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This Article is From Jul 07, 2016

बुंदेलखंड, पानी की कहानी 1: चंदेल राजाओं से समझें पानी का सबक..

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 07, 2016 17:11 pm IST
    • Published On जुलाई 07, 2016 17:03 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 07, 2016 17:11 pm IST
इस साल हल्के से सूखे ने देशभर में भारी अफरातफरी मचा दी। और अब थोड़ी सी ज्यादा बारिश जगह-जगह बाढ़ से तबाही मचा रही है। यानी इस साल देश के जल प्रबंधन की पोल खुल चुकी है। आजादी के बाद यह पहली बार है कि केंद्र सरकार को कुछ नहीं सूझ रहा है कि क्या करें।

देश की जल संसाधन मंत्री ने सूखे के महीने गुजरने के बाद अब बोला है कि बुंदेलखंड में चंदेलकालीन तालाबों को लबालब भर देंगी। लेकिन इन प्राचीन तालाबों को लबालब भर देने का वक्त इस साल निकल चुका है। बारिश में मिट्टी की खुदाई का काम नहीं होता। अगर वाकई कुछ होना होगा तो बारिश के बाद होगा। यानी इस साल सर्दियों में कुछ हो पाया तो वह अगली बारिश में दिख सकता है। हालांकि पूरे आसार हैं कि यह उम्मीद भी सपने जैसी ही साबित होगी।  

यूपी में यह काम पहले ही शुरू हो चुका था
बुंदेलखंड में पानी को लेकर हाहाकार मचने की बाद उप्र सरकार ने अपने हिस्से के जिलों में कुछ प्राचीन तालाबों से फटाफट कुछ गाद-मिटटी साफ कराने का काम शुरू किया है।  ऐन मौके पर यह काम शुरू हुआ ही था कि बारिश के दिन आ गए। जाहिर है कि 50-100 तालाबों की एक-दो मीटर की पर्त हटवाने से ज्यादा कुछ होना जाना नहीं है। इतना पानी तो प्यासी धरती कुछ ही दिनों में सोख लेगी। हां, इस बार ये तालाब महीने-दो महीने में खेतों में पानी की तरह लबालब भरे जरूर दिखाई देंगे।

तालाबों पर केंद्र-यूपी के बीच मचेगी हास्यास्पद होड़
लबालब भरे होने का भ्रम देने वाले इन तालाबों को लेकर दो-तीन महीने बाद ही केंद्र की मोदी सरकार और उप्र की अखिलेश सरकार के बीच राजनीतिक श्रेय लेने की हास्यास्पद होड़ मचने वाली है। हालांकि श्रेय जब तय होगा तब होगा लेकिन दोनों ही सरकारों की पोल जरूर खुलती चली जाएगी। मामला ज्यादा सनसनीखेज इसलिए बनेगा क्योंकि यूपी में चुनावी माहौल को गरमाने के लिए पूरा दम लगाने के दिन आ गए हैं और केंद्र और प्रदेश में सत्तारूढ़,  दोनों दलों की पोल इस मामले में खुलेगी कि दोनों की माली हालत पुराने तालाबों तक को ढंग से साफ करने लायक नहीं है। और अगर है भी तो बस सिर्फ पुराने तालाबों की आधी-अधूरी खुदाई ही हो पाएगी। बेरोजगारी, सड़कों और बिजली के सारे काम धरे रह जाएंगे। 
 
 गड्ढे से पानी सहेजने का जतन करती हुई एक महिला।

अब पता चलेगा कि सचमुच की प्राचीन विरासत है क्या
जल प्रबंधन के लिए पुराने तालाबों के इस्तेमाल की बात से पहली बार पता चलेगा कि देश की नाजुक माली हालत में इन 1000 साल पुराने तालाबों की आज भी कीमत क्या है। बहुत संभव है कि मजबूरी में देश की जो नई जल नीति बनेगी उसमें हमें चंदेलकालीन जल प्रबंधन की बारीकियों को फिर याद करना पड़ेगा। यह बात इस आधार पर कही जा रही है क्योंकि चंदेल राजाओं के बनवाए तालाबों पर शोध कार्य करने का ऐतिहासिक मौका मुझे सन 1988 में मिला था। चंदेलों के जल विज्ञान का शोध अध्ययन करने के लिए सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायर्नमेंट ने मुझे नेशनल जर्नलिस्ट फैलोशिप अवार्ड की थी। वे शोध आलेख जनसत्ता के संपादकीय पेज पर छपे थे।

