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This Article is From Feb 04, 2019

हमाम में नेता और थाने में CBI - क्या करे सुप्रीम कोर्ट...?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 04, 2019 15:33 pm IST
    • Published On फ़रवरी 04, 2019 15:33 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 04, 2019 15:33 pm IST

पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार  और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के बीच राजनैतिक टकराव के दौर में नए CBI चीफ की ताजपोशी एक अजब संयोग है. संवैधानिक संकट की दुहाई देते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल कर ममता बनर्जी सरकार और पुलिस प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री रहते हुए ममता बनर्जी ने सत्याग्रह शुरू कर, केंद्र सरकार पर बदनीयती और तख्तापलट की कोशिश का आरोप लगाया है. राजनीतिक दलों की सोशल मीडिया बिग्रेड द्वारा नेताओं के पुराने ट्वीट टैग कर हुल्लड़बाजी की जा रही है. अराजकता के इस दौर में चिटफंड के भ्रष्टाचार का सवाल बेपटरी हो गया है.

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CBI को बंगाल में जांच के अधिकार पर सवाल : तीन महीने पहले 16 नवंबर को पश्चिम बंगाल सरकार ने दिल्ली पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1946 के तहत CBI को दी गई मान्यता और सहमति वापस ले ली थी. इस आधार पर यह कहा जा रहा है कि CBI द्वारा पुलिस कमिश्नर के मामले में जांच के लिए राज्य सरकार की पूर्वानुमति ज़रूरी है. शारदा और रोज़वैली चिटफंड घोटाले की CBI जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2014 में आदेश दिया था. नए मामलों में जांच के लिए CBI को राज्य सरकार की अनुमति लेनी चाहिए, लेकिन चिटफंड घोटालों के पुराने मामलों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद CBI को राज्य सरकार की अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.

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क्या पुलिस कमिश्नर गुनहगार हैं : केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई अर्ज़ी में पुलिस महानिदेशक और पुलिस कमिश्नर पर वर्दी में राजनीतिक अनशन में शामिल होने का आरोप लगाया गया है. राजीव कुमार अप्रैल, 2013 में राज्य सरकार द्वारा गठित SIT के मुखिया थे, जिसके बाद 2014 में CBI को जांच सौंप दी गई. लैपटॉप, मोबाइल, पेन ड्राइव, डायरी और कुछ दस्तावेज़ कथित तौर पर SIT द्वारा CBI को नहीं सौंपे गए हैं. CBI के संयुक्त निदेशक के अनुसार चार समन जारी होने के बावजूद पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार द्वारा जांच में सहयोग नहीं किया जा रहा. सुप्रीम कोर्ट में दायर अर्ज़ी के अनुसार राजीव कुमार के सरेंडर करने की मांग की गई है. कानून के अनुसार दस्तावेज़ और साक्ष्यों को SIT के जांच अधिकारी, यानी IO द्वारा CBI के IO को सौंपा जाना चाहिए. इसमें कोई गफलत होने पर CBI द्वारा सुप्रीम कोर्ट को सूचित करना चाहिए. चिटफंड घोटाले की बड़ी मछलियां सभी दलों का हिस्सा हैं, जिनके खिलाफ तेज जांच करने की बजाय पुलिस कमिश्नर पर इस विवाद से CBI की छवि को बट्टा ही लग रहा है.

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ओडिशा और असम की जांच में तेज़ी क्यों नहीं : नेताओं, अफसरों और मीडिया के सहयोग से हुए इन दो चिटफंड घोटालों में 17 लाख गरीब परिवारों का 20,000 करोड़ रुपया डूब गया. इन घोटालों को रोकने में रिज़र्व बैंक, SEBI और ED जैसी संस्थाएं भी विफल रहीं. घोटाले में दो सांसद, पूर्व DGP और मंत्री गिरफ्तार होने के बावजूद गरीब परिवारों का पैसा अभी तक वापस नहीं मिला. इन घोटालों का जाल असम और ओडिशा में फैला था, जिनकी जांच भी सुप्रीम कोर्ट ने CBI को सौंपी थी. इस घोटाले के एक अन्य आरोपी अब असम में BJP सरकार के संकटमोचक हैं. उड़ीसा में बीजू जनता दल (BJD) के साथ केंद्र का लुकाछिपी का रिश्ता चल रहा है. इन घोटालों की जांच CBI द्वारा पांच साल से की जा रही है, तो फिर असम और ओडिशा के आरोपियों पर भी इतनी मुस्तैदी से कार्रवाई क्यों नहीं होती...?

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क्या करे सुप्रीम कोर्ट : यह मामला पहले भी कई बार सुप्रीम कोर्ट में आ चुका है. जुलाई, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि बंगाल पुलिस द्वारा CBI अधिकारियों को तंग न किया जाए. चीफ जस्टिस ने CBI से उन आरोपों की पुष्टि के लिए विवरण मांगा है, जिनमें कहा गया है कि राज्य सरकार और पुलिस कमिश्नर द्वारा सबूतों को नष्ट किया जा रहा है. कोई भी व्यक्ति यदि सबूतों को नष्ट करे, तो उसके खिलाफ CBI द्वारा अदालत के माध्यम से कार्रवाई की जा सकती है. परंतु रविवार को पुलिस कमिश्नर के घर में CBI की टीम द्वारा छापा मारने को कैसे जायज़ ठहराया जा सकता है. वर्ष 2014 के आदेश में CBI जांच की मॉनिटरिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया था. इन विवादों के बाद सुप्रीम कोर्ट यदि इस जांच की मॉनिटरिंग करे, तो यह केंद्र सरकार पर तमाचे के साथ-साथ राज्य सरकार के लिए भी दिक्कत का सबब होगा.

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देशभर में हो रहे अनेक चिटफंड घोटालों के हमाम में सभी दलों के नेता मौजूद हैं. पुलिस पर राज्यों की और CBI पर केंद्र सरकार की दखलअंदाज़ी की वजह से हो रहे इन विवादों से आम जनता का कानून के प्रति भरोसा और डगमगाता है. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 के फैसले के पैरा-40 में CBI की विश्वसनीयता पर की गई अनुकूल टिप्पणी, चार साल बाद अब बेमानी हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह मामले में वर्ष 2006 के फैसले से पुलिस सुधारों का भी समर्थन किया था, जिस पर कोई भी राज्य अमल करने को तैयार नहीं है. कोलकाता के थाने में CBI प्रकरण के बाद पुलिस सुधार और CBI की स्वायत्तता पर ठोस एक्शन प्लान से ही सुप्रीम कोर्ट ऐसे संवैधानिक संकटों का स्थायी निराकरण कर सकता है.

 
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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