क्या देश के बैंकिंग सिस्टम में हैकरों द्वारा डाटा सेंधमारी चीन द्वारा भारत के विरुद्ध नियोजित 'सर्जिकल स्ट्राइक' है...? देश में सबसे बड़ी साइबर डकैती के लिए क्या भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और सरकार जिम्मेदार नहीं हैं...?
वायरस प्रभावित एटीएम में कारोबार अभी भी जारी रहने से ठगे जा रहे हैं ग्राहक : रिज़र्व बैंक द्वारा जुलाई, 2016 में आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग दो लाख एटीएम हैं, जो बैंकों द्वारा संचालित हैं, जबकि 48,000 एटीएम (डब्ल्यूएलए) वर्तमान साइबर डकैती में ज़िम्मेदार कंपनी हिताची द्वारा अकेले ही संचालित हैं. हिताची द्वारा 2.3 लाख पीओएस (प्वाइंट ऑफ सेल), 60 हजार मोबाइल पीओएस एवं 7,500 सीआरएम भी संचालित हो रहे हैं.
हिताची कंपनी के एमडी लोने एंटोनी के अनुसार सुरक्षा जांच की अंतरिम रिपोर्ट में हिताची के एटीएम में कोई वायरस या गड़बड़ी का प्रमाण नहीं मिला है, जबकि पेमेंट गेटवे कंपनी वीज़ा, मास्टरकार्ड और रूपे के अनुसार हिताची तथा येस बैंक के एटीएम में मई से जुलाई, 2016 के दौरान कार्डों की क्लोनिंग से बड़े पैमाने पर संदिग्ध ट्रांज़ेक्शन हुए. हिताची द्वारा संचालित 48,000 एटीएम सुरक्षा चूक के बावजूद अब भी चल रहे हैं, जिससे अन्य ग्राहकों के साइबर डकैती का शिकार होने का खतरा बरकरार है.
संदिग्ध कंपनियों को कैसे मिली व्हाइट लेबल एटीएम की अनुमति : वर्तमान संकट के पीछे हिताची पेमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के 48,000 से अधिक व्हाइट लेबल एटीएम जिम्मेदार हैं, जिनमें वायरस के माध्यम से कार्डों की क्लोनिंग और डाटा की चोरी हुई. जून, 2012 के पहले बैंक ही एटीएम लगा सकते थे, जहां डाटा सुरक्षा के लिए सख्त प्रावधान भी थे. उसके बाद रिज़र्व बैंक द्वारा एनबीएफसी कंपनियों को एटीएम लगाने की अनुमति दे दी गई, जिन्हें व्हाइट लेबल एटीएम (डब्ल्यूएलए) कहा गया.
इसके बाद जापान की हिताची कंपनी ने प्रिज़्म पेमेंट सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड की आड़ में आरबीआई से डब्ल्यूएलए का लाइसेंस ले लिया, जिसे यूपीए सरकार की कैबिनेट समिति (सुरक्षा) ने फरवरी, 2014 में मंज़ूरी भी दे दी. येस बैंक के चेयरमैन राना कपूर ने इस तरह की आउटसोर्सिंग से बैंकिंग प्रणाली को खतरे से आगाह किया है, लेकिन उनके बैंक ने ही तो हिताची के साथ एटीएम विस्तार के लिए सबसे बड़ी साझेदारी की. रिज़र्व बैंक ने मई, 2014 में व्हाइट लेबल एटीएम के लिए ऋद्धि-सिद्धि बुलियन्स लिमिटेड को भी लाइसेंस दिया, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर पृथ्वीराज कोठारी पर हवाला रैकेट चलाने की जांच सुप्रीम कोर्ट नियुक्त एसआईटी द्वारा की गई.
जन-धन योजना के विस्तार में बैंकिंग सुरक्षा दांव पर : देश में 65-70 करोड़ से अधिक डेबिट कार्ड हैं, जिनमें से एक तिहाई जन-धन योजना के तहत जारी हुए. रिज़र्व बैंक ने 22 सितंबर, 2011 को गाइडलाइन जारी करके सभी बैंकों को निर्देश दिया था कि 30 जून, 2013 तक मैगनेट स्ट्रिप कार्ड हटाकर सिर्फ चिप कार्ड जारी किए जाएं, जिनमें ईएमवी (यूरोपे, मास्टरकार्ड और वीज़ा) पिन (पर्सनल आइडेंटिफिकेशन नंबर) ज़रूरी होता है. स्ट्रिप कार्ड की लागत लगभग 10 रुपये है, जबकि चिप कार्ड की लागत लगभग 40 रुपये है, और यह पैसा जन-धन के गरीब ग्राहक देने के लिए तैयार नहीं हैं.
बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक के निर्देशों का पालन नहीं होने पर चिप आधारित कार्ड जारी करने की समय-सीमा लगातार बढ़ाई गई, जबकि नियमों के ऐसे उल्लंघन पर एक करोड़ रुपये की पैनल्टी का प्रावधान है. वित्त मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव जीसी मुरमू के अनुसार सिर्फ 0.5 फीसदी डेबिट कार्डों का पिन या अन्य डेटा चोरी हुआ है, जबकि 99.5 फीसदी कार्ड पूरी तरह सुरक्षित हैं. अभी तक के आंकड़ों के अनुसार 19 बैंकों के 641 ग्राहकों के खाते से 90 एटीएम के माध्यम से 1.3 करोड़ रुपये की निकासी या खरीददारी की सूचना है, पर पूरा सच तो आना बाकी है.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली तथा अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने के लिए चीन का सर्जिकल अटैक : वर्तमान डेबिट कार्ड घोटाले में खातेदारों की रकम की निकासी चीन में होने की सूचना है. सरकार द्वारा संसद में दिसंबर, 2015 को दी गई जानकारी के अनुसार देश में डेबिट / क्रेडिट कार्ड फ्रॉड के 12,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए. बांग्लादेश में फरवरी, 2016 में हैकरों द्वारा सेंट्रल बैंक से 6,000 करोड़ रुपये उड़ा लिए, जिसके अपराधी अभी तक नहीं पकड़े गए. वर्ष 2008 में अमेरिकी सेना का कंप्यूटर डेटा हैक करके चीन के सर्वरों में भेज दिया गया.
अमेरिका के सबसे बड़े बैंक मॉर्गन चेज़ एंड कंपनी के 7.6 करोड़ ग्राहकों की सन् 2014 में सूचनाएं हैक हुई थीं, जिन तक जांच एजेंसी अब भी नहीं पहुंच पाई. मुंबई पुलिस ने इस मामले में रिज़र्व बैंक से विवरण मांगे हैं, लेकिन क्या स्थानीय पुलिस इस अंतरराष्ट्रीय अपराध तंत्र की जांच कर पाएगी...? दो दिन पूर्व चीन के अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' ने भारत के खिलाफ कठोर टिप्पणी करते हुए पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट बताया था. सिस्टम के निकम्मेपन का फायदा उठाकर, क्या चीन के हैकरों ने भारतीय बैंकिंग और अर्थव्यवस्था पर सर्जिकल स्ट्राइक की है...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From Oct 21, 2016
साइबर डकैती : क्या यह भारतीय बैंकिंग पर चीन का 'सर्जिकल स्ट्राइक' है...?
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 21, 2016 16:51 pm IST
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Published On अक्टूबर 21, 2016 16:29 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 21, 2016 16:51 pm IST
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