आगरा के कुछ कूड़ा बीनने वालों का धर्म परिवर्तन हुआ तो संसद तक में मुद्दा उठ गया... सब परेशान दिखे... पूछने लगे, ऐसा हुआ कैसे... लालच और ज़बरदस्ती को आधार बताकर साज़िश की ज़मीन तैयार कर दी गई... लेकिन अहम सवाल तो यह है कि अगर इन कूड़ा बीनने वालों का धर्म परिवर्तन नहीं हुआ होता तो क्या उनके बारे में किसी ने संसद में आवाज़ उठाई होती... क्या किसी ने उनकी हालत पर चिंता जताई होती...
चिंता उस व्यवस्था को लेकर होनी चाहिए, जहां लोगों की परेशानियों का आलम यह है कि बेहतर ज़िन्दगी का लालच देकर कोई उनका धर्म तक बदलवा देता है... अगर आधार कार्ड या राशन कार्ड बनवाने के नाम पर किसी को धर्म बदल लेने पर मजबूर किया जा सकता है तो चिंता धर्म परिवर्तन से ज्यादा उस व्यवस्था परिवर्तन को लेकर होनी चाहिए, जिसके बिना इसे रोका नहीं जा सकता... वे मुसलमान रहकर भी कूड़ा बीनते थे, हिन्दू होकर भी वही करेंगे, और मुझे पूरी उम्मीद है कि उनमें से ज्यादातर गैर-पढ़े-लिखे होंगे, यानि न उन्होंने कुरान पढ़ी होगी कि यह तय कर पाएं कि इस्लाम में क्या कमियां हैं, जिसकी वजह से उनका इस्लाम से मोहभंग हुआ हो और न गीता पढ़ी होगी ताकि यह जान पाएं कि हिन्दू बनकर उन्हें क्या बेहतर हासिल हो जाएगा... मतलब, वे धर्म नहीं, जिन्दगी बदलने की आस में रास्ता बदल आए...
उस मुल्क में, जहां कुछ राज्यों में धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कानून तक हों, वहां भी अगर किसी को डराकर धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर कर दिया जाता है, तब भी मुद्दा व्यवस्था परिवर्तन का है... राज्य सरकारें उन लोगों को संरक्षण क्यों नहीं दे पातीं, जिन्हें धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया जाता है... केरल के मुख्यमंत्री रहे ओमेन चांडी के दिए एक आंकड़े के मुताबिक केरल में वर्ष 2006 से 2012 के बीच 7,713 लोगों ने धर्म परिवर्तन किया और इस्लाम अपनाया... तब भी हिन्दू संगठनों ने ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन का आरोप लगाया था, और राज्य सरकार पर सब कुछ देखकर भी आंखें मूंदे रखने का आरोप लगाया...
लेकिन एक सच यह भी है कि धर्म परिवर्तन करने वाले ज्यादातर वे लोग हैं, जो समाज के उस हिस्से से आते हैं, जो नज़रअंदाज़ किए जाते रहे हैं और उन पर नज़र पड़ती भी है तो तब, जब मामला धर्म परिवर्तन से जुड़ जाए... धर्म ज़िन्दगी जीने का तरीका बता सकता है, लेकिन ज़िन्दा रहने के लिए बुनियादी सुविधाएं देने का धर्म सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को निभाना होगा... और जब तक इस मसले पर सिर्फ राजनीति होती रहेगी और पार्टियां राजधर्म निभाने से चूकती रहेंगीं, तब तक यूं ही लालच और डर के नाम पर धर्म परिवर्तन होता रहेगा... धर्म परिवर्तन रोकना है तो व्यवस्था परिवर्तन करना ही होगा...
This Article is From Dec 10, 2014
सुशांत सिन्हा की कलम से : धर्म परिवर्तन रोकना है तो पहले व्यवस्था परिवर्तन कीजिए...
Sushant Sinha, Vivek Rastogi
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Updated:दिसंबर 10, 2014 13:19 pm IST
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Published On दिसंबर 10, 2014 13:15 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 10, 2014 13:19 pm IST
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