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This Article is From Jul 30, 2018

रेलवे भर्ती परीक्षा के उम्मीदवारों की मुसीबत

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 30, 2018 22:44 pm IST
    • Published On जुलाई 30, 2018 22:34 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 30, 2018 22:44 pm IST
ऑनलाइन का मतलब यही होता है कि आप अपने कंप्यूटर या फोन पर इंटरनेट के ज़रिए आचार-व्यवहार कर सकें. बिना घर से निकले सामान की खरीदारी कर सकें, बैंक का काम कर सकें और फार्म भर दें. भारत में बाज़ार में ऑनलाइन का कुछ और मतलब है और इम्तहान लेने वाली संस्थाओं के लिए ऑनलाइन का मतलब कुछ और है. ऑनलाइन परीक्षा के केंद्र होते हैं जहां पहुंचने के लिए चल कर जाना होता है. परीक्षा केंद्रों को ऑनलाइन तब भी कहा जाता है जब इन केंद्रों तक पहुंचने के लिए छात्रों को 1500 से 2000 किमी का सफर करना होता है. एक तरह से यह ऑनलाइन और ऑफलाइन का मिक्सचर हुआ. दालमोंठ परीक्षा प्रणाली. आपको पता है कि रेलवे की अस्सिटेंट लोको पायलट और टेक्निशियन की परीक्षा 9 अगस्त से होने वाली है जिसमें 47 लाख 56 हज़ार परीक्षार्थी हिस्सा लेने वाले हैं.

शुक्रवार को बड़ी संख्या में छात्रों ने हमसे संपर्क किया कि उनका सेंटर 1500 किमी दूर दिया गया है और वे 2000 रुपये खर्च करने की क्षमता नहीं रखते हैं. आप अगर रेल मंत्री और रेल मंत्रालय के ट्विटर हैंडल पर जाकर देखेंगे तो ऐसी शिकायतों की बाढ़ आई हुई है जिसमें छात्र रेल मंत्री से गिड़गिड़ा रहे हैं कि उनका सेंटर दूर नहीं रखा जाए वरना इम्तहान छूट जाएगा. पहले आप देखिए कि तीन दिन बाद इस समस्या पर रेल मंत्रालय ने क्या जवाब दिया है. उनके आधिकारिक जवाब के अनुसार इस परीक्षा के लिए 47 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है. इनमें से लगभग 34 लाख यानी 71% से अधिक आवेदकों को 200 किलोमीटर के अंदर ही परीक्षा केंद्र दिए गए हैं. विशेष रूप से उल्लेखनीय यह है कि 99% दिव्यांगों व महिलाओं को 200 किलोमीटर के अंदर परीक्षा केंद्र दिए गए हैं. इसी तरह थोड़ा और आगे बढ़कर 500 किलोमीटर के अंदर लगभग 83% यानी लगभग 40 लाख आवेदक समायोजित कर लिए गए हैं. और केवल 17% आवेदकों को 500 किलोमीटर से अधिक दूरी के केंद्र आवंटित हुए हैं.

