'डिजिटल इंडिया' में व्हॉट्सऐप कंपनी के 20 करोड़ यूज़र हैं, जो विश्व में सर्वाधिक हैं. जब डाटा को तेल सरीखा बहुमूल्य माना जाता हो, उस दौर में फ्री सर्विस देकर भी व्हॉट्सऐप 5.76 लाख करोड़ से ज़्यादा वैल्यू की कंपनी है. फ़ेक न्यूज़ को लेकर समाज, सरकार और सुप्रीम कोर्ट सभी चिन्तित हैं, लेकिन व्हॉट्सऐप के भारतीय कारोबार में फर्क क्यों नहीं आया...
रेहड़ी लगाने के लिए लाइसेंस चाहिए, लेकिन व्हॉट्सऐप के आगे कानून फेल : देश में रेहड़ी लगाने के लिए भी नगरपालिका से लाइसेंस समेत अनेक नियमों का पालन करना होता है, परन्तु व्हॉट्सऐप जैसी कंपनियां भारतीय कानूनों से परे हैं. आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने व्हॉट्सऐप के CEO क्रिस डैनियल्स से मुलाकात में भारत में कंपनी का ऑफिस खोलने की मांग की. सवाल यह है कि 'मेक इन इंडिया' के तहत काम करने वाली सरकार के दौर में व्हॉट्सऐप जैसी कम्पनियां ऑफिस की स्थापना किए बगैर, भारत में सबसे बड़ा बाज़ार कैसे खड़ा कर लेती हैं...?
लीगल नोटिस के बाद दण्डात्मक कार्रवाई क्यों नहीं : फ़ेक न्यूज़ और मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के बाद केंद्र सरकार ने व्हॉट्सऐप कंपनी को दो लीगल नोटिस भेजे थे. व्हॉट्सऐप की पेरेंट कंपनी फेसबुक है, जिसके खिलाफ भी कैम्ब्रिज एनालिटिका मामले में डाटा लीक के लिए CBI जांच चल रही है. ब्लू व्हेल, पोर्नोग्राफी जैसे अनेक मामलों में अमेरिकी कंपनियों को भारत सरकार ने लीगल नोटिस भेजे, लेकिन उनका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया. सरकार द्वारा आईटी एक्ट की किस धारा के तहत इन कंपनियों के खिलाफ लीगल नोटिस भेजे जा रहे हैं, इस पर अभी तक स्पष्टता नहीं है. सवाल यह है कि लीगल नोटिस भेजने के बाद सरकार द्वारा दण्डात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है...?
व्हॉट्सऐप कंपनी को पेमेंट सर्विस की अनुमति क्यों : व्हॉट्सऐप कंपनी का भारत में कोई ऑफिस और प्रतिनिधि नहीं है, उसके बावजूद उन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा ट्रायल की अनुमति क्यों दी गई...? व्हॉट्सऐप कंपनी द्वारा फरवरी, 2018 से 10 लाख लोगों के बीच ट्रायल करने के बाद अब पेमेंट सर्विस के लाइसेंस के लिए लामबन्दी शुरू हो गई है. समाचारों के अनुसार इंटरनेट की ताकतवर कंपनियों द्वारा अमेरिकी सरकार में लॉबीइंग के माध्यम से भारत पर नियमों का पालन नहीं कराने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. क्या इसीलिए रिज़र्व बैंक द्वारा पेमेंट कंपनियों को वित्तीय डाटा भारत में सुरक्षित रखने के लिए जारी निर्देशों का अभी तक पालन सुनिश्चित नहीं किया गया...?
केंद्र सरकार की विफलता से राज्यों द्वारा गैरकानूनी तौर पर इंटरनेट कर्फ्यू : संविधान के तहत कानून एवं व्यवस्था की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है, जबकि आईटी एक्ट के तहत व्हॉट्सऐप जैसे ऐप के खिलाफ सिर्फ केंद्र सरकार ही कार्रवाई कर सकती है. आईटी मंत्री द्वारा व्हॉट्सऐप CEO से की गई मांग से ज़ाहिर है कि व्हॉट्सऐप द्वारा भारत के कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है. आंकड़ों के अनुसार पिछले आठ महीनों में 44 बार से ज़्यादा इंटरनेट सेवाएं बंद की गई हैं. आम जनता को दुःखी करने के लिए गैरकानूनी तरीके से लागू किए जा रहे इंटरनेट कर्फ्यू के दौर में, व्हॉट्सऐप कंपनी से सामान्य नियमों का भी पालन क्यों नहीं कराया जा रहा...?
व्हॉट्सऐप कंपनी द्वारा शिकायत अधिकारी की नियुक्ति क्यों नहीं : आईटी इंटरमीडियरी नियम, 2011 को संसद ने अनुमोदित किया है, जिसकी धारा 3 (11) के अनुसार भारत में व्यापार कर रही हर इंटरनेट कंपनी या ऐप को शिकायत अधिकारी नियुक्त करना ज़रूरी है. केएन गोविन्दाचार्य की याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में इन नियमों का पालन सुनिश्चित कराने के लिए भारत सरकार को आदेश दिया था. अदालत के आदेश के बावजूद कांग्रेस-नीत UPA और BJP-नीत NDA सरकार इन नियमों का पालन सुनिश्चित कराने में क्यों विफल रही हैं...?
शिकायत अधिकारी नियुक्त होने से भारत में फायदे : फ़ेक न्यूज़ या मॉब लिंचिंग के लिए ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ डिजिटल कार्रवाई करने के लिए कंपनी के शिकायत अधिकारी की कानूनी जवाबदेही रहेगी. शिकायत अधिकारी होने से आम जनता और बैंकों को राहत मिलने के साथ-साथ पुलिस को भी सहूलियत होगी. शिकायत अधिकारी की नियुक्ति होने से व्हॉट्सऐप जैसी कंपनियों को भारतीय कानून का पालन सुनिश्चित करना होगा. गूगल, फेसबुक, व्हॉट्सऐप जैसी कंपनियों द्वारा फ्री सेवा के नाम पर भारत से 20 लाख करोड़ से ज़्यादा का कारोबार किया जा रहा है. शिकायत अधिकारी की नियुक्ति के बाद इन कंपनियों को GST और इनकम टैक्स भी देना पड़ेगा, जिससे डाटा की गैरकानूनी बिक्री रुकने के साथ भारत में बड़े पैमाने पर रोज़गारों का सृजन भी होगा. सरकार द्वारा घुड़की देने की बजाय व्हॉट्सऐप जैसी बड़ी कंपनियों से कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने से, देश में संविधान का शासन बुलंद होगा, तो फिर इसमें देरी क्यों...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.