एग्जिट पोल में मोदी सरकार की जीत की अटकल लगते ही शेयर बाजार की बांछें खिल गईं. सोमवार को बाजार खुलते ही एक मिनट के भीतर बाजार के सांड ने दौड़ लगा दी. सोमवार को एग्जिट पोल का असर इतना ज़बरदस्त था कि एक मिनट में ही पूंजी बाजार में कुल पूंजी की कीमत तीन लाख करोड़ रुपये बढ़ गई. दिन के बाकी बचे समय में तो पूंजीधारियों की पूंजी कोई पौने 7 लाख करोड़ बढ़ी बताई गई है. यानी मोदी सरकार फिर बनने के उत्साह में पूंजी लगाने की होड़ सी मच गई. इस बीच एग्जिट पोल के अनुमानों का राजनीतिक विश्लेषण तो खूब हुआ और हुए ही चला जा रहा है, लेकिन पूंजी बाजार में इतनी जबरदस्त उठापटक का आगा पीछा देखने की उतनी कोशिश नहीं हुई. घटना छोटी नहीं है. तब तो और भी ज्यादा बड़ी है जब कुछ महीने से देश की गिरती माली हालत की चर्चा होने लगी थी. खासतौर पर बेरोज़गारी के भयावह आंकड़े उजागर होने के बाद जीडीपी के आंकड़ों की विश्वसनीयता सवालों से घिर गई थी. सबसे ज्यादा गौरतलब बात यह कि शेयर बाजार में इस सनसनी का एक ही कारण था और वह था लोकसभा चुनाव के नतीजों के पहले एग्जिट पोल के सिर्फ अनुमान.
क्या साबित होता है इससे
कोई भी बेहिचक कह सकता है कि मौजूदा सरकार की वापसी की अटकल से ही शेयर बाजार बमबम हो गया. जबकि पूंजी से पूंजी बनाने वाले लोग पिछले तीन चार हफ्तों से अनमने थे. पिछले पखवाड़े तो लगातार आठ दिन बाजार नीचे ही जाता रहा था. कहा जाने लगा था कि देश में आर्थिक विकास की संभावनाओं को लेकर पूंजी बाजार की घारणा अच्छी नहीं है. इसका एक कारण यह भी समझा जाने लगा था कि बाजार को राजनीतिक अस्थिरता का खुटका है. हालांकि प्रचार तंत्र के जरिए यह हवा खूब बनाई जा रही थी कि सट्टा बाजार और पूंजी बाजार मौजूदा सरकार की वापसी को लेकर अंदर ही अंदर उत्साहित है. हालांकि उस उत्साह का एक भी प्रत्यक्ष लक्षण नहीं दिख रहा था. ये एग्जिट पोल पहला प्रत्यक्ष लक्षण है, जिससे मौजूदा सरकार की वापसी की अटकल से पूंजी बाजार की बांछें खिलती हुई दिखी हैं.
क्या इसे कोई भांप सकता था?
क्यों नहीं, बिल्कुल भांप सकता है. शेयर बाजार की माया ही उतार चढ़ाव से चलती है. बाजार के खिलाड़ियों के लिए न तो बाजार का चढ़ते जाना मुनाफे वाला है और न ही उतरते जाना. खिलाड़ी चाहते हैं कि झूला बना रहे और झूला जितने जोर से पेंग मारे उतना अच्छा. इसलिए बाजार के खिलाड़ी और विश्लेषक इसी झूलेबाजी से हर्षित आनंदित होते हैं. हमेशा ही बाजार को हिलाने डुलाने वाली खबरों की तलाश होती है और इसलिए एग्जिट पोल के बहाने शेयर बाजार ने जो ज़ोर की पेंग भरी है, उससे खिलाड़ियों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं है और जब बाजार उतरेगा तो वह भी खिलाड़ियों के लिए उतने ही हर्ष का कारण बनेगा. बहरहाल, बाजार के चढ़ने उतरने के कारण भी खिलाड़ियों को पता होते हैं. तो फिर एक अटकल यह भी लगाई जा सकती है कि बाजार के खिलाड़ी चुनावी नतीजों के अनुमानों का असर भी अच्छी तरह समझते होंगे.
