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This Article is From Aug 01, 2015

राजीव रंजन : आने वाले खतरे की चेतावनी दे गया पंजाब का हमला

Reported By Rajeev Ranjan
  • Blogs,
  • Updated:
    अगस्त 01, 2015 21:32 pm IST
    • Published On अगस्त 01, 2015 21:19 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 01, 2015 21:32 pm IST
करीब बीस सालों के बाद पंजाब में हुए आतंकी हमले ने सबकी कलई खोलकर रख दी। कलई इसलिए अगर आतंकी अपने नापाक मंसूबे में कामयाब हो जाते तो मरने वालों की तादाद कहीं ज्यादा होती। इस हमले में कुल नौ लोगों की मौत हुई है। केवल तीन आतंकी सीमा पार कर दाखिल हुए और उन्हें मारने में 11 घंटे से ज्यादा लगे। वो भी तब जब मुठभेड़ खाली घर में चल रही थी।

मुठभेड़ ज्यादा देर तक खिंच जाने पर तर्क दिया गया कि पुलिस आतंकियों को जिंदा पकड़ना चाहती थी लेकिन इतने ही पूरा पंजाब इस भयानक हमले से दहल उठा। दहलना स्वभाविक भी था क्योंकि पंजाब आतंकवाद के उन भयानक दिनों को लगभग भुला चुका था जिसमें हजारों लोग मौत के घाट उतार दिये गये थे। ताज्जुब तब और ज्यादा हुआ जब देश के गृह मंत्री ने इस ऑपरेशन पर न केवल पंजाब पुलिस की सराहना की बल्कि बधाई भी दी। तर्क ये दिया गया कि दुनियाभर में ये मैसेज देना चाहिए कि हम आतंकवाद को मुद्दे पर एक हैं। किसी ने भी इस कार्रवाई की समीक्षा करने की जरूरत नहीं समझी।

वैसे ये हमला न तो पहला था और न ही आखिरी। पर इससे कैसे निपटा गया? क्या आतंकियों से ऐसे निपटेंगे? ये कोई गुत्थम गुत्था की लड़ाई तो है नहीं कि आमने सामने आकर फैसला कर लिया जाए। अगर किसी ने आतंकियों से मुठभेड़ के वक्त का वीडियो देखा हो तो इसका अंदाजा हो जायेगा। केवल पुलिस के SWAT कमांडो को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई आतंकियों से लड़ने के लिये फिट था, न तो शारीरिक तौर पर, न ही मानसिक और न ही हथियार से।

पंजाब पुलिस के कुछ जवान तो आतंकियों को ललकार रहे थे कि सामने आकर लड़ो। जबकि वो खुद न तो बुलेट प्रूफ जैकेट पहने थे और न ही बेहतर तरीके से कवरअप थे। आतंकी जिस बिल्डिंग में छिपकर फायरिंग कर कर रहे थे वो खाली थी और उसमें जो जवान थे उसे आतंकियों ने मार दिया था। एक आतंकी को शुरू में ही मार दिया गया और दूसरा ग्रेनेड के पिन निकालते वक्त खुद मारा गया। बस एक आतंकी वो भी घायल फिर उसे मारने में कई घंटे लग गए।

पंजाब पुलिस के जवान बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर क्यों नहीं आतंकियों से लड़ रहे थे, इस बारे में पंजाब पुलिस के डीजीपी कहते हैं 150 जैकेट गाड़ी में ऱखे थे लेकिन ये पंजाब पुलिस के जवान हैं। अब आप खुद ही सोचिए ये उनकी नादानी है, बेवकूफी है या फिर गैर पेशेवर रवैया। आपके सामने खड़ा दुश्मन एके-47 से फायर कर कर रहा है और केवल थ्री नॉट थ्री राइफल, बिना बुलेट प्रूफ जैकेट के सहारे बहादुरी दिखा रहे हैं।

