मैं इस समय आईटीओ पर एक चाय की दुकान पर बैठा हूं...दुकान पर ही एक शख्स बड़ी ही ठेठ भोजपुरी में बिहार अपनी पत्नी से फोन पर बात कर रहा है.... उसकी आवाज में दिल्ली की भाग-दौड़ से दूर, घर लौटने की एक गहरी उम्मीद दिखती है. वो कह रहा है कि बिहार में अब मोदी-नीतीश की सरकार ही बन रही है. सुनो,बिजली तो फ्री ही है... नीतीश जी रोजी-रोजगार के लिए भी पैसा देंगे.. अब हम भी छोटा-मोटा काम शुरू कर लेंगे, और फिर गांव में ही रहेंगे...वहीं ना होगा तो मिलकर दुकान चलाया जाएगा.
बातचीत के दौरान वो थोड़ी देर रूकता है और फिर लंबी सांस लेकर कहता है- 'ये लोग (एनडीए) रहेंगे तो कानून व्यवस्था भी सही रहेगी. मन में डर नहीं रहेगा.' यह बातचीत किसी चुनावी विशेषज्ञ का विश्लेषण नहीं है, बल्कि बिहार के उस आम निवासी की सोच को दर्शाती है, जिसकी मेहनत की कमाई पर सरकारी योजनाओं का सीधा असर पड़ता है. सुरक्षा, मुफ्त बिजली, और स्वरोजगार के लिए सीधी आर्थिक सहायता - यही वह तीन-सूत्री एजेंडा था जो एनडीए की जीत की चाबी साबित हुआ.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का जनादेश राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के पक्ष में एक ऐतिहासिक और निर्णायक राजनीतिक घटनाक्रम है. एनडीए 200 से अधिक सीटों के साथ प्रचंड जीत की ओर अग्रसर है, जो गठबंधन की अभूतपूर्व सफलता को दर्शाता है. इस जीत को सीटों की संख्या तक सीमित करके नहीं देख सकते. एनडीए की जीत के बहुत विश्लेषणात्मक मायने हैं.
एनडीए की जीत के केंद्र में महिला मतदाताओं का अभूतपूर्व और केंद्रित समर्थन और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) तथा उसके सहयोगियों का प्रभावी संगठनात्मक प्रबंधन भी शामिल है. 1951 के बाद दर्ज किए गए 67.13% के रिकॉर्ड उच्चतम मतदान में, महिला मतदाताओं की भागीदारी (71.78%) ने पुरुषों (62.98%) की तुलना में लगभग 8.80% अधिक मतदान करके एनडीए की जीत को सुनिश्चित किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला-केंद्रित योजनाओं, विशेष रूप से मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत चुनाव से ठीक पहले 10,000 रुपये की सीधी सहायता का हस्तांतरण, इस निर्णायक समर्थन का हालिया सबसे बड़ा कारण थी.
बिहार विधानसभा चुनाव: ऐतिहासिक मतदान दर तुलना (1951–2025)
चुनाव वर्ष कुल मतदान प्रतिशत पुरुष मतदान प्रतिशत महिला मतदान प्रतिशत अंतर (महिला-पुरुष)
2025 67.13% 62.98% 71.78% +8.80%
2020 57.53% 55.48% 59.90% +4.42%
1951 39.52% 45.10% 33.94% -11.16%
(स्रोत: ईसीआई, पीआईबी और संबंधित चुनाव डेटा)
अप्रत्याशित परिणाम, विश्लेषक हैरान
पारंपरिक चुनावी विश्लेषण में, उच्च मतदान दर (विशेषकर 60% से ऊपर) को अक्सर सत्ता-विरोधी लहर (anti-incumbency) या सत्ता परिवर्तन की इच्छा का संकेत माना जाता है. इतिहास में, जब भी बिहार में मतदान 60% से अधिक रहा (जैसे 1990, 1995 और 2000 में), तब या तो सत्ता बदल गई या त्रिशंकु परिणाम सामने आए. यदि 2025 में यह बढ़ा हुआ मतदान परिवर्तन की तीव्र इच्छा को दर्शाता, तो परिणाम या तो महागठबंधन के पक्ष में एक निर्णायक जनादेश होता या फिर अस्थिरता लाने वाली त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती, जहां दोनों बड़े गठबंधन 100 से 115 सीटों के बीच अटक जाते और छोटे दल किंगमेकर बन जाते. शायद इसी गुणा गणित के आधार पर जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर अपनी पार्टी को कई दफा किंगमेकर कहते भी रहे हैं.
चूंकि अब तस्वीर साफ हो चुकी है तो यह कहा जा सकता है कि इस बार बढ़ा हुआ मतदान सत्ता-विरोधी लहर के बजाय सत्ता-समर्थक लहर (प्रो-इनकंबेंसी) था. यह अभूतपूर्व भागीदारी विशेष रूप से एनडीए के लाभार्थी आधार, अर्थात युवाओं और महिलाओं में केंद्रित थी. महिला मतदाताओं की अत्यधिक उच्च भागीदारी ने किसी भी संभावित असंतोष या सत्ता-विरोधी वोट को प्रभावी ढंग से ओवरराइड कर दिया. इस प्रकार, बिहार का 2025 का जनादेश इस धारणा को खंडित करता है कि उच्च मतदान हमेशा परिवर्तन का संकेत होता है, और इसके बजाय यह लाभार्थी-आधारित राजनीति की गहरी जड़ें दिखाता है.