रेलवे ने अपनी प्रेस रीलिज में 40 लाख तक संख्या तो बता दी लेकिन 500 किलोमीटर से अधिक दूरी के सेंटर वालों का प्रतिशत ही बताया. ऐसे छात्र सिर्फ 17 प्रतिशत हैं. ये 17 प्रतिशत होता है करीब 8 लाख. 8 लाख छात्र परेशान हैं कि उन्हें कटिहार से तेलंगाना जाना है, बंगलुरु जाना है जोधपुर जाना है. क्या यह कम संख्या है, सामान्य बात है कि 8 लाख छात्रों को इतनी दूर भेज दें कि उनमें से कई छात्र टिकट कटाने की स्थिति में न हों. यह कैसी व्यवस्था है कि 8 लाख लोगों को 2000 किमी की यात्रा करनी पड़े और 40 लाख लोगों को 500 किमी से कम की यात्रा करनी पड़े तो क्या यह सरकार की तरफ से बराबरी की व्यवस्था हुई. रेलवे ने कहा है कि कुछ राज्यों से आवेदकों की संख्या वहां उपलब्ध परीक्षा केंद्रों की क्षमता से बहुत ज़्यादा है. जैसे बिहार से 9 लाख, उत्तर प्रदेश से 9.5 लाख तथा राजस्थान से 4.5 लाख आवेदक हैं. इन राज्यों में सीसीटीवी, फ्रिस्किंग, मेटल डिटेक्टर आदि की सुविधा वाले उपयुक्त परीक्षा केंद्रों की संख्या इतनी नहीं है. यह भी उल्लेखनीय है कि इन तीन राज्यों के जिन अभ्यर्थियों ने शुरुआत में आवेदन किया है उन्हें निकट के केंद्र मिले हैं, जबकि जिन्होंने बाद में आवेदन किया है उनको दूर के केंद्र आवंटित हुए हैं.

31 मार्च तक परीक्षा फार्म की अंतिम तारीख थी. क्या इस दौरान भरे गए फार्म को पहले या अंत में भरने के आधार पर अंतर किया जा सकता है. रेलवे ने कहा है कि यह ध्यान रखा गया कि उन्हें बेहतर यातायात सुविधा वाले मुख्य शहरों में ही परीक्षा केंद्र आवंटित किए जाएं. क्या रेलवे ने वाकई इसका ध्यान रखा है. बिहार के सारण ज़िले के छात्रों का सेंटर पड़ा है तिरुपति. एक छात्र से बात की आप भी उसके ट्रेन का कार्यक्रम सुन लीजिए. हमने सुविधा के लिए इनका नाम मोहन रख दिया है. मोहन की परीक्षा 21 अगस्त को है. अगर उसे पटना से तिरुपति के लिए जाने वाली एर्नाकुलम एक्सप्रेस लेना होगा तो 14 अगस्त का टिकट लेना पड़ेगा. क्योंकि पटना से एर्नाकुलम एक्सप्रेस सप्ताह में सिर्फ मंगलवार को चलती है. उसका इम्तहान मंगलवार को ही है तो उसे नए सिरे से प्लान बनाना पड़ा है. वह 18 अगस्त को सीवान से पटना के लिए निकलेगा, बस से 8-9 घंटे लग जाते हैं. 18 अगस्त की शाम पटना से कोलकाता के लिए रवाना होगा. कोलकाता पहुंच कर 8 घंटे तिरुपति के लिए ट्रेन का इंतज़ार करेगा जो रविवार को चलेगी. 19 अगस्त को कोलकाता से रवाना होकर 20 अगस्त यानी सोमवार रात 8 बजे पहुंचेगा. इस तरह मोहन 37 घंटा सफर में रहेगा और प्लेटफार्म पर 8 घंटा इंतज़ार करेगा. कुल मिलाकर 18 अगस्त से लेकर 20 अगस्त के बीच 45 घंटे सफर में लगेंगे. जनरल बोगी का टिकट लिया है, एक तरफ से किराया 1200 के करीब लगेगा.

अगर आप इस तरह से देखेंगे तो रेलवे का यह दावा सही नहीं जान पड़ता कि छात्रों को बेहतर यातायात सुविधा वाले मुख्य शहरों में ही परीक्षा केंद्र आवंटित किए गए हैं. ट्रेन देर हो गई तो उसका तनाव अलग से झेलेगा. मोहन के पिता खेती करते हैं. तीन दिन और तीन से चार हज़ार खर्च कर परीक्षा सेंटर पहुंचना मोहन जैसे लाखों छात्रों के लिए आसान नहीं है. रेलवे के ही हिसाब से ऐसे छात्रों की संख्या 8 लाख है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक इन छात्रों के लिए रेल मंत्री से बात नहीं की है. रेलवे ने ये समझ लिया है कि ये समस्या सिर्फ बिहार की है इसलिए बिहार को लेकर जवाब दिया है. जबकि हमें यूपी और राजस्थान के छात्रों की भी शिकायतें मिली हैं.

