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This Article is From Nov 11, 2016

नोटबंदी : जन-धन खातों से आ सकती है काले धन के बाग में बहार

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 11, 2016 12:28 pm IST
    • Published On नवंबर 11, 2016 10:35 am IST
    • Last Updated On नवंबर 11, 2016 12:28 pm IST
2,000 रुपये के बड़े नोटों का तोहफा बाज़ार में आ गया, फिर भी सरकार को 1,000 रुपये के नए नोटों की बहाली का फैसला क्यों लेना पड़ा...? बड़े शहरों में हवाला कारोबारियों पर इन्कम टैक्स की कार्रवाई की सख्ती के बावजूद, जनता में कड़की से क्या सरकार दबाव में है. गूगल में काले धन को सफेद करने के बारे में जनता द्वारा सर्वाधिक सर्च हो रही है, फिर आने वाले समय में काले धन की बहार को सरकार कैसे रोक पाएगी...?

जन-धन खातों से ब्लैक मनी में आ सकती है बहार : वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार इन्कम टैक्स लिमिट के भीतर 2.5 लाख रुपये तक के बड़े नोट बैंक में जमा करने पर सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं होगी. अनुमान के अनुसार कुल 15 लाख करोड़ के बड़े नोटों में 30 फीसदी, यानी लगभग पांच लाख करोड़ का ब्लैकमनी हो सकता है. देश में जन-धन योजना के तहत 25.45 करोड़ खाते हैं, जिनमें 23.37 करोड़ ज़ीरो बैलेंस खाते हैं और बकाया दो करोड़ बैंक खातों में लेन-देन हुआ है. भारत में एक बड़ा तबका पैसे के इशारे पर नेताओं के लिए वोट डालने के साथ लाचारी में अमीरों के लिए किडनी भी बेच देता है. रसूखदारों के इशारे पर यदि ये करोड़ों लोग जन-धन के खातों में बड़े लोगों के ब्लैक मनी के 80-80 हज़ार रुपये भी जमा कर दें, तो काले धन पर सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक कैसे सफल होगी...? दरअसल, जन-धन खातों में निकासी के साथ-साथ जमा कराने वाली अधिकतम राशि भी पहले से तय है, जिसकी वजह से 30 दिसंबर तक सिर्फ 80,000 रुपया ही एक खाते में जमा होना मुमकिन है.

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बीजेपी की सर्जिकल स्ट्राइक पर नेताओं की बौखलाहट : बीजेपी के सहयोगी दल शिवसेना ने कहा है कि पाक अधिकृत कश्मीर में सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जैसे आतंकी हमले बढ़े, वैसे ही नोटबंदी पर सरकार का लक्षित हमला काले धन को और बढ़ाएगा. यूपी चुनावों के पहले लागू इस फैसले पर सपा नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा की मायावती की बौखलाहट स्वाभाविक है, लेकिन सबसे अहम सवाल राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उठाया है. उनके अनुसार काले धन की शुरुआत राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे से होती है, जिस पर लगाम के लिए कोई कार्ययोजना नहीं लाई गई है.

1,000 के साथ 2,000 की सौगात, कैसे कम होगा भ्रष्टाचार : 1,000 के नए नोट की बहाली के साथ नयी योजना से 2,000 के नोट की सौगात भी मिल रही है, जिससे काला धन, भ्रष्टाचार तथा हवाला का कारोबार तो बढ़ेगा ही. रिज़र्व बैंक की विफलता की वजह से कुछ वर्ष पहले विदेशों से नोट छपकर भारत में इम्पोर्ट होते थे, जिस पर संसदीय समिति ने पिछली सरकार को डांट भी लगाई थी. भारत में नोटों के लिए विदेशों से कागज़ आयात होता रहा है. विदेशों पर निर्भरता से भविष्य में जाली जाली नोट भारत में फिर आ सकते हैं. देश में सालाना 800 लाख करोड़ का बैंकिंग कारोबार होता है, जहां पिछले पांच वर्ष में 2,23,000 से ज्यादा संदिग्ध लेन-देन के विरुद्ध एफआई (फाइनेंशियल इन्टेलिजेंस) यूनिट प्रभावी कार्रवाई में विफल रही. करोड़ों की संख्या में हुए बैंकिंग के नए लेन-देन पर सुस्त आरबीआई और सरकारी विभाग कैसे कार्रवाई कर पाएंगे...?

