अटल बिहारी वाजेपयी : अवसान एक युग का...

ऋषि-मुनियों सरीखे, प्रलोभनों से दूर, मोह-माया से निर्लिप्त, सभी से प्रेमभाव रखने वाले नेता तो अब कम से कम नहीं दिखते हैं, जैसे आप थे, आप ही थे.

अटल बिहारी वाजेपयी : अवसान एक युग का...

जिन्हें नहीं देखा, नहीं देखा, परन्तु राजनीति की मुझे समझ आने के बाद राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यही एकमात्र नाम है, जिसे आदर्श राजनेता मान पाया हूं... जिसे विजय पर घमंड नहीं, पराजय से खीझ नहीं... विपक्ष में रहो, तो सत्ता से लड़ते हुए भी उसे सम्मान दो... सत्ता में रहो, तो विपक्ष को पूरा मान दो...
 
नेताओं का ज़िक्र आते ही गांधी-नेहरू का नाम इस मुल्क में सबसे पहले लिया जाता रहा है, लिया जाता है, लिया जाता रहेगा, क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा किया था, जिससे मुल्क का बड़ा हिस्सा आंखें मूंदे उनके पीछे चला... उनसे सहमति और असहमति सभी कुछ उस युग में भी था, और आज तक है, लेकिन उनके पीछे चलने वाले, उनके पीछे चलने से अनिच्छुक लोग, उनका कहा मानने वाले, उनका कहा नहीं मानने वाले, चाहे कोई भी हों, इस बात को नहीं नकार सकते कि वे निश्चित रूप से स्वीकार्य भी थे, अनुकरणीय भी...

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और अब, इस युग में, जब मैं बड़ा हुआ, राजनीति को समझने लायक, ऐसा एक ही नाम रहा, जिसके पीछे चलना मुल्क के काफी बड़े हिस्से को सौभाग्य लगा... और ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका व्यक्तित्व ठीक वैसा ही रहा, जैसा उनके 'अग्रजों' का था... सभी से कहो, सभी की सुनो, जो सही लगे, उस पर दृढ़ रहो, और गलत को गलत कहने का साहस रखो... अनेक ऐसे अवसर मैंने देखे, जब उन्हीं के दल में उनके विचारों का विरोध हुआ... और हर बार, हर मर्तबा उन्होंने वही किया, जो उन्हें सही लगा... और हां, वह भी किया, जो उनके आलोचकों को सही लगा... कहा जाता है, उनके कार्यकाल में सभी को स्वतंत्रता थी, अपनी बात रखने की, भले ही वह उनके विचारों से पूरी तरह भिन्न हो, विपरीत हो, और विशेषता यही थी कि वह विपरीत बात भी स्वीकार की गई, और मानी गई...
 
विपक्षी दलों से सम्मान पाने वाले बेहद कम नाम इस मुल्क में रहे हैं... ऐसा नाम, जिनके जाने से हर राजनेता दुःखी हृदय से शोक संदेश प्रेषित कर रहा है... हर दल की उपस्थिति आपको श्रद्धांजलि देने वालों की कतार में है, क्योंकि आप जैसा कोई नहीं हुआ... मेरे जीवनकाल में तो हरगिज़ नहीं...
 
ऋषि-मुनियों सरीखे, प्रलोभनों से दूर, मोह-माया से निर्लिप्त, सभी से प्रेमभाव रखने वाले नेता तो अब कम से कम नहीं दिखते हैं, जैसे आप थे, आप ही थे. व्यवहार व स्वभाव में दृढ़ता और कोमलता के संगम का अप्रतिम उदाहरण थे आप... अब ऐसा कोई नहीं, इसलिए आपका जाना खलेगा...
 
नमन...

विवेक रस्तोगी Khabar.NDTV.com के संपादक हैं...

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