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This Article is From Nov 28, 2017

सुप्रीम कोर्ट में हादिया : कानून की बजाए प्रोग्रामिंग से फैसला क्यों?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 28, 2017 18:19 pm IST
    • Published On नवंबर 28, 2017 17:28 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 28, 2017 18:19 pm IST
धर्म-परिवर्तन करके निकाह करने वाली केरल की अखिला अशोकन उर्फ हदिया को मां-बाप की निगरानी से मुक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने की अनुमति दे दी. ढाई घंटे तक चली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने स्वीकार किया कि ऐसा मामला उन्होंने पहले नहीं देखा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में लम्बी सुनवाई और अंतरिम आदेश से कई सवाल खड़े हो गये हैं.

सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट को फटकार क्यों नहीं-
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस ने संविधान दिवस में कहा कि देश में कानून का राज होना चाहिए. लिव इन रिलेशंस की मान्यता के दौर में वयस्क व्यक्ति के विवाह को केरल हाईकोर्ट ने किस कानून के तहत रद्द किया? हदिया की इच्छा के विपरीत उसे मां-बाप की निगरानी में रखने का आदेश क्या संविधान के अनुच्छेद-19 और 21 का उल्लघंन नहीं है? सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी करते समय केरल हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार और न्यायिकता पर अचरज जताया था. हदिया द्वारा खुली अदालत में स्पष्ट तौर पर अपनी बात रखने के बावजूद केरल हाईकोर्ट के गलत फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार क्यों नहीं लगाई?

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हदिया ही क्यों, अदालतें भी हैं प्रोग्रामिंग का शिकार-
केन्द्र सरकार और हाईकोर्ट के अनुसार हदिया जैसी तमाम लड़कियों का कट्टरपंथी ताकतों द्वारा लव-जेहाद के लिए प्रोग्रामिंग की जा रही है. डिजिटल इंडिया में बच्चे और युवा सोशल मीडिया की प्रोग्रामिंग का शिकार होकर परिवार और समाज से दूर हो रहे हैं. अब प्राइम टाइम टीवी डिबेट्स की प्रोग्रामिंग से अदालतों की सुनवाई और फैसले प्रभावित होने लगे हैं. जब पूरे देश को ऐप की प्रोग्रामिंग से चलाने का यातना हो रहा हो तो सिर्फ हदिया की प्रोग्रामिंग पर सवाल क्यों?

ओपन कोर्ट में हदिया की प्राइवेसी का उल्लघंन क्यों-
सुप्रीम कोर्ट भारत की सर्वोच्च अदालत है जहां अमूमन संवैधानिक मामलों पर बहस होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से प्राइवेसी को मौलिक अधिकार माना है. ओपन कोर्ट में सुनवाई की बजाय सुप्रीम कोर्ट द्वारा मजिस्ट्रेट या कोर्ट कमिशनर नियुक्त करके हदिया के बयान को दर्ज कराया जा सकता था. इसकी बजाए ओपन कोर्ट में लड़की से सवाल-जवाब से ट्रायल कोर्ट का सीन क्या सुप्रीम कोर्ट की परंपरा और मर्यादा के विपरीत नहीं है? निजी मामलों में खुली सुनवाई करने से क्या हदिया के प्राइवेसी के अधिकार का सुप्रीम कोर्ट द्वारा उल्लघंन हुआ है?

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एनआईए जांच की भारी भरकम रिपोर्ट के बावजूद कारवाई क्यों नहीं-
कानून के अनुसार लव-जिहाद जैसे मामलों की एनआईए द्वारा जांच नहीं हो सकती है. केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में एनआईए द्वारा 11 मामलों की जांच की गई है. एनआईए की जांच रिपोर्ट के अनुसार, वेबसाइट के माध्यम से सम्मोहन और धर्म-परिवर्तन कराने के बाद लड़कियों के निकाह कराने का कट्टरपंथियों द्वारा संगठित गैंग चलाया जा रहा है. इन आरोपों की सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता पर सवाल यह है कि इतनी लम्बी जांच के बावजूद असल दोषी अभी तक गिरफ्तार और दण्डित क्यों नहीं हुए?

पद्मावती की तरह हदिया मामले में चुनावी सियासत-
देश में जीएसटी, एनपीए, बेरोजगारी जैसी अनेक समस्याएं हैं. गुजरात चुनाव में विकास के मुद्दे से बचने के लिए पद्मावती जैसे मामलों से धार्मिक प्रोग्रामिंग का प्रयत्न हो रहा है. क्या हदिया के माध्यम से दक्षिण भारत में सियासी कब्जे के लिए साम्प्रदायिक प्रोग्रामिंग का घमासान हो रहा है? आधार जैसे जनहित के व्यापक मामलों पर जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास समय नहीं है. फिर हदिया जैसे मामलों में लम्बी सुनवाई करके अदालतें सियासत की प्रोग्रामिंग का क्यों शिकार हो रही हैं?

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विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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