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This Article is From Sep 17, 2022

मोदी @72 : जनता का विश्वास, PM मोदी की असली शक्ति

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    September 17, 2022 00:03 IST
    • Published On September 17, 2022 00:03 IST
    • Last Updated On September 17, 2022 00:03 IST

इतिहास में झांक कर देखना कई बार वर्तमान और भविष्य का दृश्य दिखा देता है. 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय अमेरिका ने भारत पर युद्ध रोकने का दबाव बनाते हुए गेहूं की आपूर्ति रोकने की धमकी दी थी. तब भारत उपज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं था. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पूरे देश से सप्ताह में एक दिन एक समय उपवास रखने को कहा. देशवासियों ने शास्त्री जी की इस अपील को स्वीकार किया और भारत ने अमेरिका की बंदरघुड़की को धता बता दिया.

दशकों बाद भारत को फिर ऐसा प्रधानमंत्री मिला जिसकी एक अपील पर जनता कुछ भी करने को तैयार दिखती है. कोरोना से लड़ाई के समय जनता का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह विश्वास हर तरह से दिखाई दिया. उनकी हर अपील को जनता ने माना. चाहे वह स्वास्थ्यकर्मियों का हौंसला बढ़ाने के लिए थाली बजाने की बात हो या फिर महामारी के प्रसार को रोकने के लिए जनता कर्फ्यू हो. दूसरी लहर के कहर में जब पूरा तंत्र बेबस दिखाई दिया तब भी लोगों का पीएम मोदी पर भरोसा कायम रहा कि उनके रहते हुए हालात बेकाबू नहीं होंगे. ऑक्सीजन की कमी के कारण दम तोड़ते लोगों और सामूहिक चिताओं के दृश्यों ने भयावह हालात को बयान किया. पीएम मोदी पर यह आरोप लगा कि वे समय रहते दूसरी लहर से निपटने की तैयारियां नहीं कर पाए. लेकिन शुरुआती झटके के बाद सरकार हरकत में आई और युद्ध स्तर पर ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों तक का इंतज़ाम करने में जुट गई.

पीएम मोदी का निर्देश था कि दुनिया के किसी भी कोने से जहां से भी हो, इनका इंतजाम किया. इसी तरह दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान में पीएम मोदी की अपील ने जनता पर जादू की तरह काम किया. स्वदेशी टीके के माध्यम से भारत ने कोरोना की बाद की मारक लहरों को रोकने में बड़ी सफलता हासिल की. जबकि चीन जैसा बड़ा देश अभी तक इस बीमारी से जूझ रहा है. करोड़ों लोगों को मुफ्त टीका और अनाज देकर उन्होंने जनता का दिल जीता. जनता पर उनके जादू का ही असर है कि उनकी अपील के बाद लाखों लोगों ने रेलवे टिकट में और एलपीजी सिलिंडर में मिल रही सब्सिडी को छोड़ने का फैसला किया. इसी वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी की अपील के बाद करोड़ों लोगों ने अपने घर पर तिरंगा फहरा कर देश की स्वतंत्रता के 75 वर्ष मनाए. 

आखिर क्या कारण है कि केंद्र में सत्ता के आठ वर्षों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आम लोगों का यह विश्वास कायम है. अगर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल मिला लें तो पिछले 20 वर्षों से वे लगातार कुर्सी पर हैं. वे अब तक कोई चुनाव नहीं हारे. हर चुनाव में जीत बड़ी होती जाती है. आज उनके नेतृत्व में 18 करोड़ सदस्यों के साथ बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है जो देश की आबादी का करीब 13 प्रतिशत है. बीजेपी और उसके सहयोगियों की 16 राज्यों में सरकारें हैं. 400 से अधिक सांसद और 1300 से अधिक विधायक हैं. 

देश के अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग और ओबीसी वर्ग में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता चरम पर है. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 131 में से 67 सीटें जीतीं. वहीं, साल 2019 में यह संख्या बढ़ कर 97 हो गई. इसी तरह साल 2014 में बीजेपी के ओबीसी वर्ग के 81 सांसद थे, जो साल 2019 में बढ़ कर 113 हो गए. पीएम मोदी ने बीजेपी की छवि में आधारभूत परिवर्तन किया है. वे अपनी पार्टी को चौराहे से निकाल कर आम लोगों के दरवाजे तक ले गए. चुनाव दर चुनाव बीजेपी को मिल रही सफलता के पीछे उनका जनता से जीवंत संवाद और सीधा संपर्क एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. 

