दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के चुनाव क्षेत्र मंडावली में भूख से तीन बच्चियों की मौत के बाद AAP, BJP और कांग्रेसी नेताओं के बीच बयानबाजी शुरू हो गई है. बच्चियों की मौत से गरीबी, अवसाद, बेरोज़गारी, क़र्ज़, अशिक्षा, जनसंख्या, नशा, अस्वच्छता जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर सभी सरकारों की गवर्नेन्स पर विफलता उजागर होती है. 21वीं शताब्दी में देश की राजधानी दिल्ली में भुखमरी से हुई मौतें 'डिजिटल इंडिया' के लिए कलंक हैं. नेताओं की बचकानी भूख हड़ताल के दौर में भुखमरी से हुई असली मौतों के बाद इन 10 मुद्दों पर संसद में जवाबदेही क्यों नहीं तय होनी चाहिए...?
स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन के भारी बजट के दौर में बेटियों की मौत
देश में 'बेटी बचाओ' के लिए केंद्र और राज्य की अनेक योजनाओं के बावजूद तीन मासूम बच्चियां भुखमरी से दम तोड़ देती हैं. देश में 99 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 2.04 लाख करोड़ और बुलेट ट्रेन के 65,000 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया है. शहरों में सुविधाओं के चक्कर में गांवों से करोड़ों लोग पलायन कर स्लम के नर्क का हिस्सा बनकर ऐसी मौतों का शिकार बनने के लिए क्यों अभिशप्त हैं...?
रोज़ाना 17 रुपये में गुज़ारा करते आम लोग
NSS द्वारा 2011-12 के लिए जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार आबादी के निचले पांच फीसदी लोगों की आय ग्रामीण क्षेत्रों में 17 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 23 रुपये दैनिक है. दिल्ली में प्रति व्यक्ति सालाना आय 27,424 रुपये है, जबकि केरल में यह 1.42 लाख रुपये सालाना है. विश्व भुखमरी इन्डेक्स में विश्व के 88 देशों में भारत 66वें नंबर पर है, लेकिन इसके बावजूद देश में गलत प्राथमिकताएं क्यों निर्धारित हो रही हैं...?
आबादी का बढ़ता वोट बैंक और दरकता केरल मॉडल
देश की आबादी और बढ़ता गरीब तबका नेताओं के लिए आकर्षक वोटबैंक साबित हो रहा है. देश में औसत 17.6 जनसंख्या वृद्धि की तुलना में 2001-11 के दौरान केरल में 4.8 जनसंख्या वृद्धि हुई. विकास की मंज़िल हासिल करने के लिए पुरस्कृत करने की बजाय 15वें वित्त आयोग ने केरल जैसे राज्यों को दण्डित करने की अनुशंसा कर डाली. इसके अनुसार 2.5 फीसदी की बजाय जनसंख्या कम होने की वजह से केरल को केंद्रीय टैक्स से 2 फीसदी से कम हिस्सेदारी क्यों मिलनी चाहिए...?
केंद्र और राज्य की अनेक योजनाओं का क्या हुआ
दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकारों की अनेक कल्याणकारी योजनाएं हैं, जिनमें आंगनबाड़ी, मिड-डे मील और समन्वित बाल संरक्षण प्रमुख हैं. इन योजनाओं के साथ दिल्ली में बाल आयोग, महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाओं के साथ अनेक रैन-बसेरे भी कागज़ों में फुर्ती से दौड़ रहे हैं, जिनका असली सच इन मौतों से ही सामने आता है.
राशनकार्ड पर नेताओं का विरोधाभास
मृत बच्चियों के माता-पिता 10-15 वर्ष पूर्व बंगाल-ओडिशा से दिल्ली आए थे. बच्चों के पेट में खाना और पानी का कोई भी अंश नहीं मिला. BJP नेता मनोज तिवारी दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं, तो आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार राशनकार्ड पर विफलता के लिए LG को जवाबदेह ठहरा रही है. अजय माकन के अनुसार कांग्रेस के शासनकाल में दिल्ली में 35.5 लाख लोगों को राशनकार्ड से राशन उपलब्ध कराया जाता था. उनके अनुसार अब सिर्फ 15 लाख लोगों के पास राशनकार्ड रह गए हैं. गरीबों के राशनकार्ड नहीं बन रहे और जिनके पास हैं, उन्हें राशन क्यों नहीं मिल रहा...?
