहा, और शायद घर में प्रवेश नहीं करने दिया... आप बिफ़र जाते हैं, और बयान देते हैं - अगर वह शहीद मेजर का घर नहीं होता, तो वहां कोई कुत्ता भी नहीं जाता...

याद रखिएगा अच्युतानंदन जी, जिस घर को आप कुत्तों के जाने योग्य भी नहीं समझते, उसी घर के बेटे ने अपनी जान देकर देश की रक्षा की... शर्म आ जाती है, कि हमने न सिर्फ़ ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुना है, बल्कि ऐसे और भी लोगों को प्रतिनिधि के रूप में विधानसभा भेजा, जिन्होंने अच्युतानंदन जैसे शिष्टाचार से कोरे, शहादत का सम्मान करने में अक्षम व्यक्ति को सदन का नेता चुनकर हमारे सिर पर मुख्यमंत्री बनाकर बिठा दिया... यकीन मानिए, अच्युतानंदन से ज़्यादा यह हमारे लिए शर्मिंदा होने की बात है...

मैं अच्युतानंदन जी से सिर्फ़ एक सवाल करना चाहता हूं... आदरणीय मुख्यमंत्री जी, एक बार ठंडे दिमाग से सोचकर बताइएगा, मेजर के पिता ने आपके साथ ही ऐसा व्यवहार क्यों किया... अगर आप मुख्यमंत्री न होकर कोई साधारण व्यक्ति होते, तो शेष लोगों की ही तरह आपको भी उनके घर में प्रवेश मिला होता, और यह सब अवांछनीय घटित नहीं होता...

इस सवाल का जवाब है... जनता के प्रति आपकी निर्लिप्तता, जिसके कारण आप कभी आम लोगों को 'अपने' लगे ही नहीं... जनता के दिल में आपके प्रति गुस्सा, जिसकी जड़ में है कमज़ोर राजनैतिक व्यवस्था, जो संदीप जैसे जांबाज़ों की शहादत की वजह बनी... लेकिन आपके मुताबिक अगर ऐसा नहीं है तो हमारे कुछ सवालों के जवाब दीजिए...

  • क्यों आप सारे काम छोड़कर पहले ही दिन मेजर संदीप के घर पर नहीं पहुंचे...?
  • क्यों आप मेजर के पिता के दिल में मौजूद गुस्से को बर्दाश्त नहीं कर सके...?
  • आपकी प्रतिक्रिया, जिसे दोहराते हुए भी शर्म आती है, को देखते हुए क्या आप अब भी कह सकेंगे कि आप श्रद्धांजलि अर्पित करने संदीप के घर गए थे, सिर्फ टीवी पर अपना चेहरा दिखाने नहीं...

खैर, अच्युतानंदन जी... इस वक्त आपके अलावा भी बहुत-से ऐसे नेता हैं, जो सिर्फ़ राजनीति चमकाने के लिए इस दारुण मौके का इस्तेमाल कर रहे हैं, और अफ़सोसनाक़ यह है कि कोई भी राजनैतिक दल ऐसे नेताओं के बिना अस्तित्व में नहीं है... अब उन्हें अपना प्रतिनिधि बना बैठने के लिए हमें ख़ुद को ही दोषी मानकर आगे के लिए रणनीति तैयार करनी होगी... सोचना होगा, कि क्या हम ऐसे ही नेताओं के भरोसे ख़ुद को छोड़कर चिंता-मुक्त हो पाएंगे...

और हां, एक आखिरी नसीहत अच्युतानंदन जी के लिए... आपका कहना है कि अगर वह शहीद का घर नहीं होता तो वहां कोई कुत्ता भी नहीं जाता, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप मुख्यमंत्री नहीं होते, तो संदीप के घर पर आपके साथ ऐसा व्यवहार होता, जो लिखा भी न जा सके...

विवेक रस्तोगी Khabar.NDTV.com के संपादक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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