महिला मतदाता: एनडीए की विजय का 'तुरुप का इक्का'
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महिला मतदाता एक बार फिर 'तुरुप का इक्का' साबित हुईं. उन्होंने न केवल पुरुषों से अधिक मतदान किया, बल्कि उनकी भागीदारी ने एनडीए की जीत की दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई. महिला मतदाताओं ने रिकॉर्ड 71.78% मतदान किया था, जबकि पुरुष मतदाताओं की हिस्सेदारी 62.98% थी. यह 8.80% का भारी अंतर, जो कि पिछले चुनावों से भी अधिक था. राजनीतिक विश्लेषक भी महिलाओं को 'सीक्रेट वोटर' बता रहे थे, क्योंकि उनकी उच्च भागीदारी ने एक्जिट पोल में एनडीए के लिए प्रचंड जीत (130-165 सीटें) का अनुमान सुनिश्चित किया. महिलाओं ने विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे कई सीटों पर अप्रत्याशित परिणाम सामने आए.
लाभार्थी-केंद्रित योजनाओं का भी कमाल रहा
एनडीए की जीत का श्रेय सीधे तौर पर नीतीश कुमार सरकार की महिला-केंद्रित योजनाओं को जाता है. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत किए गए त्वरित, प्रत्यक्ष और निश्चित लाभ हस्तांतरण (DBT) ने निर्णायक भूमिका निभाई. सितंबर 2025 में नवरात्रि के दौरान, चुनाव से ठीक पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की. इसके तहत 75 लाख महिलाओं में से प्रत्येक के बैंक खातों में एक साथ 10,000 रुपये की सीधी सहायता भेजी गई. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव से महज चंद दिनों पहले महिलाओं के खातों में आए इसी 10,000 रुपये ने 'बड़ा खेल' कर दिया और एनडीए की जीत पर मुहर लगा दी. इस योजना के तहत, महिलाओं को स्वरोजगार शुरू करने के लिए शुरुआती अनुदान के साथ-साथ, सफल होने पर 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त सहायता का भी प्रावधान है.
महागठबंधन ने अपनी 'माई बहन मान योजना' के तहत महिलाओं को प्रतिवर्ष 30,000 रुपये देने का वादा किया था. हालांकि, इस चुनावी मुकाबले में, विपक्षी खेमे द्वारा भविष्य के लिए किए गए बड़े, लेकिन उन वादों के मुकाबले एनडीए का 'त्वरित, प्रत्यक्ष और निश्चित' लाभ (10,000 रुपये DBT) अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ. इसके अतिरिक्त, शराबबंदी, जीविका दीदी समूहों का मजबूत नेटवर्क, और पंचायती राज में 50% आरक्षण जैसी पुरानी योजनाओं ने महिलाओं को केवल 'लाभार्थी' से आगे बढ़कर 'भागीदार' बनाया.
युवा और रोजगार: भविष्य पर केंद्रित नीतियां और चुनावी असर
युवा मतदाताओं की भागीदारी और उनकी आकांक्षाएं बिहार चुनाव 2025 में एक महत्वपूर्ण कारक थीं. राज्य में हर साल चार लाख से अधिक छात्र स्नातक होते हैं. ऐसे में, युवाओं को रोजगार और शिक्षा के लिए दिए गए वादे दोनों गठबंधनों के लिए महत्वपूर्ण थे. नीतीश कुमार की सरकार ने युवाओं को साधने के लिए कई लोक लुभावनी घोषणाएं की. जिसमें ब्याज मुक्त छात्र ऋण से लेकर बेरोजगारी भत्ता और प्रशिक्षण, बिहार युवा आयोग की स्थापना आदि शामिल है.
संगठनात्मक प्रबंधन और रणनीतिक चातुर्य
एनडीए की सफलता को केवल नीतिगत घोषणाओं या लाभार्थी योजनाओं के आधार पर नहीं समझा जा सकता, बल्कि यह बीजेपी के कुशल संगठनात्मक प्रबंधन और रणनीतिक चातुर्य का भी परिणाम है. बीजेपी ने गठबंधन को एकजुट रखने और वोटों के बिखराव को रोकने के लिए सीट बंटवारे पर सावधानीपूर्वक काम किया. गठबंधन सहयोगियों को साधते हुए, लोजपा (रामविलास) और 'हम' को महत्वपूर्ण भागीदार बनाया. गठबंधन के भीतर सहमति बनाने और घोषणापत्र जारी करने में एनडीए ने महागठबंधन की तुलना में अधिक समन्वय और गति दिखाई.
इतना ही नहीं भीतरघात से बचने के लिए भी एनडीए की तत्परता अधिक दिखी. महागठबंधन की तुलना में एनडीए में अधिक भीतरघात देखा गया, जिसका मुख्य कारण सीटों पर अधिक दावेदारी था. बागी और अंदरूनी कलह पारू, मुजफ्फरपुर और कुढ़नी जैसी सीटों पर वोटों के बिखराव का कारण बन सकते थे. इस खतरे को भांपते हुए, बीजेपी ने 'डैमेज कंट्रोल डॉक्ट्रिन' का उपयोग किया. मतदान में केवल तीन दिन शेष रहने पर डैमेज कंट्रोल के प्रयास तेज किए गए, जिसमें प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को झोंक दिया गया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की विजय एक रणनीतिक और संगठनात्मक मास्टरक्लास का परिणाम है. यह जीत संगठनात्मक अनुशासन (कुशल सीट प्रबंधन और बागियों के प्रति शून्य सहिष्णुता) और नीतिगत डिलीवरी (महिला-केंद्रित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का समय पर निष्पादन) का नायाब उदाहरण है. परिणाम यह भी बताते हैं कि महिलाओं का सशक्तिकरण अब केवल सामाजिक न्याय का विषय नहीं, बल्कि बिहार में निर्णायक राजनीतिक सत्ता का आधार बन चुका है.