प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए अपने गुजरात के अनुभवों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया. उन्होंने अपने और जनता के बीच किसी को नहीं आने दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें अपनी बात जनता तक पहुंचाने और जनता की बात अपने तक आने के लिए किसी बिचौलिए की आवश्यकता नहीं. सरकार की तमाम योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हो, यह इस पर निर्भर करता है कि समाज के अंतिम छोर तक बैठे व्यक्ति को उसका सीधा लाभ मिले. इस मामले में पीएम मोदी दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय से लेकर महात्मा गांधी के राजनीतिक दर्शन से प्रेरणा लेते हैं.

गांधीजी मानते थे कि व्यक्ति राज्य के लिए नहीं, अपितु राज्य व्यक्ति के लिए है. गांधीजी राज्य के कार्यक्षेत्र को अधिकतम मात्रा तक घटाने के पक्ष में थे, ताकि राज्य कम-से-कम शासन करे. गांधीजी कहते थे कि राज्य के कार्यों का एकमात्र लक्ष्य जनता का कल्याण या सर्वोदय की भावना होना चाहिए. अर्थात सरकार का अर्थ माई-बाप सरकार होना नहीं बल्कि लोगों की सेवक होना है. पीएम मोदी के जन्मदिवस से आयोजित सेवा पखवाड़े में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को यही दायित्व दिया गया है कि वे आम लोगों तक जाएं और सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन व उससे मिल रहे उन्हें सीधे लाभ के बारे में पता करें.

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वह ऐतिहासिक कथन कोई नहीं भूलता जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र से एक रुपया चलता है, लेकिन लोगों तक केवल 15 पैसे पहुंचते हैं. बीच में बैठे भ्रष्ट व्यवस्था के अपराधी इसे डकार जाते हैं. तकनीक के सही उपयोग से मोदी सरकार ने पहले लोगों के बैंक खाते खुलवाए और डायरेक्ट बेनीफ़िट ट्रांसफ़र (डीबीटी) से यह सुनिश्चित किया कि दिल्ली से चला एक रुपया रेजगारी न बने बल्कि पूरा का पूरा लाभार्थी की झोली में जाए. बिचौलियों से पीएम मोदी की एलर्जी केवल सरकारी योजनाओं तक ही सीमित नहीं है.

‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा' का उनका ध्येय वाक्य न केवल पिछले 20 वर्षों में क्रियान्वित होता दिखा है बल्कि इसी के कारण उनकी अपनी छवि की प्रामाणिकता इस तरह हो गई कि आम लोगों ने विश्वासपूर्वक मान लिया है कि मोदी न तो भ्रष्ट हैं और न ही भ्रष्ट लोगों को छोड़ते हैं. पिछले आठ साल में केंद्र में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगना या किसी घोटाले का दावा न होना, जनता में उनकी स्वीकार्यता को लगातार बढ़ा रहा है. बीजेपी नेताओं के अनुसार जब पीएम मोदी ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' की बात करते हैं तो वे किसी एक व्यक्ति, वर्ग, धर्म या क्षेत्र से ऊपर उठ कर पूरे भारत के सामूहिक सामर्थ्य का आह्वान कर रहे होते हैं. 

पीएम मोदी की लोकप्रियता के बारे में कहा जाता है कि वे आम लोगों से मिलने और उनसे आत्मीय संबंध बनाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते. समाज के सबसे निचले पायदान पर बैठा व्यक्ति हो या महत्वपूर्ण स्थान पर बैठा व्यक्ति, वे सबसे जीवंत संवाद स्थापित करने में अव्वल हैं. वे कठोर फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं और देश हित, समाज हित और जन हित में बड़े से बड़ा फैसला कर वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति को धता बता देते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कठोर कार्रवाई करने से भी पीछ नहीं हटना उनके कार्यकाल की विशेषता है. इसके लिए वे किसी के दबाव में नहीं आए.

