पंजाब अब प्रवासी मजदूरों को वापस बुला रहा है. इसके लिए पंजाब सरकार ने रेल मंत्रालय को तो लिखा ही है, इस संदर्भ में पंजाब के इंडस्ट्री मंत्री ने भारत सरकार को भी पत्र लिखा है. मगर वह ट्रेनों का इंतजार नहीं कर रहे हैं. जाहिर है पिछली बार जब ये प्रवासी मजदूर अपने गांव जा रहे थे तब पंजाब का अनुभव उतना अच्छा नहीं रहा था. यही वजह है कि पंजाब सरकार ने मजदूरों को वापस लाने के लिए बसों का इंतजाम किया है. तीन बसें इन प्रवासी मजदूरों को लेकर वापस भी आ चुकी हैं.
आखिर पंजाब को इन मजदूरों की जरूरत क्यों आ पड़ी है, वो भी इतनी जल्दी जब सुप्रीम कोर्ट ने आज ही कहा है कि सरकार सभी मजदूरों को अगले 15 दिनों में उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था करे. पंजाब को ये मजदूर क्यों चाहिए? इसकी पुख्ता वजह है पंजाब में एमएसएमई का सेक्टर बहुत बड़ा है. भारत की 90 प्रतिशत साइकिल पंजाब में बनती हैं, 70 फीसदी ट्रैक्टर पंजाब में बनते हैं, 90 परसेंट होज़ियरी-स्वेटर का सामान पंजाब में बनता है. जाहिर है इसके लिए मजदूर तो चाहिए ही. यही वजह है कि पंजाब के उद्योगपति अपनी बसें भेजकर मजदूरों को वापस बुला रहे हैं. और जैसा कि पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने कहा- ''हमें तो इन मजदूरों की बड़ी शिद्दत से जरूरत है. अब हम अपनी क्षमता अनुसार रेलें तो नहीं भेज सकते, लेकिन हमने बसें भेजी हैं और बसों से उनको वापस ला रहे हैं.''
बादल ने कहा कि ''पंजाब की धरती ऐसी धरती है, यहां पर लोगों को ऐसा सुकून महसूस होता है जैसे एक बच्चे को अपनी मां की गोद में महसूस होता है. यहां पर कहीं कोई पूर्वाग्रह नहीं है. लंगर की बड़ी प्रथा है. लोग पसंद करते हैं कि अगर कमाई करनी है तो पंजाब चला जाए. आज ही तीन बसें झारखंड से पंजाब आई हैं. झारखंड, बिहार और यूपी से लोग हमारे यहां मजदूरी करने आते हैं और हमारे यहां से लोग कनाडा और ब्रिटेन इंग्लैंड में काम करने जाते हैं. तो हमें वहां जैसा व्यवहार मिलता है, और हमारे व्यक्ति वहां पर जैसा व्यवहार करते हैं, तो उन चीजों से हम समझते हैं...''
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल का कहना है कि ''पंजाब की इस धरती पर अनजाने में भले ही कोई भूखा सो गया हो, तो इसकी तो मैं गारंटी नहीं देता, लेकिन जानबूझकर कोई भी व्यक्ति चाहे वह देसी हो या विदेशी हो पंजाब की धरती पर कभी भी कोई भूखा नहीं सोया है. यह धरती मां है जो सारे हिंदुस्तान का पेट भरती है. व्यक्ति यहां से भुखमरी से या उसे वेतन नहीं मिला... इन वजह से नहीं गया.''
पंजाब से जाने वालों की संख्या, जिन लोगों ने रजिस्टर किया वह 1000000 थी लेकिन जब जाने की बारी आई तो सिर्फ 50000 लोग ही गए, और 50000 लोग यहीं रुक गए.
अभी एक-दो दिन पहले ही जालंधर से एक ट्रेन चली थी जिसमें 1800 लोग जा सकते थे लेकिन सिर्फ 300 लोग गए. कहने का मतलब है कि जैसे पंजाब के लोग उदार हैं, ऐसे ही उनका दिल भी उदार है. हाल के दिनों में प्रवासी मजदूरों के घर वापसी के दौरान उनकी यात्रा का मंजर को देखकर अब यह मांग उठने लगी है कि सरकार के पास इनको लेकर एक नीति होनी चाहिए. पंजाब के वित्त मंत्री का यह भी कहना है कि बिल्कुल कोई ना कोई नीति तो होनी चाहिए. अंग्रेजी में जिसे हम एसओपी बोलते हैं. मजदूर मजदूरी करता है, उसके लिए कोई एक निश्चित नीति होनी चाहिए. एकदम से लॉकडाउन हो गया और मजदूर जहां थे, वहीं फंस गए.
बादल ने कहा कि ''मैं यह मानने को तैयार नहीं कि एटमी ताकत के पास इतनी क्षमता नहीं होती कि वह अपने मजदूरों को उनके घर पहुंचा सके. ऐसे में निश्चित रूप से गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को कुछ ना कुछ नीतियां ऐसी बनानी पड़ेंगी ताकि भारत के बेटे-बेटियों को इस तरह का दर्द सहन ना करना पड़े.'' पंजाब के वित्त मंत्री ने कहा कि ''लॉकडाउन के दौरान जो मजदूर अपने घरों के लिए निकले इस परिस्थिति को संभालने में सरकारों से भारी गलती हुई है.'' मनप्रीत बादल का कहना है कि ''इस दौरान मैंने जो दृश्य देखे उन्हें कभी नहीं भूल पाऊंगा कि कैसे एक महिला की मौत स्टेशन पर हो गई और और उसका छोटा सा बच्चा उसे उठाने की कोशिश कर रहा था. खुशी की बात है कि पंजाब में ये सीन नहीं हुआ. हमारे बुजुर्ग हमें बताते हैं कि जब विभाजन हुआ था तो उस समय लोग अपने परिवार, अपने बच्चों के साथ अपने सामान की पोटली सिर पर रखकर चले जा रहे थे. लेकिन पंजाब में हमारा जो अनुभव रहा है, वह इसके एकदम विपरीत रहा है. छोटा मुंह बड़ी बात, एक हिंदी का मुहावरा है.''
उन्होंने कहा कि ''हमने टीवी पर जो कुछ देखा, जो मंजर हमारे सामने था, वह एक पाप है. एक देश के लिए, हमारे लिए. आगे से यह कभी नहीं होना चाहिए और शायद ऐसी स्थिति थी जो हमसे मिसहैंडल्ड हुई है.''
ये अनुभव केवल पंजाब के वित्त मंत्री का ही नहीं है बल्कि देश के उन तमाम लोगों का भी है जो संवेदनशील हैं, जिन्होंने स्टेशन पर मां की लाश में अपनी जिंदा मां को ढूंढने की कोशिश करते बच्चे की तस्वीर देखी है. मनप्रीत बादल भले ही इसकी तुलना विभाजन से करें क्योंकि बुजुर्गों ने इसका अनुभव किया होगा, मगर मैं तो यही कहूंगा कि जब तक मेरी अंतिम सांस रहे यह देखने को ना मिले और ऐसा हो तो इस तरह का मंजर देखने के पहले मैं अंतिम सांसें ले लूं.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)
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