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कैफी और मैं: मंच पर पिता और मां की कहानी कहतीं शबाना आजमी

अरविंद दास
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 04, 2025 23:24 pm IST
    • Published On अगस्त 04, 2025 19:07 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 04, 2025 23:24 pm IST
कैफी और मैं:  मंच पर पिता और मां की कहानी कहतीं शबाना आजमी

पुणे में व्यावसायिक मराठी रंगमंच काफी समृद्ध है. वहीं हिंदी और अंग्रेजी नाटकों का भी एक अलग दर्शक वर्ग है. पिछले दिनों चर्चित अदाकार नसीरुद्दीन शाह अपना नाटक 'द फादर' लेकर आए थे, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा. वहीं रविवार (तीन अगस्त) को पुणे के रंगमंच पर मशहूर अदाकारा शबाना आजमी दिखाई दी थीं. खचाखच भरे सभागार में दर्शकों का उत्साह देखते बना.

असल में,रमेश तलवार निर्देशित बहुचर्चित नाटक 'कैफी और मैं' में शबाना आजमी एक बार फिर से दर्शकों से रू-ब-रू थीं.यह नाटक अपने बीसवें साल में है. अगले महीने वे 75 साल की हो जाएंगी, ऐसे में रंगमंच पर उनकी सक्रियता थिएटर को लेकर उनके जुनून को दिखाता है.

संबंधों का ताना-बाना

संस्कृतिकर्मी और अदाकार शौकत आजमी की आपबीती 'याद की रहगुजर' और कैफी आजमी के साक्षात्कारों, खतो-किताबत को यह नाटक समेटे है, जिसे जावेद अख्तर ने बुना है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है शौकत के नजरिए से कैफी और उनके संबंधों, कैफी की शायरी, उनके सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार यहां दिखाई देते हैं.

शौकत की भूमिका में शबाना आजमी और कैफी की भूमिका में कंवलजीत सिंह मंच पर थे. पर ऐसा नहीं कि यह नाटक केवल दो तरक्कीपसंद लोगों के आपसी प्रेम संबंधों का दस्तावेज बन कर रह गया है, बल्कि इसके मार्फत मानवीय मूल्यों, सहजीवन और आजाद भारत के सपनों की अभिव्यक्ति भी यहां मिलती है. एक ऐसे दौर को हम जीते हैं, जो अतीत का पन्ना हो चला है. हमारे हिस्से महज खुशबू रह गई है!

कैफी की जीवन यात्रा के कई रंग हैं. वे उर्दू के प्रगतिशील धारा के प्रमुख शायर रहे और इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के अग्रणी स्वर. वहीं हिंदी सिनेमा के लिए उन्होंने जी गीत रचे, वे हमारी थाती हैं. आश्चर्य नहीं मंच पर उनके लिखे गीतों के टुकड़ों को जसविंदर सिंह ने गाया और दर्शक उनसे पूरा गाने की फरमाइश करते रहे.

कैफी और मैं में शौकत के नजरिए से कैफी और उनके संबंधों, कैफी की शायरी, उनके सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार यहां दिखाई देते हैं.

कैफी और मैं में शौकत के नजरिए से कैफी और उनके संबंधों, कैफी की शायरी, उनके सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार यहां दिखाई देते हैं.
Photo Credit: Arvind Das

किसलिए हुआ था इप्टा का गठन

चर्चित अदाकार जोहरा सहगल ने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के शुरुआती दिनों को याद करते हुए लिखा है कि हर एक कलाकार जो बंबई (मुंबई) में 1940 और 1950 के बीच रह रहा था, वह किसी न किसी रूप में इप्टा से जुड़ा था. गीत-संगीत, नृत्य, नाटक के जरिए मौजूदा ब्रिटिश साम्राज्यवादी हुकूमत और फासीवाद से लड़ने के लिए इप्टा का गठन किया गया था, जिसके केंद्र में मेहनतकश जनता की संस्कृति थी. कैफी के साथ शौकत भी इप्टा से एक अदाकार के रूप में जुड़ी थीं. देश विभाजन को आधार बना कर बनी फिल्म 'गर्म हवा' (1974) में उनका अभिनय आज भी याद किया जाता है.

सज्जाद जहीर, चेतन आनंद, केए अब्बास, सरदार जाफरी, इस्मत चुगताई, मजरूह सुल्तानपुरी, दीना पाठक, बलराज साहनी, भीष्म साहनी, कृष्ण चंदर जैसे उर्दू-हिंदी साहित्य के कद्दावर नाम इस नाटक में लिपटे चले आते हैं. इस तरह से यह नाटक साहित्य-सिनेमा के एक सुनहरे दौर का वृत्तांत भी रचता है.  