सीमा और सुदूर क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण और सेना के लिए आवश्यक हथियारों की आपूर्ति में सरकार ने उल्लेखनीय काम किया. उनकी यही लोकप्रियता उनके विदेश दौरों में भी दिखती है, जब भारतवंशी बड़ी संख्या में देर रात को भी सड़कों पर खड़े रह कर उनका स्वागत करते हैं. प्रधानमंत्री मोदी जनता की सुनते भी हैं. अपनी आलोचनाओं को गंभीरता से लेते हैं. ख़ुद की और सरकार की कमियों को फ़ीडबैक के माध्यम से दूर करते हैं. वे अपनी छवि को लेकर बेहद संवेदनशील हैं. राजनीतिक छींटाकशी और आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह पर हैं, लेकिन जब उन्हें लगता है कि सरकार के किसी कदम का तीखा विरोध है और वे शायद जनता का मूड भांपने में सफल नहीं रहे, तो वे अपने कदम पीछे खींचने में भी संकोच नहीं करते.

केवल कृषि कानूनों का ही मुद्दा नहीं, बल्कि पिछले आठ साल में ऐसे कई अवसर आए जब मोदी ने अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा कर  और अपने समर्थकों को नाराज करने का जोखिम उठा कर भी फैसले वापस लेने में देरी नहीं की. जनता से उनका सीधा संवाद उनके दो दशक के कार्यकाल की एक अनूठी बात है. वे संचार माध्यमों का उपयोग अपने हिसाब से करने के लिए जाने जाते हैं. वे उन राजनेताओं में से हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा सोशल मीडिया की ताकत को पहचाना और इसे अपनी बात सीधे लोगों तक पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया.

वे फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से हैं. भारत में ऐसे हज़ारों लोग हैं, जिन्हें उनके जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बधाई संदेश मिलते हैं. नमो ऐप के माध्यम से लाखों लोग अपनी बात पीएम मोदी तक पहुंचाते हैं. तो आकाशवाणी पर हर महीने ‘मन की बात' के माध्यम से पीएम मोदी अपनी बात जनता तक पहुंचाते हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके भाषणों में उनके लंबे सार्वजनिक अनुभव की छाप दिखती है. वे जनता की नब्ज़ समझते हैं. कई बार उबाऊ और नीरस सरकारी कार्यक्रमों को भी वे अपने चुटकीले और गहन शोध के बाद तैयार किए गए भाषणों के माध्यम से जीवंत कर देते हैं.

उनके भाषणों में उपनिषदों के ध्येय सूत्र, संस्कृत के श्लोक और पौराणिक गाथाओं के प्रसंग उनकी भारत की सांस्कृतिक विरासत पर गहरी पकड़ को बताते हैं. वे कुर्सी पर आने से पहले देश के करीब-करीब सारे हिस्सों में घूम चुके हैं। आम लोगों के घरों में रहना, उनका सुख-दुख नज़दीक से देखना- यह सब उनके भाषणों में दिखता है. पारिवारिक जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव हों या समाज के भीतर की नोंक-झोंक, इनका समय-समय पर अपने भाषणों में जिक्र कर, पीएम मोदी आम लोगों को यह विश्वास दिला देते हैं कि वे उन्हीं के बीच से आए हैं, कहीं ऊपर से नहीं टपके. 

जनता से उनका ऐसा ही जीवंत संवाद तब देखने को मिलता है जब वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से समय-समय पर बातचीत करते हैं. स्थानीय विशेषताओं के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए वे लोगों से आत्मीय संबंध स्थापित कर लेते हैं. यहां भी उनके और जनता के बीच कोई नहीं होता. बतौर बीजेपी कार्यकर्ता जगह-जगह घूमने का उनका अनुभव ऐसे समय बहुत काम आता है. उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश के लोग याद करते हैं कि जब मोदी राज्य के प्रभारी थे तब शिमला में रिज पर कॉफी हाऊस में बैठा करते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब वे शिमला गए तो कॉफी हाऊस का चक्कर लगाना नहीं भूले. वहां के मशहूर दीपक भोजनालय के मालिक दीपक शर्मा के बारे में भी पूछा कि क्या दीपक आज भी पैदल जाखू तक जाते हैं.

