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This Article is From Apr 21, 2016

उत्तराखंड में 'शक्ति' जिसे भी मिले, पर नेताओं का 'मान' गया

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 21, 2016 18:03 pm IST
    • Published On अप्रैल 21, 2016 17:50 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 21, 2016 18:03 pm IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट की नैनीताल बेंच ने राष्ट्रपति शासन हटाते हुए 29 अप्रैल को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया है। लंबी बहस के दौरान अदालत ने केंद्र सरकार के विरुद्ध गंभीर टिप्पणियां भी कीं, जिससे इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील होना अवश्यम्भावी है। बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तो अटॉर्नी जनरल और सॉलीसिटर जनरल को हटाने की मांग करते हुए आरोप लगा दिया कि इन दोनों ने कोर्ट में सरकार का पक्ष ठीक से नहीं रखा, इसलिए विपरीत फैसला आया।

राष्ट्रपति राजा नहीं हैं और वह गलत भी हो सकते हैं - बुधवार को चीफ जस्टिस केएम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की बेंच ने कहा था कि इस देश में कोई सर्वशक्तिमान नहीं है और राष्ट्रपति भी राजा नहीं हैं। अदालत के अनुसार राष्ट्रपति, यहां तक कि जज भी, गलती कर सकते हैं और इनके फैसलों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। आज के आदेश से अदालत ने न्यायिक पुनरावलोकन के सिद्धांत पर मोहर लगा दी, जिसे इसके पहले सुप्रीम कोर्ट भी संविधान के मूल ढांचे के तौर पर मान्यता दे चुकी है।

कांग्रेसमुक्त भारत पर संवैधानिक अवरोध - बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेसमुक्त भारत का राजनीतिक स्वप्न देखा, जिसे कैलाश विजयवर्गीय के सहयोग से पूरा किया जाना था। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराकर बीजेपी ने अपनी सरकार बना ली थी, परंतु उत्तराखंड में अदालत ने इस मुहिम पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे मिजोरम, हिमाचल प्रदेश और कांग्रेस की सरकारें सुकून महसूस कर सकती हैं। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि राजनीतिक गतिरोध को संवैधानिक गतिरोध नहीं माना जा सकता। कोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार उत्तराखंड में संवैधानिक संकट सिद्ध करने में विफल रही तथा संविधान के अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित नियमों के खिलाफ किया गया।

हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियां - उत्तराखंड का संकट 'शक्तिमान' घोड़े की टांग टूटने से शुरू होता हुआ हॉर्स-ट्रेडिंग से अदालत होते हुए फिर विधानसभा में वापस आ गया है। 'शक्तिमान' तो नहीं रहा, लेकिन अदालत की तल्ख टिप्पणियों के बाद राजनीति के योद्धाओं की 'शक्ति' के 'मान' का भी क्षय हुआ है। बीजेपी विधायक की अयोग्यता की शिकायत को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लंबित रखने के आरोप पर हाईकोर्ट ने कहा, "यह भयानक है... आप (केंद्र सरकार) विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ इस तरह का भयानक आरोप लगा रहे हैं... क्या भारत सरकार इस तरह से काम करती है...? क्या सरकार एक प्राइवेट पार्टी है...?" पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा स्टिंग ऑपरेशन के मसले पर अदालत ने सवाल पूछा कि उनके (हरीश रावत के) आचरण को देखते हुए विशेषाधिकार (अनुच्छेद - 356) का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाना चाहिए...?

अदालत ने अपने आदेश से संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की है, परंतु सत्ता की दौड़ में भाग रहे नेता शक्तिमान की मौत के बाद क्या, राज (शक्ति) में नीति (मान) को ज़िन्दा रख पाएंगे...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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