कुल 26502 रिक्तियों में से केवल 2292 रिक्तियां बिहार की हैं जबकि 24210 रिक्तियां भारत के अन्य क्षेत्रों की हैं. बिहार के अभ्यर्थियों ने इन 2292 रिक्तियों के अतिरिक्त देश के अन्य रेल भर्ती बोर्ड की रिक्तियों हेतु भी आवेदन किया है इसलिए उन्हें उपलब्धता के अनुसार अन्य राज्यों के परीक्षा केंद्रों में भी आवंटित किया गया है.

ऑनलाइन परीक्षा का मतलब कम से कम अपने राज्य के भीतर तो होनी ही चाहिए. 9 लाख छात्र अगर इस तरह से सफर कर परीक्षा देने पहुंचेंगे तो उन पर क्या बीतेगी. शनिवार और रविवार को बड़ी संख्या में छात्र हमें फोन करते रहे. वे रोने लगे. बताने लगे कि काफी गरीब हैं, उनका इम्तहान छूट जाएगा जिसके इंतज़ार में वे चार चार साल से हड्डी गला रहे हैं. हड्डी गलाना मतलब परीक्षा के लिए मेहनत कर रहे हैं.

बहुत से लोगों ने कहा कि सबके पास 2000 से 3000 रुपये हैं. यह बताता है कि हम लोगों के प्रति कितने असंवेदनशील हो गए हैं. हमने कई छात्रों से बात की. एक छात्र के पिताजी एटीएम में गार्ड हैं. क्या उन्हें इतना पैसा मिलता होगा कि बेटा चार हज़ार खर्च कर इम्तहान देने जा सके. बहुत से छात्र ट्यूशन पढ़ाकर काम चलाते हैं. बहुतों के मां बाप महीने में सात आठ हज़ार ही कमा पाते हैं. इनके लिए 3000 रुपया बहुत है.

आरा शहर में कई छात्र गांव गांव से आकर ग्रुप स्टडी करते हैं. कई छात्र 8 से 10 किमी साइकिल चला कर यहां आते हैं ताकि किराये का 20 रुपया बच जाए. ये अमीर घर के बच्चे होते तो यहां मैदान में मच्छर मक्खी से कटवाते हुए तैयारी के लिए नहीं जमा होते. यह रेवेलगंज छपरा की तस्वीर है. यहां भी छात्र कई किमी से आकर सामूहिक अध्ययन करते हैं. 7 से 10 किमी साइकिल चलाकर आना और पढ़ना. इन सबकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि पांच पांच हज़ार खर्च कर इम्तहान देने जा सकें.

आपको यकीन न हो तो इस नीली कमीज़ को देखिए. ये एटीएम गार्ड की कमीज़ है जिसे महीने का 3500 मिलता है. बताइये कि इसका बच्चा 4000 खर्च कर बंगलुरू जा सकता है. एक बात सोचिए तो सही कि वो इस वक्त कितना तनाव में होगा. दो दिन की यात्रा है उसे टिकट नहीं मिला है.

ये कुछ घरों की तस्वीर है जिससे आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि छात्र किन घरों से आते हैं जो रेलवे की परीक्षा देने जा रहे हैं. किसी को टिकट नहीं मिल रहा है तो किसी को रिज़र्वेशन नहीं मिल रहा है. कम से कम महानगरों के दर्शक और सांसद मुख्यमंत्री अंदाज़ा करें कि ग़रीब घर के छात्रों पर इम्तहान देने के लिए पैसे का भार क्यों डाला जा रहा है.

मैं तो गणित में कमज़ोर हूं मगर शिवांक ने हिसाब लगाया कि 4 लाख भी इम्तहान देने नहीं जा सके तो 100 रुपए फार्म भरने के हिसाब 16 करोड़ की कमाई हो सकती है.