कैशलेस इकोनॉमी के लिए बैंक तैयार नहीं, फिर कैसे हो वीडियो रिकॉर्डिंग : देश में लगभग 67 करोड़ डेबिट कार्ड हैं, जिनकी सुरक्षा पर पिछले दिनों बड़ा सवाल खड़ा हो गया था. रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2011 में सभी बैंकों को निर्देश जारी कर कहा गया था कि सभी डेबिट कार्डों में 30 जून, 2013 तक मैगनेट स्ट्रिप हटाकर चिप वाले कार्ड जारी किए जाएं, लेकिन निर्देशों का पालन अभी तक नहीं हुआ है, फिर हर बैंक में लेन-देन की वीडियो रिकॉर्डिंग के दावे क्यों किए जा रहे हैं...? सुरक्षित बैंकिंग प्रणाली देने में सरकार की विफलता के बाद जनता को प्लास्टिक मनी इस्तेमाल करने के लिए कैसे विवश किया जा सकता है...?

57 बड़े लोन डिफॉल्टरों का खुलासा नहीं, आम जनता पर पूरा बोझ : राजनीतिक दलों द्वारा इन्कम टैक्स और चुनाव आयोग के नियमों का पालन होता नहीं, विदेशी खातों को अध्यादेश जारी करके जब्त नहीं किया जा रहा और बैंकों का लाखों करोड़ कुछ उद्योग घरानों के घोटालों से एनपीए में तब्दील हो गया है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक याचिका में सरकार तथा रिज़र्व बैंक ने 57 बड़े लोन डिफॉल्टरों का नाम सार्वजनिक करने से असहमति जताई. देश में काले धन के जिम्मेदार कुछ हजार लोगों पर कार्रवाई करने की बजाय आम जनता को ही क्यों परेशानी में डाला जा रहा है...?

भारत में जनता की बचत को बाज़ार के हवाले करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव : आमदनी से अधिक उपभोग की वजह से अमेरिका में सबप्राइम क्राइसिस तथा आर्थिक मंदी का संकट आया, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में बचत की प्रवृत्ति के कारण मंदी के कम दुष्प्रभाव पड़े. पेटीएम और गूगल की नई इकोनॉमी से  जॉबलेस ग्रोथ होने से असमानता बढ़ रही है. ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपभोक्तावाद बढ़ाने के साथ देश में आम जनता के पास संचित बचत को बाजार के हवाले करने के लिए विश्व बैंक जैसी संस्थाओं का दबाव भी है. नोटबंदी के कदमों से यदि आम जनता की गाढ़ी बचत ख़त्म हो गई तो अर्थव्यवस्था में पनपे नए संकट को हम कैसे दूर करेंगे...?

जीएसटी के लिए ज़रूरी है नोटबंदी की सफलता : भारत की 125 करोड़ की आबादी में 2.87 करोड़ लोग ही इन्कम टैक्स रिटर्न जमा करते हैं और कुल आबादी का सिर्फ एक फीसदी, यानी 1.25 करोड़ लोग ही टैक्स देते हैं. सेंट्रल एक्साइज़ में कारोबारियों के लिए टैक्स छूट लिमिट लगभग 1.25 करोड़ है, जबकि जीएसटी की नई व्यवस्था से यह छूट सीमा घटकर 20 लाख रुपये हो सकती है, जिसके लागू होने से कर व्यवस्था और व्यापक होगी. बड़े नोटों को बैंक में जमा करने से और अधिक लोग आयकर रिटर्न फाइल करने के लिए मजबूर होंगे, जो जीएसटी की सफलता के लिए ज़रूरी है. पिछले वर्ष काले धन की मात्रा जीडीपी का 20 फीसदी थी, जबकि बड़े नोटों की बंदी से सिर्फ तीन फीसदी काला धन रुक सकता है.

...तो क्या सिर्फ बड़े नोट बदलने से देश में बड़े बदलाव आ जाएंगे...? अहम सवाल यह है कि 2,000 के बड़े नोट बाज़ार में आने के बाद सभी दलों के नेताओं द्वारा पोषित बाग में, काले धन की बहार कैसे रुकेगी...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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