AAP कैंटीन योजना का क्या हुआ
दिल्ली सरकार ने महंगाई की मार झेल रही जनता को राहत देने के लिए सब्सिडी-युक्त आम आदमी पार्टी कैंटीन योजना जुलाई, 2015 में लॉन्च की थी. दिल्ली के अनेक इंडस्ट्रियल एरिया, अस्पताल, कमर्शियल हब और कॉलेजों में 200 कैंटीनों को शुरू होना था. स्वास्थ्य विभाग ने इस योजना पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि ट्रांज़ैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स के मुताबिक सस्ती दरों पर भोजन उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी खाद्य या महिला एवं बाल कल्याण विभाग को पूरी करनी चाहिए. देश में अफसरशाही का अधिकांश समय नियमों की व्याख्या में ज़ाया होता है, और दूसरी तरफ भुखमरी से बच्चे मौत का शिकार होने के लिए अभिशप्त रहते हैं.
फ्री के नाम पर नेताओं द्वारा गरीबों का वोटबैंक
आज की ख़बर के अनुसार बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने विधानसभा में कहा कि जन्म से लेकर ग्रेजुएशन तक बच्चियों के विकास के लिए राज्य सरकार 54,000 रुपये की सहायता देगी. सभी राज्यों में हर दल की सरकार द्वारा चुनावों को जीतने के लिए जनता को अनेक फ्री पैकेज देने का चलन अब खतरनाक दौर में पहुंच गया है. दिल्ली में अवैध बस्तियों का नियमितीकरण, फ्री पानी, बिजली और मोहल्ला क्लीनिक जैसी योजनाएं हैं, परंतु भुखमरी से पीड़ित बच्चियों की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार स्थानीय जनता के चंदे से क्यों करना पड़ा...?
योजनाओं के फंड का 85 फीसदी भ्रष्टाचार के हवाले
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ईमानदार स्वीकारोक्ति करते हुए कहा था कि सरकारी योजनाओं में हर रुपये का सिर्फ 15 पैसा ही गरीबों तक पहुंचता है और बकाया पैसा बीच के दलाल हड़प लेते हैं. इंग्लैंड में खाने की जितनी खपत होती है, उससे ज़्यादा भारत में बर्बादी हो जाती है. कालाहांडी जैसे पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं का शोषण और गरीबी राजीव गांधी के दौर में उजागर हुई थी, लेकिन अनेक सरकारों के लुभावने वादों के बावजूद स्थिति में बहुत बदलाव क्यों नहीं हुआ...?
कैसे होगी पुलिस और मजिस्ट्रेट जांच
दिल्ली में पुलिस LG के अधीन और मजिस्ट्रेट राज्य सरकार के अधीन कार्य करते हैं और इसी के अनुरूप जांचों का एजेंडा निर्धारित होना तय है. मृत बच्चियों के पिता का रिक्शा छीन लिया गया था और उसके पैसे भी वापस नहीं मिल रहे थे, पर VIP मामलों में व्यस्त रहने वाली पुलिस से उस जैसे लोगों को कैसे न्याय मिले...? इन मौतों को संक्रमण, दवाओं के रिएक्शन से जोड़ते हुए अभिशप्त मां-बाप की लापरवाही को विस्तार से आगामी रिपोर्टों में दर्शाया ही जाएगा, लेकिन उससे भुखमरी से हुई मौत की हकीकत कैसे ख़त्म होगी...?
मौतों की जवाबदेही के लिए कौन है दिल्ली का बॉस
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद दिल्ली में अधिकारों की जंग थमी नहीं है. खुद को 'सुपरबॉस' समझने वाले LG और बड़े विज्ञापनों की मार्केटिंग करने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार अब इन मौतों की जवाबदेही के लिए भी आगे क्यों नहीं आते...?
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From Jul 26, 2018
भुखमरी से मौत - अब कौन है दिल्ली का 'बॉस', जवाब दे...
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 26, 2018 18:11 pm IST
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Published On जुलाई 26, 2018 16:36 pm IST
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Last Updated On जुलाई 26, 2018 18:11 pm IST
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