इस साल गुरुदत्त की जन्मशती मनाई जा रही है.'कागज के फूल' के लिए कैफी आजमी के लिखे गीत- 'वक्त ने किया क्या हंसी सितम' और 'बिछड़े सभी बारी बारी' को समीक्षकों ने रेखांकित किया. जहां ये गीत लोगों की जबान पर बस गए, वहीं फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई. उन्हें सफलता मिली चेतन आनंद की फिल्म 'हकीकत' के लिखे गानों के साथ, जो बॉक्स ऑफिस पर भी सफल रही और चेतन आनंद-मदन मोहन-कैफी आज़मी की जोड़ी चल निकली.

कैफी आजमी का सफर

कैफी ने अपनी पहली नज्म महज  11 साल की उम्र में पढ़ा था. मुंबई आने से पहले ही उनकी प्रसिद्धि 'औरत' नज्म (उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे...) से फैल चुकी थी. इसी नज्म को सुन कर शौकत ने ठान लिया था कैफी ही उनके जीवन साथी बनेंगे और उन्होंने उनके साथ बंबई के एक 'होल टाइमर कम्युनिस्ट' के साथ 'कम्यून' में रहने  का फैसला किया.

जब कैफी समाज के हाशिए पर रहने वालों के साथ काम कर रहे थे तभी उन्होंने 'मकान' नज्म लिखी थी. जब मंच से कैफी के इन नज्म से इन पंक्तियों का पाठ किया गया: आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है/आज की रात न फ़ुट-पाथ पे नींद आएगी/सब उठो, मैं भी उठूँ तुम भी उठो, तुम भी उठो/कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी, तब लगा कि किस तरह उनकी कविता समकालीन है. कैफी जैसा रचनाकार समय-सीमा के परे है.

इन नाटक के लिए मंच पर बेहद कम साजो-सामान का इस्तेमाल किया गया. फिरोज अब्बास खान निर्देशित 'तुम्हारी अमृता' नाटक में हमने शबाना को देखा है. इस नाटक में अमृता और जुल्फी के बीच प्रेम प्रसंग को खतों के माध्यम से संवेदनशील और मार्मिक ढंग से व्यक्त किया गया है. ठीक वही शैली इस नाटक में भी अपनाई गई है. जहां शौकत के किरदार में शबाना ने प्रभावित किया. वहीं ऐसा लगा कि कंवलजीत कैफी ने किरदार के लिए तैयारी करके नहीं आए थे. कई बार संवाद अदायगी में वे फिसले. वे रसास्वादन में बाधा बन कर सामने आया. उल्लेखनीय है कि कैफी के किरदार को जावेद अख्तर निभाते रहे हैं, हमने उन्हें मिस किया. 

गांवों की ओर लौटना

आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में जन्मे कैफी आजमी भले गांव से सालों से दूर रहे, पर उनकी शायरी में गांव-जवार रचा-बसा रहा. सालों बाद वे गांव लौटे और शौकत के साथ मिल कर घर बनाया, बच्चों के लिए स्कूल, सड़क और अन्य सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ी थी.

याद आया कि पांच साल पहले 'मी रक्सम' फिल्म कैफी के पुत्र बाबा आजमी से निर्देशित किया है और शबाना आजमी ने प्रस्तुत किया है. इस फिल्म में निम्नवर्गीय मुस्लिम परिवार के जीवन और संघर्ष का चित्रण है.'मी रक्सम' फिल्म आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव के आस-पास अवस्थित है. मिजवां के दृश्य मोहक हैं. बकौल बाबा आजमी एक बार कैफी आजमी ने उनसे पूछा था कि क्या तुम कोई फिल्म मिजवां में शूट कर सकते हो?

फिल्म की तरह ही यह नाटक मशहूर शायर, नग्मा-निगार और मानवीय मूल्यों को लेकर प्रतिबद्ध कैफी के प्रति संवेदनशील और मार्मिक श्रद्धांजलि है.

अस्वीकरण: अरविंद दास डीवाई पाटिल इंटरनेशनल युनिवर्सिटी, पुणे के स्कूल ऑफ मीडिया एंड जर्नलिज्म के निदेशक और प्रोफेसर हैं. वो कला-संस्कृति विषय पर लिखते रहते हैं.इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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