आठ लाख छात्र परेशान हो गए हैं. ये संख्या रेलवे के हिसाब से है. बहुत से छात्र जिनके फार्म अजीब अजीब कारणों से रिजेक्ट हो गए हैं वो फोन करके रोने लगते हैं कि उनके चार साल बर्बाद हो गए. रेलवे ने आज जो प्रेस रीलीज जारी की है उसमें कहीं भी नहीं लिखा है कि परीक्षा सेंटर बदलने के विकल्प दिए जाएंगे. इसलिए छात्र इधर उधर की जानकारियों पर ध्यान न दें. अभी तक यही सूचना है कि रेलवे ने उनका सेंटर बदलने का कोई फैसला नहीं किया है.

सुदीप सामंत ने रेल मंत्री को ट्वीट किया है कि वे बंगलुरू के रहने वाले हैं मगर उनका सेंटर कोलकाता दिया गया है. यह कैसे हो गया है. इस दूसरे ट्वीट में अविनाश ने रेलमंत्री को कहा है कि वे बंगलुरु में रहते हैं मगर परीक्षा का केंद्र भोपाल दे दिया गया है. कृपया सेंटर बदलने की सुविधा दीजिए. चंडीगढ़ के कृष्णा कुमार ने रेल मंत्री को ट्वीट किया है कि उनका सेंटर 1600 किमी दूर कोलकाता दे दिया है. सौरभ सिंह ने ट्वीट किया है कि भुवनेश्वर के छात्र का सेंटर गुजरात पड़ा है, अच्छा होता न्यूयार्क भेज देते. राजस्थान सीकर के कुमार अशोक का सेंटर अमृतसर दे दिया है. नवीन ने ट्वीट किया है कि दिल्ली के रहने वाले हैं मगर उड़ीसा सेंटर पड़ा है. ऑनलाइन का क्या मतलब हुआ.

इसलिए इस समस्या को बिहार केंद्रित बताना ठीक नहीं लगता है. बंगलुरु के छात्र को भोपाल देने का क्या मतलब है. चंडीगढ़ वाले को कोलकाता देने का क्या मतलब है. शिवांक ने इतनी मदद न की होती तो रेलवे के जवाब को लेकर इतने सवाल नहीं उठते. रेलवे अगर अपने फैसले पर कायम है तो उसकी अपनी समझ होगी, मगर जो परेशानी हम तक पहुंच रही है उससे हमें यही लगता है कि ग़रीब छात्रों के साथ मज़ाक हो रहा है. चार-चार साल बाद इम्तहान देने का मौका आया है और वो भी इम्तहान देने के लिए हफ्ता भर पहले घर से निकलना पड़े ता फिर उनकी परेशानी को नोटिस में लेना चाहिए. कम से कम रेल मंत्री को अपना ट्विटर हैंडल चेक कर लेना चाहिए. यही नहीं रेलवे के परीक्षार्थी पूछ रहे हैं कि जिन्होंने 500 रुपये फार्म के भरे थे उनका 400 रुपया कब वापस मिलेगा. आपको याद होगा कि पहले फार्म की कीमत 500 रखी गई थी लेकिन जब हमने प्राइम टाइम में सवाल उठाया कि आईएएस के इम्तहान वाले यूपीएसएस की फार्म 100 रुपये का है और ग्रुप डी के इम्तहान का फार्म 500 का तो यह नाइंसाफी है. रेलवे ने तुरंत 100 रुपया कर दिया और कहा कि बाकी 400 रुपये वापस होंगे. आज तक वापस नहीं हुए.

हमने उन छात्रों की आर्थिक स्थिति बताई ताकि रेल भवन में बैठे अधिकारी और दर्शक दोनों देख लें कि रेलवे की परीक्षा कौन लोग देते हैं. वे कहां रहते हैं, उनके परिवारों की आर्थिक बनावट कैसी है.