तबकी सरकारों ने इस शोधकार्य पर इस तरह किया था गौर
रिसर्च रिपोर्ट छपते ही उस समय उप्र के सिंचाई मंत्री लोकपति त्रिपाठी के ऑफिस से फोन आया था। उनकी इच्छा प्राचीन तालाबों की प्रासंगिकता जानने-समझने की थी। उन्होंने इस काम के लिए अपने सिंचाई सचिव एके दास को लगा दिया था। एके दास ने सिंचाई विभाग के प्रमुख आभियंता एसआई अहमद को मुझसे बात करने के लिए भेजा था। मैंने उनसे उप्र में तालाबों की सूची बनवाने को कहा था और इन तालाबों के जल विज्ञान संबंधी आंकड़े मांगे थे। उन्होंने कहा था कि यूपी खासतौर पर बुंदेलखंड के सभी तालाबों की देखरेख सिर्फ सिंचाई विभाग ही नहीं करता, बल्कि अलग-अलग विभाग भी करते हैं लिहाजा यह काम अकेले मेरे लिए मुश्किल है।

बात वहीं की वहीं रह गई। बड़ा काम होने से रह गया। फिर भी जल एवं भूमि प्रबंधन संस्थान ओखला में मुझे सिंचाई विभाग के वरिष्‍ठ अभियंताओं की कार्यशाला में एक प्रशिक्षक की हैसियत से बुलाया। वहां मैंने जल विज्ञान की तकीनीकी भाषा में शोध परक व्याख्यान दिया। यह काम मेरे लिए इस कारण से दिलचस्प और  आसान था क्योंकि पत्रकारिता में आने के पहले मैं सागर विवि में असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुका था और परास्नातक कक्षाओं में वैज्ञानिक शोध पद्धति का पर्चा पढाया करता था।

चंदेलकालीन जल विज्ञान की क्या थीं खास बातें
28  साल पहले चंदेलों के जल विज्ञान पर उस लघुशोध कार्य के कुछ निष्कर्ष ये थे जो आज हमें काम के लग रहे हैं।

1.नौवीं सदी से लेकर 13वीं सदी तक चंदेल शासकों के समय बुंदेलखंड जल विज्ञान के क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति कर चुका था।
2. चंदेलशासकों ने अपने समय की जरूरतों के अलावा आने वाले एक हजार साल तक की पानी की जरूरत पूरी करने का इंतजाम कर लिया था।    
3. ऐतिहासिक रूप से जल विपन्न बुंदेलखंड में बारिश के पानी के अधिकतम हिस्से को रोक कर रखने के लिए तालाबों को एक के बाद दूसरे और दूसरे को तीसरे तालाब से जोड़ने की विधि विकसित कर ली गई थी। चंदेल शासकों ने सात सात तालाबों को जोड़कर ऐसे कई संजाल बनवाए थे।
4. श्रृंखलाबद्ध तालाबों के संजाल से जल ग्रहण क्षेत्र में गिरे पूरे के पूरे पानी को संचित कर लिया जाता था। अंग्रेज शासकों के लिए चंदेलों का जल विज्ञान बड़े ही कुतूहल का विषय था।
चंदेलशासकों के समय जल ग्रहण क्षेत्र, डूब क्षेत्र और सिंचित क्षेत्र के आपसी संबंधों की समझ विकसित हो चुकी थी। यह जल प्रबंधन ही चंदेलशासकों के काल में बुंदेलखंड की समद्धि और संपन्नता का कारण माना जाता है। उस समय राजकोष का मुख्य भाग खेती की उपज से ही बना करता था।
5. गर्मी के मौसम में चंदेलों की राजधानी महोबा में तापमान को कम रखने में इन विशाल तालाबों की बड़ी भूमिका थी। इसीलिए अंगे्रज शासक इन तालाबों को पानी की चादर कहते हुए उनका जिक्र करते थे।
6. अपनी उस वक्त की जरूरतों से भी सैकड़ों गुना बड़े तालाब बनवाने का तर्क आज भी रहस्य है। लेकिन शोध परिकल्पना यह है कि अकाल और दुर्भिक्ष के समय तबके शासक अपनी जनता को रोजगार देने के लिए तालाब, कुएं और दुर्ग बनवाने का काम करते थे। मौजूदा हालात के मददेनजर इस तथ्य को एक बहुत ही खास बात माना गया था।

