तमिलनाडु ड्रामे से समझें, देश की जनता के साथ नेताओं के ‘स्कैम’ का सच

तमिलनाडु ड्रामे से समझें, देश की जनता के साथ नेताओं के ‘स्कैम’ का सच

यूपी चुनावों में ‘स्कैम’ की सही व्याख्या अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल के सुसाइड नोट में मिल सकती है, जिसके अनुसार स्कैम का मतलब सरकार, कोर्ट, अधिकारी और मीडिया है. तमिलनाडु के राजनीतिक ड्रामे से आइए समझें कि देश की जनता कैसे राजनीतिक दलों के स्कैम का शिकार हो रही है -

1-    अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री के सुसाइड नोट में देश के ‘स्कैम’ का अक्स -
अरुणाचल प्रदेश से भारत में सूर्योदय होता है, जहां राजनीतिक उठापठक से संविधान का कई बार सूर्यास्त हुआ. राष्ट्रपति शासन के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा विलंब से दिए निर्णय से घड़ी की सुई तो पीछे न हो सकीं, लेकिन पूरी पार्टी के ऐतिहासिक दल-बदल से नई सरकार जरूर बन गई. पूर्व मुख्यमंत्री कालिखो पुल ने सरकार गिरने के बाद आत्महत्या कर ली और अब 5 महीने बाद उनके 60 पेज के सुसाइड नोट का खुलासा हुआ है. इस सुसाइड नोट में केंद्र, गवर्नर, सुप्रीम कोर्ट सहित पूरी व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े किए गए, जिनपर मीडिया रहस्यमय तरीके से खामोश है.

2-    तमिलनाडु के सीएम को धमकी, क्या सरकारी व्यवस्था का ‘स्कैम’ है -
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम का त्याग-पत्र स्वीकार हो गया लेकिन दिवंगत जयललिता की ‘आत्मा’ से साक्षात्कार के बाद उन्हें फिर से सीएम बनने का राजनीतिक बोध हुआ. क्या किसी राज्य के मुख्यमंत्री को धमकी देकर त्याग-पत्र दिलाया जा सकता है? धमकी और प्रलोभन से सरकार बनाने का अखिल भारतीय खेल पूरे भारत में चल रहा है जिसकी बानगी उत्तरप्रदेश के समाजवादी दंगल में मिली थी. धमकियां कानून के तहत अपराध हैं जिसमें दोषियों को दंडित करने की बजाय सरकार में शामिल होने की सहूलियत और जेड-सुरक्षा मिलना क्या संविधान की व्यवस्था के साथ स्कैम नहीं है?

3-    जल्लीकट्टू जैसे मसलों से देश में ध्रुवीकरण और वोटों की राजनीति का ‘स्कैम’ -
दलों के पास देश में गवर्नेंस में बदलाव का कोई मसौदा नहीं है, जिस कारण सभी नेता किसी मुद्दे पर लहर बनाकर चुनाव जीतने का यत्न करते हैं।. पिछले आम चुनावों के पहले निर्भया, काला धन और लोकपाल जैसे मुद्दों पर जनांदोलन से सरकार तो बदल गई लेकिन व्यवस्था जस की तस है. तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर कई सालों से प्रतिबंध था जिसे जयललिता की मृत्यु के बाद राजनीतिक दलों द्वारा जनांदोलन की शक्ल दी गई. अब यूपी चुनाव में विस्थापन, पंजाब में ड्रग्स जैसे मुद्दों पर ध्रुवीकरण और लुभावने घोषणा पत्रों से कोई भी दल सरकार बना ले, पर व्यवस्था कैसे बदलेगी?

4-    व्यक्तिवाद, परिवारवाद और हाईकमान के रिमोट कंट्रोल से संचालित सरकार का ‘स्कैम’-
तमिलनाडु में पन्नीरसेल्वम और शशिकला जातीय संतुलन और जयललिता की राजनीतिक विरासत से सरकार बनाने का दावा करके विधायकों के बहुमत से ठगी का स्कैम कर रहे हैं. पांच राज्यों के आम चुनावों में केजरीवाल, मायावती और मोदी का व्यक्तिवाद; बादल-मुलायम का परिवारवाद और कांग्रेस के हाईकमान से संचालित विधायक राज्यों में उत्तरदायी सरकार कैसे दे पाएंगे?

5-    विधायक और सांसदों द्वारा जनता के साथ ‘स्कैम’-
देश में संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि लोकतांत्रिक बहुमत से सरकार का गठन करते हैं. ब्रांडेड नेताओं द्वारा ध्रुवीकरण से सरकार बनाने की परिपाटी से विधायक और सांसद बेमानी हो गए हैं. चुनावों के पहले बड़े पैमाने पर दल-बदल में जनता की सेवा से अधिक सरकार की मलाई खाने का भाव देश में सभी ‘स्कैम’ की जननी है. राजनीतिक दलों ने पैसे लेकर विजय माल्या को दो बार राज्यसभा सांसद बनाया लेकिन उन विधायकों के खातों की जांच अभी तक नहीं हुई. जनता के लिए आवंटित फंड में कमीशन खाने वाले जनप्रतिनिधियों के स्कैम से संचालित कोई भी सरकार बदलाव कैसे ला सकती है?

6-    नेताओं द्वारा अदालती व्यवस्था से खिलवाड़ -
भ्रष्टाचार में दोषी होने के बावजूद जयललिता मुख्यमंत्री बन गईं परंतु शशिकला पर सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय की तलवार लटक रही है! जल्लीकट्टू पर राज्य तथा केंद्र सरकार द्वारा व्यवस्थित तरीके से अदालती आदेश की अवहेलना की गई. शशिकला के विरुद्ध भी सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल फाइल हुई है जिसके आधार पर तमिलनाडु के राज्यपाल निर्णय लेने में गोल-माल कर सकते हैं. नेताओं द्वारा महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय लेने की बजाय अदालती मामलों का राजनीतिक दुरुपयोग देश में नए तरीके का ‘स्कैम’ ही तो है.

7-    हाईकमांड हेतु संविधान में संशोधन करके खत्म हो ‘स्कैम’ राज -
सोशल मीडिया पर जनता द्वारा लाइक से हजारों करोड़ के घोटाले के गुनाहगार जेल में हैं लेकिन सत्ता के ‘स्कैम तंत्र’ के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई मुश्किल है. दलों और नेताओं के ब्रांड पर चुने गए विधायक और सांसद अब जनप्रतिनिधि की बजाय संवैधानिक तंत्र का मर्सिया बन गए हैं. हाई कमांड, परिवारवाद और रिमोट कंट्रोल को कानूनी तौर पर परिभाषित करके जनता के लिए सीधे उत्तरदायी बनाने हेतु, क्या अब संविधान में संशोधन नहीं होना चाहिए?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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