मथुरा के पास राधा कुंड रेलवे स्टेशन है. एक महीना पहले यह स्टेशन चालू हुआ था. 15 करोड़ की लागत से यह स्टेशन बना था मगर 30 दिन भी नहीं टिक सका. बारिश का बहाना बनाया जा रहा है मगर इस हिसाब से तो इस देश में क्या क्या नहीं धंस जाना चाहिए बारिश के दिनों में. एक महीने के भीतर स्टेशन धंस जाए, क्या यह सामान्य घटना है. छोटा सा स्टेशन है मगर इसका फर्श धंस गया है. बेंच जहां रखी है वहां का पूरा फर्श धंस गया है. सीढ़ियां धंस गई हैं. दीवारों में दरार पड़ गई है. प्लेटफार्म धंस जाए ऐसा कैसे हो सकता है. ठेकेदार ने कितना माल बना लिया होगा. बारिश से धंसा है तो क्या उसे नहीं पता था कि भारत में बारिश होती है. स्टेशन के भीतर के दीवारों की तस्वीरें देख लीजिए. सीलन है और दरारें आ गई हैं. हमारे सहयोगी मुकुल गौतम राधाकुंद स्टेशन गए. स्थानीय मीडिया में आने के बाद फ्लेटफार्म पर धंसी हुई फर्श को उखाड़ कर फिर से काम होने लगा था. मुकेश को जो दिखा वो धंसने के बाद काम होने की तस्वीरें हैं.

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 1400 छात्र 23 जुलाई से प्रदर्शन कर रहे हैं. इन छात्रों का कहना है कि इनके साथ धोखा हुआ है. एडमिशन के वक्त वेबसाइट पर, प्रोस्पेक्टस पर हर जगह लिखा था कि यह कोर्स फुल टाइम है. 2014-15, 2015-17 और 2016-17 का तीन साल इसी मुग़ालते में गुज़र गया कि हमने तो बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया है और डिग्री मिलेगी.

लेकिन आखिरी साल में बताया जाता है कि उनका कोर्स AICTE से पार्ट टाइम है. छात्रों की बात सही है कि फिर इन्हें यूनिवर्सिटी की तरफ से ग़लत सूचना क्यों दी गई कि कोर्स फुल टाइम है. पार्ट टाइम बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री डिग्री नहीं मानी जाती और इसकी कहीं मान्यता नहीं है. एक तरह से इन छात्रों का भविष्य बर्बाद होने के कगार पर पहुंच गया है. इनके प्रदर्शन के कारण नए एडमिशन के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा तो रद्द हो गई है मगर ये छात्र अपनी ज़िंदगी को बचाने का रास्ता देख रहे हैं. 7 दिनों से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. कैंपस में पुलिस भी बुला ली गई है. छात्रों का कहना है कि जब तक इनकी मांग पूरी नहीं होगी, फुल टाइम डिग्री नहीं मिलेगी, तब तक एक एक छात्र भूख हड़ताल करने लगेंगे. छात्रों का कहना है कि उन्हें पता नहीं था कि पार्ट टाइम है. जब एक सीनियर की नियुक्ति BENGAL ELECTRICITY BOARD में हुई तब उन्हें नौकरी नहीं दी गई क्योंकि कहा गया कि आपका कोर्स AICTE से पार्ट टाइम मंज़ूर है. छात्रों ने यूनिवर्सिटी से सवाल पूछना शुरू कर दिया. जब जवाब नहीं मिला तो आंदोलन पर उतर आए. 1400 छात्रों की ज़िंदगी दांव पर है. यहां पर पांच ब्रांच है जिसके लिए जामिया अलग से प्रवेश परीक्षा लेती है. कई साल से यह कोर्स चल रहा है मगर अब दिक्कतें आने लगी हैं खासकर 2005 से जब अदालत ने पार्ट टाइम कोर्स की मान्यता रद्द कर दी थी. जो छात्र पुराने हैं और नौकरी कर रहे हैं उन्हें भी नौकरी में इसकी डिग्री के कारण दिक्कत आ रही है.

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