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This Article is From Aug 09, 2019

कश्मीर पर कलंक, कांग्रेस शनिवार को फिर कर सकती है अपना नुकसान

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 09, 2019 00:05 am IST
    • Published On अगस्त 09, 2019 00:05 am IST
    • Last Updated On अगस्त 09, 2019 00:05 am IST

यदि भारत में कोई अभी भी नतीजों में रुचि रखता है, तो कांग्रेस अंततः आने वाले शनिवार को यह तय कर सकती है कि उसका अगला अध्यक्ष कौन होगा जो कि राहुल गांधी की जगह लेगा. राहुल गांधी लगभग तीन महीने पहले पद छोड़ चुके हैं.

कांग्रेस कार्यसमिति या सीडब्ल्यूसी, जो कि पार्टी की ओर से सभी निर्णय लेती है, की शनिवार को बैठक होगी. इसमें इस बात पर विचार हो सकता है कि कौन पार्टी प्रमुख के लिए योग्य हो सकता है. इसमें बड़े पैमाने पर ऐसे नेता शामिल हैं, जिन्होंने 30 साल पहले चुनाव लड़ा था. सीडब्ल्यूसी सूत्रों के अनुसार, अगले नेता के चुनाव के लिए नेताओं के एक समूह का गठन किया जाएगा. इसमें किसी उम्मीदवार के नाम पर सहमति बन सकती है. मारकाट वाले आंतरिक चुनावों से बचने के लिए आम तौर पर एक मजबूत राजनीतिक दल के लिए यही एक आदर्श तरीका होगा. लेकिन जब हम कांग्रेस के बारे में बात कर रहे हैं, तो वरिष्ठ नेताओं के एक छोटे ग्रुप ने पूर्व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को बता दिया है कि इस चुनाव से पार्टी विभाजित हो सकती है.

पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल वरिष्ठ नेता 59 वर्षीय मुकुल वासनिक के लिए काम कर रहे हैं, जिन्होंने आखिरी बार 2009 में महाराष्ट्र के रामटेक से चुनाव जीता था. वासनिक का मुख्य प्लस पॉइंट यह है कि वे अनुसूचित जाति के नेता हैं, जो न केवल योग्य हैं बल्कि गांधी परिवार के बाद पार्टी पर अपनी पकड़ बरकरार रखने की भूमिका निभाने के लिए उत्सुक भी हैं. वासनिक पार्टी में उन यथास्थितिवादियों के उम्मीदवार हैं, जो कि परिवर्तन से डरते हैं. उन्हें लगता है कि परिवर्तन उनके अपने राजनीतिक करियर को चौपट न कर दे. वे आदर्श रूप में गांधी परिवार के सदस्य की तरह हैं जो कि महल के दरबार में ही फलते-फूलते बने रहना चाहते हैं.

राहुल गांधी का समर्थन करने वाले बहुत से नेताओं का कहना है कि वे पार्टी में वास्तविक में ऐसा परिवर्तन चाहते हैं जो पार्टी को पुनर्जीवित कर सके. एक महत्वाकांक्षी युवा नेता जो कि अध्यक्ष के रूप में चुना जाना चाहेगा, ने मुझसे कहा, "अगर वे फिर से ढर्रे पर चलते हुए वासनिक को नियुक्त करते हैं, तो पार्टी विभाजित हो जाएगी. वे चुने हुए नेताओं से क्यों डरते हैं? वे क्यों अस्थाई व्यवस्था चाहते हैं?"

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यह भी एक तथ्य है कि गांधी परिवार के बीच गहरी पैठ रखने वाले पार्टी के युवा महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया अनपेक्षित रूप से रैंक को तोड़ा और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के सरकार के फैसले का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया. यह पार्टी की लाइन से हटकर था.

पार्टी के कुछ नेता मान रहे हैं कि जिन लोगों ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत किया, जिसमें मिलिंद देवड़ा, दीपेंद्र हुड्डा, जनार्दन द्विवेदी और अभिषेक मनु सिंघवी शामिल हैं, वे भाजपा में नौकरी के लिए आवेदन कर रहे हैं. मैंने कुछ युवा नेताओं से इस बारे में बात की. उनमें से एक ने पूछा "मैं चुनाव लड़ रहा हूं, मैं 40 साल का हो गया हूं, क्या मुझे अपना भविष्य लिखना चाहिए, क्योंकि पार्टी तो अपना मन नहीं बना सकती?" उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि पार्टी ने कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीनने के मामले में एकजुट प्रतिक्रिया के लिए कोई तैयारी नहीं की, जबकि वास्तव में व्हाट्सएप द्वारा संचालित पूरे देश को पता था कि मोदी सरकार ने क्या योजना बनाई है.

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जाहिर है, जब सरकार ने अमरनाथ यात्रा को रद्द कर दिया, पर्यटकों को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए कहा और वहां अतिरिक्त सैनिकों को तैनात कर दिया, तब कुछ युवा नेताओं ने इस पर प्रतिक्रिया के लिए निर्णय लेने के लिए कांग्रेस की तत्काल बैठक करने की मांग की. लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने जोर देकर कहा कि सरकार के कार्यवाही करने के बाद ही पार्टी को अपना पक्ष तय करना चाहिए.

मोदी सरकार के एजेंडे और कथावस्तु के स्थापित हो जाने के बाद उसके जवाब में इस तरह का हंगामा कांग्रेस की पहचान बन गया है. यह पार्टी को कमजोर दिखाता है और इसमें सिद्धांत, विचारधारा या नेतृत्व की कमी को उजागर करता है. इस बार हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों के वे नेता जो अगले दो महीनों में अपनी नई सरकारों के लिए वोट करेंगे, ने आर्टिकल 370 पर भ्रम की स्थिति में विद्रोह किया. वे वरिष्ठ नेताओं को बता रहे हैं कि पार्टी जनता के मूड के विपरीत जा रही है.

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राहुल और सोनिया गांधी ने तब हस्तक्षेप किया और कहा कि संकल्प पार्टी की उस प्रक्रिया पर नाखुशी को दर्शाएगा जिसके तहत भाजपा ने अनुच्छेद 370 द्वारा कश्मीर को दी गई विशेष स्थिति को हटा दिया.

एक नेता जिन्होंने आर्टिकल 370 को निरस्त करने का स्वागत किया, कहते हैं, "मेरे लिए तो यह जोखिम है. गुलाम नबी आज़ाद जिन्होंने ओवर-द-टॉप पद लिया और उनका पार्टी में श्रीनगर या दिल्ली में कोई कैरियर नहीं बचा है." कांग्रेस में कुछ इसी तरह के आकलन अधिकांश नेताओं के हैं. यदि शनिवार को पार्टी वासनिक को या एक समूह को प्रभार सौंपती है, तो बहुत सारे नेता यह कहते ते हुए कि कांग्रेस में खुद को सुधारने की कोई क्षमता नहीं है, सामान्य रूप से बाहर निकल सकते हैं.

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यदि पार्टी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की एक युवा जमीनी नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाने की वकालत का अनुसरण करती है, तो यह कई लोगों को बाहर जाने से रोक सकता है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि युवा ताकत के विकल्प के बारे में बात ही नहीं की जा रही है.

अधिकांश देश ने अंतहीन सोप अपेरा बन चुकी कांग्रेस में रुचि लेना बंद कर दिया है. शनिवार आने दें, हम जानेंगे कि क्या कांग्रेस भी अपने हित में काम कर सकती है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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