हालांकि, आलोचक कहते हैं कि मुख्यधारा के मीडिया से जानबूझकर दूरी बनाए रखना पीएम मोदी पर कई सवाल खड़े करता है. उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री पिछले आठ साल में किसी प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित नहीं किया. मुख्यधारा की मीडिया को दिए गए उनके इंटरव्यू भी उंगुलियों पर गिने जा सकते हैं. लेकिन बीजेपी नेताओं का कहना है कि बतौर गुजरात मुख्यमंत्री, मुख्यधारा के मीडिया के एक हिस्से ने उन्हें जिस तरह गुजरात दंगों को लेकर कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, उससे वे बेहद आहत हुए. अब जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से भी स्पष्ट हो चुका है कि उन पर उंगुली नहीं उठाई जा सकती है. यही कारण है कि उन्होंने जनता से संवाद करने के लिए अपना एक अलग ही रास्ता अपनाने का फैसला किया. 

उनकी सरकार आठ साल पूरे कर चुकी है और अब यह एक नाज़ुक मोड़ पर है. सामान्यत दूसरा कार्यकाल पूरा करने वाली किसी भी सरकार की लोकप्रियता में आठवें वर्ष के बाद गिरावट दिखने लगती है. यूपीए सरकार के पतन का कारण यही आठवां वर्ष था, जिसमें एक के बाद एक सामने आए कई कथित घोटालों ने सरकार की लोकप्रियता को रसातल में पहुंचा दिया था और यह मोदी की अगुवाई में बीजेपी के विशाल बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आने का कारण बना. मोदी के सामने अब साल 2024 में अपनी पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाने की बड़ी चुनौती है.

विपक्ष चाहे बिखरा हो, लेकिन बीजेपी को हटाने के लिए वह किसी भी सीमा तक जाने को तैयार है. भारत के इतिहास में अकेले जवाहर लाल नेहरू ऐसे प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होंने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की. क्या मोदी यह करिश्मा कर इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ पाएंगे? हालांकि मोदी को करीब से जानने वाले कहते हैं कि उनका इरादा ख़ुद की छाप छोड़ने के बजाए देश के आम लोगों के जीवन स्तर को उठाना और देश को एक विकसित राष्ट्र बनाना है. वे इसके लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं. उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं. भ्रष्टाचार का दाग नहीं. परिवार के लोग राजनीति से दूर हैं. यही बात उन्हें जनता के करीब ले जाती है. लाल किले की प्राचीर से भ्रष्टाचार, परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की बात कर उन्होंने साल 2024 के लोक सभा चुनाव के लिए एजेंडा तय कर दिया है. 

हालांकि, अभी 2024 के लोकसभा चुनाव में 20 महीने बचे हैं. पीएम मोदी के लिए मिशन 2024 में कई चुनौतियां सामने हैं. विपक्षी दल उन्हें कई मोर्चों पर घेरे हुए है. प्रधानमंत्री मोदी पर एकाधिकारवादी और गैरलोकतांत्रिक रवैया अपनाने का आरोप लगाया जाता है. विपक्षी दल कहते हैं कि पिछले आठ वर्षों में चुन-चुन कर संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया। जांच एजेंसियों जैसे ईडी, सीबीआई आदि के दुरुपयोग का आरोप भी मोदी सरकार पर लगाया जाता है. मोदी सरकार के कई ऐसे फैसले हुए जिनसे उनके समर्थक भी हैरान दिखे, इनमें कृषि कानूनों को वापस लेना और सीएए को अभी तक लागू न करना शामिल है.

वैसे तो भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी के मोर्चों पर चुनौतियां बरकरार हैं. मोदी को एहसास है कि इन मुद्दों को लेकर उनकी सरकार को घेरा जा सकता है इसीलिए उन्होंने अगले वर्ष दिसंबर तक 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया है. महंगाई कम करने के लिए कई कदम उठाए गए. अगले चुनाव की रणनीति पर ठोस काम शुरू कर दिया गया है. अगले चुनाव से ठीक पहले अयोध्या में राम मंदिर में राम लला के दर्शन खोल दिए जाएंगे. उससे पहले विपक्ष के शासन वाले राज्यों में पार्टी को मजबूत करने और पिछले लोक सभा चुनाव में हारी सीटों को जीतने के लक्ष्य पर काम शुरू कर दिया गया है. विपक्ष को विभाजित करना, हतोत्साहित करना और उसे परास्त करना, इस रणनीति के साथ बीजेपी पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरने जा रही है. 

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के एक्जीक्युटिव एडिटर हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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