 क्या हुआ चंदेलकालीन जल विज्ञान पर शोध के बाद
सन 1988 और 89 तक इन प्राचीन तालाबों की स्थिति पर संक्षेप में बात हो चुकी है। उसके भी कुछ साल बाद तक इन जल संरचनाओं की देखभाल के सबूत मिल जाते हैं। पर यह रहस्य बना हुआ है कि बाद में इन तालाबों की उपेक्षा क्यों होने लगी। यह बात अलग है कि देश में राजनीतिक अस्थिरता के दौर में अगर सबसे ज्यादा कोई क्षेत्र उपेक्षित रहा तो वह जल प्रबंधन ही दिखता है। फिर भी उप्र में पिछले 28 साल में सामाजिक स्तर पर और मीडिया के स्तर पर कोशिशें कम नहीं हुई।

एशिया की सबसे बड़ी पाठा पेयजल योजना उसी इलाके में है
पिछली सदी के सत्तर के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाठा योजना के लिए पूरा दम लगा दिया था। विश्व बैंक से कर्जा लेकर उन्होंने अपने शासन का यह एक सबसे चुनौती भरा काम किया था। बुंदेलखंड में आधुनिक बांधों की बहुतायत भी उन्ही की निजी दिलचस्पी का नतीजा साबित होती है। लेकिन बाद में जल प्रबंधन प्राथमिकता सूची में नीचे खिसकता चला गया। आखिर आज हमें यह इस तरह दिख रहा है कि इस साल थोडी सी ही बारिश कम होने से देश के आधे हिस्से में सूखा पड़ गया। बुंदेेलखंड ने तो ऐसी विपदा लगातार आठ साल सूखे के दौर में भी नहीं देखी थी।

छोटे से कस्बे में तालाबों पर अतंरराष्ट्रीय गुणवत्ता का विमर्श
घटना 29 जुलाई 2012 की है। बुंदेलखंड के एक छोटे से कस्बे मउरानीपुर में सामाजिक स्तर पर एक शोध विमर्श में बुंदेलखंड के सभी 13 जिलों में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं की भागीदारी से एक योजना बनी थी। इसमें आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए 13 तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रस्ताव भी बन कर तैयार हुए थे। लेकिन तब राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में फौरन कुछ भी नहीं हो पाया।

इन तालाबों पर शोधकार्य भले ही 1988 में हुआ हो लेकिन इन प्राचीन जल संरचनाओं पर सरकारी स्तर पर कुछ करने की बात तीन साल पहले ही शुरू हुई। खासतौर पर बुंदेलखंड मे जब पेयजल समस्या बढने लगी तो बुंदेलखंड के यूपी वाले सात जिलों में इसके नए उपाय तलाशने की कोशिशें शुरू हुईं थीं। उप्र के नगर विकास मंत्री आजम खान की पहल पर  सबसे पहले यह देखा गया था कि जल विज्ञान समझने वाले विशेषज्ञ और जागरूक कार्यकता क्या कर रहे हैं। इसी बीच चंदेलकालीन तालाबों पर हुए शोधकार्यों पर ध्‍यान जाना शुरू हुआ।

(सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
  

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