केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मंत्रालय ने साइबर सुरक्षा के लिहाज से बेहतरीन पहल की है. मंत्रालय के तहत काम करने वाली साइबर डिवीजन (NISPG) ने इंटरनेट और कम्प्यूटर के सुरक्षित इस्तेमाल हेतु सरकारी अधिकारियों के लिए 24 पेज की नई गाइडलाइन जारी की है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अधिकारियों के लिए यह पहली ऐसी गाइडलाइन है, पर यह तथ्यात्मक तौर पर सही नहीं है. आम बजट के पहले के.एन. गोविन्दाचार्य, रामबहादुर राय, पी.वी. राजगोपाल और बासवराज पाटिल ने अमित शाह को प्रतिवेदन देकर दिल्ली हाईकोर्ट के 2014 के आदेश के तहत बनी सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन कराने की मांग की थी. उस कड़ी में केन्द्रीय गृह मंत्रालय की नवीनतम गाइडलाइन्स अच्छी हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन पर सवालिया निशान बरकारार हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा गोविन्दाचार्य मामले में विस्तृत आदेश
साइबर सुरक्षा और इंटरनेट कम्पनियों पर टैक्स लगाने के लिए संघ के पूर्व प्रचारक गोविन्दाचार्य ने दिल्ली उच्च न्यायालय में जून 2012 में याचिका दायर की थी. पूर्ववर्ती यूपीए और फिर एनडीए-1 के दौरान हाईकोर्ट ने इस मामले में अनेक आदेश पारित किये. हाईकोर्ट के आदेश के बाद केन्द्र सरकार ने सरकारी कार्यालयों में और अधिकारियों द्वारा कम्प्यूटर, इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल हेतु विस्तृत नियमावली बनाई थी. इन नियमों का जिक्र 28 नवम्बर 2014 के आदेश में है, जिसकी प्रति प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमितशाह को बजट पूर्व भेजी गई थी. गृह मंत्री को दिये गये प्रतिवेदन में विस्तार से यह बताया गया था कि हाईकोर्ट के आदेश के तहत जारी की गई नीतियों का सरकारी विभागों में अभी भी पालन नहीं हो रहा है. गृह मंत्रालय ने नई गाइडलाइन्स से नियमों को और सख्त बना दिया है, परन्तु उनके पालन की व्यवस्था का विवरण नहीं है.
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सरकारी विभागों औैर एजेंसियों के मकड़जाल में उलझी नीतियां
साइबर सुरक्षा पर अदालत का आदेश कानून, आईटी, टेलीकॉम, वित्त और गृह मंत्रालय के अधिकारियों के मकड़जाल में फंसकर जस का तस रह गया. गृह मंत्रालय द्वारा जारी वर्तमान आदेश सरकारी अधिकारी, कान्ट्रेक्ट स्टॉफ, सलाहकार, थर्ड पार्टी स्टॉफ आदि सभी पर लागू होता है. इस लिहाज से केन्द्र और राज्यों के लगभग तीन करोड़ सरकारी कर्मचारियों पर वर्ष 2014 की गाइडलाइन्स लागू होनी चाहिए. 2014 में जारी नीति के अनुसार सरकारी कार्य हेतु विदेशी सर्वर्स वाली ई-मेल का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. आईटी मंत्रालय के तहत कार्य कर रही एनआईसी (NIC)), सरकारी अधिकारियों को ई-मेल की सुविधा प्रदान करती है. डिजिटल इण्डिया के तहत
देश के 6 लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़े जाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, लेकिन एनआईसी द्वारा सभी सरकारी कर्मचारियों को आधिकारिक ई-मेल की सुविधा नहीं दी जा रही है. इस वजह से सरकारी कार्य में जी-मेल, याहू, हॉटमेल इत्यादि का नियमित इस्तेमाल अभी भी हो रहा है. पब्लिक रिकॉर्ड्स कानून के तहत यह एक गम्भीर अपराध है जिसके लिए दोषी सरकारी कर्मचारियों को 3 साल तक की सजा हो सकती है. गृह मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार विदेशी शक्तियों द्वारा सरकारी साइबर तन्त्र पर रोजाना औसतन 30 हमले किये जाते हैं,इसके बावजूद केन्द्र और राज्य सरकारों में प्रभावी सामंजस्य नहीं बन पा रहा है. क्या केंद्र और राज्य सरकारों के सभी विभागों में गृह मंत्रालय की नयी गाइडलाइन्स लागू किया जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है?
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सरकारी कम्प्यूटर सिस्टम की सुरक्षा
सरकारी कम्प्यूटर सिस्टम यदि असुरक्षित इंटरनेट तन्त्र से जुड़ जाये तो गोपनीय सरकारी डाटा को हैक किया जा सकता है. इसलिए आईटी (IT) मंत्रालय के तहत मीयटी (MeitY) ने 2014 की नीतियों को जारी किया था, जिसके अनुसार सरकारी कम्प्यूटर का निजी कार्य और सोशल मीडिया हेतु इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. गृह मंत्रालय ने नवीनतम आदेश में सार्वजनिक स्थलों के वाईफाई के इस्तेमाल पर भी एहतियात बरतने को कहा है. क्लासीफाइड डाटा की सुरक्षा के लिए अनेक सावधानी बरतने के साथ, पेन ड्राईव के इस्तेमाल पर भी रोक की बात गृहमंत्रालय ने कही है. ऑफिस के समय और सरकारी कम्प्यूटर सिस्टम में सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर तो 5 साल से प्रतिबन्ध है, जिसका धड़ल्ले से उल्लंघन हो रहा है. तो अब गृह मंत्रालय के नये आदेशों का पालन कैसे सुनिश्चित होगा?
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साइबर सुरक्षा और मेक-इन-इण्डिया
सरकारी तन्त्र में साइबर सुरक्षा का सवाल समाज और देश से जुड़ा हुआ है. देश में कम्प्यूटर और इंटरनेट क्रान्ति तो हो गई,लेकिन इसके इस्तेमाल पर जागरुकता अभी तक नहीं बन पाई है. स्मार्ट फोन का हर 6 महीने में नया मॉडल आ जाता है, लेकिन साइबर सुरक्षा के लिए अभी भी दो शताब्दी पुराने टेलीग्राफ एक्ट से काम चलाया जा रहा है. मेक-इन-इण्डिया को रक्षा क्षेत्र में लागू करने की कोशिश है, लेकिन इसे इंटरनेट कम्पनियों पर नहीं लागू किया जा रहा है. खुला बाजार होने के नाते भारत में विश्व के सबसे ज्यादा इंटरनेट ग्राहक हैं, फिर भी कम्पनियों द्वारा भारत में ऑफिस और सर्वर नहीं लगाये जा रहे हैं. इंटरनेट और डिजिटल क्षेत्र में मेक-इन-इण्डिया को प्रभावी तरीके से लागू करना होगा, तभी देश वास्तविक अर्थां में पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन सकेगा.
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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