यूपी के नगर विकास मंत्री ने इस बात पर किया था गौर
सामाजिक स्तर के इस विमर्श की जानकारी मिलने के बाद यूपी के नगर विकास मंत्री आजमखान ने बुंदेलखंड के कस्बों में पर्याप्त पेय जल सुनिश्चित करने के उपाय तलाशने के लिए इन विशेषज्ञों को औपचारिक तौर पर बुलाया। बैठक में सातों जिलों के जिलाधिकारी बुलाए गए थे। यह बात 7 फरवरी 2013 की है। झांसी के आयुक्त कार्यालय के सभागार में आयोजित इस बैठक में इस स्तंभकार को भी बहैसियत विशेषज्ञ आमंत्रित किया गया था। इस बैठक में एक बार फिर पुराने तालाबों की प्रासंगिकता साबित की गई।
आखिर में तय हुआ कि उप्र के मुख्यमंत्री आखिलेश यादव की अध्यक्षता में प्रदेश के सभी संबधित आयुक्तों, सचिवों, प्रदेश के मंत्रियों और बुंदेलखंड के सभी जिलों के जिलाधिकारियों की मौजूदगी में बुंदेलखंड की जल समस्या को समझा जाए। विशेषज्ञों की इसी समिति के सदस्यों को 22 मार्च 2013 को यूपी के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में गौर से सुना गया। चंदेलकालीन तालाबों के बारे में विशेषज्ञों की ये बातें लखनऊ में पंचम तल पर मुख्यमंत्री ने पूरी अफसरशाही और संबधित कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी में लगातार तीन घंटे गौर से सुनी थीं।
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इस तरह बनी थी चंदेल तालाबों पर काम करने की योजना
बैठक में चंदेलकालीन तालाबों के जल विज्ञान पर इस स्तंभ लेखक की प्रस्तुति में 19 स्लाइडस को देखा गया। सरकार के स्तर पर तुरंत प्रस्ताव बनाने और कार्ययोजना बनाने का फैसला हुआ। इसी बैठक में महोबा के चंदेलकालीन तालाबों को पुनर्जीवित करने की परियोजना बनाने के भी निर्देश दिए गए। इस लेखक ने महोबा के मदन सागर और कीरत सागर सागर पर काम करने की सिफारिश की थी। तय हुआ कि अगली बैठक 5 अप्रैल 2013 को होगी। इस बीच अफसर परियोजना का खाका बनाकर लाएंगे।
इसी बीच एक नई बात पता चली
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यह सिफारिश कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट करने की थी
यूपी के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 5 अप्रेल 2013 को आयोजित तीसरी ऐतिहासिक बैठक में इस स्तंभकार ने नए तथ्यों को प्रस्तुत किया। साथ में यह नई सिफारिश भी की कि किसी तालाब को गहरा करने के पहले उस तालाब के जल ग्रहण क्षेत्र का उपचार किया जाना चाहिए। वरना सारी कवायद बेकार जा सकती है। प्रदेश के कई अन्य शीर्ष अभियंताओं के सामने और भी कई तकनीकी नुक्ते पेश किए। आखिर में यह सहमति बनी थी कि जल परियोजनाओं को लागू करने के पहले जल विज्ञान से संबधित पहलुओं पर शोध और अन्वेषण का काम बहुत ही जरूरी है।
बहरहाल उस बैठक में 1600 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को सरकार की मंजूरी देने लायक बनाकर पेश कर दिया गया। बाद में वे मंजूर भी हो गईं और महोबा के पास एक तालाब बेलाताल में तो दो साल पहले ही 'समंदर' की तरह पानी दिखने लगा था। निर्माणाधीन एरच बांध उसी बैठक की उपज है। पिछले दो महीनों में ताबड़तोड़ ढंग से यूपी सरकार ने जिन पुराने सौ-पचास तालाबों को थोड़ा-थोड़ा गहरा कराया है वह उसी सोच-विचार के कारण बिना हिचकिचाहट के हो पाया है।
सारी समस्या जरूरी कामों के लिए पैसे की है
यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि ये सारा काम बुदेलखंड की वास्तविक समस्या के आकार की तुलना में 'ऊंट के मुंह में जीरा' साबित होगा क्योंकि बुंदेलखंड के चार हजार तालाबों बल्कि हर गांव के दो तालाब के हिसाब से 7800 तालाबों को सलीके से पुनर्जीवित करने का खर्चा आठ हजार करोड़ रुपए से कम नहीं बैठेगा। यह खर्चा प्रदेश सरकार की हैसियत से बाहर है। और मौजूदा केंद्र सरकार अगर पुरानी केंद्र सरकार की तरह कोई पैकेज बुंदेलखंड को देने के बारे में सोचे भी तो इस समय देश में इतने सारे बुंदेलखंड बनते जा रहे हैं कि केंद्र का इस समय का बजट ही पानी पर खर्च के लिए कम बैठेगा। यानी समस्या जरूरी कामों के लिए सिर्फ पैसे की है...।
(सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं)
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