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This Article is From Jun 07, 2024

बढ़ रहा है रात की जगह दिन में शादी का ट्रेंड, पर इसके नफा-नुकसान क्या...?

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 14, 2024 17:15 pm IST
    • Published On जून 07, 2024 14:36 pm IST
    • Last Updated On जून 14, 2024 17:15 pm IST

ऐसी रिपोर्ट है कि भारत समेत दुनिया के कई देशों में रात की जगह दिन में शादी का ट्रेंड बढ़ रहा है. हालांकि अपने देश में इसके बढ़ने की रफ्तार थोड़ी धीमी है. सवाल है कि दिन में शादी का चलन बढ़ने के नफा-नुकसान क्या-क्या हो सकते हैं? इस संवेदनशील मसले पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है.

विवाह और आपके सितारे

अपने यहां शादी-विवाह के लिए शुभ मुहूर्त और लग्न देखने की परंपरा रही है. यह लग्न दिन या रात, कभी के हो सकते हैं. इसमें कोई बंदिश नहीं है. फिर लोग विवाह के लिए ज्यादातर रात का ही लग्न क्यों चुनते हैं? एक कारण यह बताया जाता है कि नए जोड़े को ध्रुवतारा देखना होता है. रस्म है. तारा देख लेंगे, तो रिश्ता स्थिर रहेगा, टिकाऊ रहेगा. लेकिन यह बात समझ से परे है कि तारा रात में ही देखने की जिद क्यों? सुधीजन और भुक्तभोगी बताते हैं कि एक बार सात फेरों के लिए कदम उठ गए, तो तारे दिन में भी नजर आने लगते हैं! इसमें घबराने की कोई बात नहीं. सूर्य भी तो तारा ही है. इस लिहाज़ से दिन में शादी का आइडिया भी बुरा नहीं है.

बचत की चतुराई

दिन में विवाह के पक्ष में और कौन-कौन सी बातें हैं? एक बात तो यह समझ में आती है कि दिन में आयोजन करने से पैसे की बचत होती है. मैरिज हॉल दिन में थोड़े सस्ते रहेंगे, जबकि रात में महंगे. लाइटिंग-वाइटिंग और सजावटी चीजों का बिल भी कम आएगा. मेहमान भी दिन में आएंगे और शाम तक सरक लेंगे. सबका समय भी बचेगा. लेकिन इन फायदों की एक सीमा है. फायदे तभी तक मिलेंगे, जब तक ज्यादातर लोग रात वाला आयोजन चुनते रहें और कुछ चतुर-सुजान लोग दिन वाला. अगर सारे लोग दिन वाला ऑप्शन ही चुनने लग गए, तो फिर दिन वाला रेट ऊपर भागेगा कि नहीं? मतलब, नफा-नुकसान घुमा-फिराकर कई चीजों पर डिपेंड करता है.

ब्रह्म-मुहूर्त की शादियां

कई जगहों पर, खासकर दक्षिण भारत में दिन में शादी का ट्रेंड पहले से ही है. सो, वहां के लिए यह कोई नई बात नहीं. सुबह शुरू होकर दोपहर तक सारी रस्में पूरी हो जाती हैं. हालांकि रात की शादियों में भी वर-वधू पर पुष्प और अक्षत की वर्षा होते-होते ब्रह्म-मुहूर्त हो ही जाता है. इस बिंदु पर दोनों विवाह एक जैसे दिखते हैं. हालांकि, इतना फर्क जरूर है कि दिन में जोड़े पूरे होश-ओ-हवास में संग-संग चलना स्वीकार करते हैं. दूसरी ओर, रात की शादियों में जब तक होश लौटता है, तब तक देर हो चुकी होती है! इसे आप रात की शादियों का डिसएडवांटेज मान सकते हैं.

पहले इस तरह की घटनाएं अक्सर होती थीं. अब काफी कम हो गई हैं. दिखाया रीता को, रात में मंडप पर पहुंचाया गीता को. एक बार गठबंधन हो जाने के बाद यहां पलटने की गुंजाइश थोड़े न रहती है! पहले एक और बड़ी दिक्कत थी. जब पर्दा और पर्दे का लिहाज ज्यादा था, तो कई बार गलती से भी गलती हो जाया करती थी. आपादमस्तक कपड़ों से ढकी दुल्हन, ऊपर से बेहिसाब मेकअप, और रात-रातभर जागने से बेहाल बाराती. नतीजा - दुल्हनों की अदला-बदली. कभी रेलवे प्लेटफॉर्म पर, कभी बस स्टैंड पर. खैर, माना जा सकता है कि जब दिन की शादियों में इजाफा होगा, तब इस तरह की भूलें शून्य होंगी. भरोसा बढ़ेगा.

कला-संस्कृति पर असर

डे-टाइम वेडिंग का बैंड-बाजा और बारात पर भी असर देखा जाना चाहिए. एक बात तो यह कि दिन के उजाले में बारातियों के बीच मदिरा जैसी चीजों की खपत घटकर शायद चौथाई से भी कम रह जाए. अगर ऐसा हुआ, तो फिर सरकारी अमलों को राजस्व की भरपाई के दूसरे तरीके निकालने होंगे. दूसरे, ऐसा देखा गया है कि मदिरा-मुक्त अवस्था में दिल की बात, सच्ची बात जुबां पर आ ही नहीं पाती. ऐसे में भरी सभा में सत्य को मौन भी होना पड़ सकता है, पराजित भी. नैतिक दृष्टि से इसमें बड़ी हानि है.

एक और चिंता यह है कि दिन के उजाले में कहीं नागिन डांस की कला को सांप न सूंघ जाए! आज तक कितने ही तरह के डांस आए और गए, पर इसका कोई जवाब नहीं. शरीर को लोचदार बनाए रखने का जतन और फर्श की मुकम्मल साफ-सफाई का अद्भुत इंतजाम और कहां? दिन में बारातियों के बीच ऐसे वीर जवानों की, अलबेलों की, मस्तानों की जरूरत महसूस की जाएगी, जो नागिन डांस को नया जीवन दे सकें.

कुछ बुनियादी सवाल

दिन या रात की शादी के चक्कर में कुछ बुनियादी सवाल ही छूटे जा रहे हैं. इन्हें इशारों-इशारों में समझा जाना चाहिए. समाज-शास्त्र में विवाह को एक संस्था माना गया है. एक सभ्य समाज में इस संस्था की मजबूती पर बल दिया जाता है. तो इन सवालों के ज्यादा गहरे अर्थ मत लगाइए.

आप दिन में चीनी खाएं या रात में, स्वाद में कोई फर्क पड़ता है क्या? कसमें दिन में खाएं या रात में, सच पर कोई असर पड़ता है? आग से दिन में खेलें या रात में, क्या फर्क पड़ता है? कुल्हाड़ी पर पैर दिन में मारें या रात में, कोई रियायत मिलती है क्या? कहने का मतलब यह है कि शादी चाहे दिन में हो या रात में, क्या फर्क पड़ता है? दोनों ही स्थितियों में विवाह नाम की संस्था मजबूत होती है!

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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