पता नहीं अब जबकि ऑपरेशन खत्म हो गया है तो ये मानने में क्या बुराई है कि पंजाब पुलिस के पास उस वक्त वैसे हथियार नहीं थे जिससे वो आतंकी से मुकाबला कर पाते। यही वजह रही कि ये मुठभेड़ इतनी लंबी खींची। हालांकि हमला होने के कुछ देर बाद सेना के स्पेशल फोर्स के जवान पहुंच गये थे लेकिन पंजाब पुलिस ने इनका इस्तेमाल नहीं किया। अगर थोड़ा पीछे जाएं तो जब मुंबई में भी आतंकी हमला हुआ था तो उनके पास भी न तो ऐसे प्रशिक्षित जवान थे और न ही हथियार जो आतंकियों से मुकाबला कर पाते। पंजाब भी इससे अछूता थोड़ी है। हो सकता है इस आतंकी हमले के बाद संभल जाए और जवानों की ट्रेनिंग और हथियार पर ध्यान दे, ताकि वो फिर हर तरह से आतंक का मुकाबला कर सकें।

वैसे फिलहाल इस पर सिर्फ अंदाज ही लगाया जा रहा है कि आतंकियों का मकसद क्या था। पर एक बात जरूर इन अंदाजों से निकल कर आती थी कि सीमा पर की जाने वाली तारबंदी भी आतंकियों की घुसपैठ को रोक नहीं पा रही है। यूं तो पाकिस्तान से लगे इंटरनेशनल बॉर्डर पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता का दावा लगातार बीएसएफ करती रही है पर नदी नालों के रास्तों से आने वाले आतंकी इन दावों की समय समय पर धज्जियां जरूर उड़ा रहे हैं। हर जगह बाड़ नहीं लगी हुई है, खासकर जहां पर नदी और नाले हैं।कहने को आर्टिफिसियल आब्सटेकल (कृत्रिम बाधाएं) जरूर हैं पर वो ज्यादा कारगार नहीं हैं।

जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर पुलिस चौकियों, वाहनों और सैनिक ठिकानों पर हुए आतंकी हमलों की जांच में एक ही बात सामने आई कि सभी हमलावर हमारी सुरक्षा की खामियों का लाभ उठाकर इस ओर घुसे थे। जम्मू की तरह यहां पहले बीएसएफ ये मानने को तैयार नहीं थी कि इंटरनेशनल बॉर्डर से होकर आतंकी घुसे। बाद में जब जीपीएस से खुलासा हुआ तब जाकर वो माने कि आतंकी आईबी से होकर पंजाब में आये थे।   

ध्यान रहे आतंकियों की बदकिस्मती थी और गुरदासपुर के लोग खुदकिस्मत रहें कि आतंकियों के नापाक मंसूबे कामयाब नहीं हो सके वरना नुकसान इससे कहीं ज्यादा होता। ये खतरा टला तो इसका क्रेडिट बस ड्राइवर नानकचंद और किसान सतपाल को जाता है। नानकचंद ने आतंकियों के बस रुकवाने पर बस नहीं रोकी और भगा ले गया। उस हालात में जबकि उस पर फायर हुआ, बावजूद इसके वो डरा नहीं और ना ही घबराया, जिससे बस में बैठे 76 लोगों की जान बच गई। ऐसे ही सतपाल ने रेलवे ट्रैक पर बम देखा और फिर किसी तरह ट्रेन रुकवाई गई जिससे 9 भीड़ भाड़ भरे डब्बे में बैठे सैकड़ों लोगों को खरोंच तक नहीं आई।

खतरा अभी टला नहीं है। पंजाब में हमलों की शुरूआत करने वाली ताकतों के लिए पंजाब एक कमजोर लक्ष्य (सॉफ्ट टारगेट) साबित हो सकता है। पंजाब में आतंकवाद के फिर बढ़ते कदमों को रोकना वहां की सरकार के हाथ में है। इसके लिए वहां के सभी राजनीतिक दलों को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर दुश्मन की नापाक रणनीति का मुंहतोड़ उत्तर देना होगा वरना पंजाब बीस साल पहले आतंकवाद के जिस रास्ते से मुड़ कर विकास के रास्ते पर चला रहा है वह फिर दो दशक पहले के दौर में जाकर खड़ा हो जाएगा।

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