मंगलवार को बाजार थामे रखने में दिक्कत आई
आमतौर पर अचानक बढ़ी तेजी टिकती नहीं है. यही मंगलवार को होते दिखा. शुरू में जरूर कोई दो सौ अंकों का उतार चढ़ाव होता रहा, लेकिन बाद के दो स़त्रों में तेजी थमी नहीं रह पाई. दिन के आखिरी समय सूचकांक अपने पिछले दिन की तुलना में 383 अंक नीचे उतर कर बंद हुआ. इस तरह पहले दिन के 1422 अंकों में 383 अंकों का फीलगुड अगले दिन कम हो गया. यानी एग्जिट पोल के नतीजों का असर 24 घंटे के भीतर ही कम होता नज़र आया. अब बुधवार को क्या होगा? इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है, क्योंकि कम से कम एग्जिट पोल से उपजी खुशफहमी और बढ़ने की गुंजाइश बची नहीं है. हद से हद मंगलवार जैसा माहौल बुधवार को भी दोहराया जा सकता है. इस तरह जो होगा वह नतीजों के दिन यानी 23 मई को ही होगा. फिर भी मंगलवार को शेयर बाजार को ढहने से रोकने में पूंजीबाजार के खिलाड़ी कामयाब रहे. बाजार दो सौ अंक उपर और साढे़ चार सौ अंक नीचे के दायरे में झूलता रहा. इसी झूलेबाजी में जो जितना फायदा उठा सकता होगा उसने उठाया होगा.
इसीलिए जाखिम भरे हैं एग्जिट पोल
जब बारिश के अनुमानों से ही शेयर बाजार हिलने डुलने लगता है तो लोकसभा चुनाव के अनुमान तो कई गुने ज्यादा असरदार हैं. आखिर हमारी अर्थव्यवस्था दो सौ लाख करोड़ की जीडीपी वाली है. इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था की मैनेजरी करने वाली किसी सरकार के जीतने हारने से पूंजीधारियों पर भारी असर पड़ता है. बेशक वे चाहेंगे कि उनके माफिक सरकार बने और सरकार उनके माफिक ही नीतियां बनाए और फैसले ले. बहरहाल एग्जिट पोल की अटकलों से पड़े असर से यह बात जरूर सिद्ध होती है कि शेयर बाजार मौजूदा सरकार को बनाए रखने में अपना फायदा देखता है, लेकिन शेयर बाजार के खिलाड़ी यह भी चाहते हैं शेयर बाजार में स्थायित्व न हो. कोई न कोई कारण बनता रहे जो बाजार को झूला झुलाता रहे. यानी तब हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए जब 23 मई को वास्तविक नतीजे वैसे न आएं जैसे एग्जिट पोल में बताए गए थे, क्योंकि यह बाजार अटकलों के धक्के से झूलते रहने वाली चीज़ ज्यादा है.
अगर एक ही कारण से लाखों करोड़ की पूंजी बढ़ती हो तो
जब देश का सालाना बजट ही 27 लाख करोड़ हो तो एक झटके में शेयर बाजार की पूंजी पांच लाख करोड़ बढ़ या घट जाना मायने रखता है और जिन्हें यह अंदाजा है कि किसी एक कारण या अटकल या खबर से ऐसा हो सकता है तो यह अंदेशा तो कोई भी जता सकता है कि बाजार को हिलानेवाला कोई कारण या अटकल या खबर पैदा भी की जा सकती है. इसलिए आर्थिक मामलों के कुछ जानकार पूंजी बाजार में एग्जिट पोल के कारोबार की दखलंदाजी के अंदेशे को भी जता रहे हैं, वाकई ऐसा हो या न हो लेकिन कम से कम अंदेशों को तो कोई नहीं नकार सकता.
अगर नतीजे वैसे नहीं आए तो तय है कि शेयर बाजार ढह भी जाएगा. उससे ज्यादा ढहेगा जितना चढ़ा था. असर तो तब भी होगा जब मौजूदा सरकार की जितनी ज्यादा सीटें एग्जिट पोल में आती दिखाई गई हैं उससे कम सीटें आईं. यानी कम मार्जिन से सरकार वापस आई तब भी शेयर बाजार पर असर पड़ेगा. यह इसलिए कि फिलहाल एग्जिट पोल में सरकार के पक्ष में बहुमत से 75 सीटें ज्यादा आने की अटकल का यह विश्लेषण किया गया है कि सरकार बहुत ही मजबूत बनेगी और इसी भारी मजबूती को शेयर बाजार के चढ़ने का कारण बताया गया है. कहीं चार-छह सीटों का टोटा पड़ गया तो शेयर बाजार में मानो भूचाल ही आ जाएगा और अगर नतीजे वैसे ही आए तो ज्यादा हलचल की गुंजाइश अब बची नहीं है, क्योंकि एग्जिट पोल का असर पड़ चुका है.
बहरहाल इतना तय है कि अपनी प्रवृत्तियों और चलन के मुताबिक पूंजी बाजार में मौजूदा खुशहाली स्थायी नहीं हो सकती. इसलिए बहुत संभव है कि सरकार की मजबूती के बाद भी बाजार को हिलाने डुलाने के लिए उसे कोई और कारण तलाशना पड़े.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
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